राजस्थान में विराजमान हैं भोलेनाथ, जहां होता है उनके अंगूठे का पूजन

punjabkesari.in Monday, Jan 16, 2017 - 10:16 AM (IST)

दुनिया में भगवान शिव के कई मंदिर स्थित हैं। राजस्थान के माउंट आबू में भी एक शिव मंदिर हैं, जहां भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। इसे विश्व का इकलौता मंदिर माना जाता है। हिंदू धर्म की पुराण स्कंद पुराण के अनुसार माना जाता है कि जैसे वाराणसी भगवान शिव की नगरी है तो माउंट आबू भोलेनाथ की उपनगरी है। भोलेनाथ का अचलेश्वर महादेव मंदिर माउंट आबू से उत्तर दिशा की ओर करीब 11 किलोमीटर दूर अचलगढ़ की पहाड़ियों पर स्थित है।

 

यहां मंदिर के द्वार पर नंदी की विशाल प्रतिमा है। यह प्रतिमा पंच धातु से निर्मित है। मंदिर के अंदर जाने पर गर्भगृह पर भगवान शिव के पैर के अंगूठे का निशान पाताल खंड के रूप में उभरा हुआ है। माना जाता है कि जिस दिन ये अंगूठा खत्म हो जाएगा उस दिन माउंट आबू भी समाप्त हो जाएगा। कहा जाता है कि इसी अंगूठे ने इस पहाड़ को थामा हुआ है। यहां द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है। गर्भगृह के बाहर वाराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य प्रतिमाएं स्थापित हैं।

 

कहा जाता है कि जहां पर आज पर्वत स्थित है, वहां नीचे विशाल ब्रह्म खाई थी। इसके तट पर वशिष्ठ मुनि रहते थे। उनकी कामधेनु गाय एक बार चरते-चरते ब्रह्म खाई में गिर गई। उसको बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती, गंगा का आह्वान किया तो ब्रह्म खाई पानी से जमीन की सतह तक भर गई और कामधेनु गाय गोमुख पर बाहर जमीन पर आ गई। एक बार फिर ऐसा हुआ। जिससे दुखी होकर मुनि ने हिमालय से अनुरोध किया कि वे इस खाई को भर दें। जिससे कामधेनु इस खाई में न गिरे। हिमालय ने मुनि का अनुरोध स्वीकार करके अपनी पुत्री नंदी वद्र्धन को जाने का आदेश दिया। अर्बुद नाग नंदी वद्र्धन को उड़ाकर ब्रह्म खाई के पास वशिष्ठ आश्रम लाया। आश्रम में नंदी वद्र्धन ने वरदान मांगा कि उसके ऊपर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए एवं पहाड़ सबसे सुंदर व विभिन्न वनस्पतियों वाला होना चाहिए।

 

वशिष्ट मुनि ने वरदान दे दिया। उन्होंने ये भी वर मांगा कि पर्वत का नामकरण भी उसी के नाम से होना चाहिए। इस प्रकार नंदी वद्र्धन आबू पर्वत के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जब वह खाई में उतरा तो अंदर धंसता ही चला गया। उसकी नाक अौर ऊपर का भाग ही जमीन के ऊपर रहा जो आज आबू पर्वत के नाम से विख्यात है। इसके बाद भी वह अचल नहीं रह पा रहा था फिर भोलेनाथ ने मुनि के अनुरोध पर अपने दाहिने पैर के अंगूठे को पसार कर इसे स्थिर किया। तभी से इसे अचलगढ़ कहा जाता है। उस समय से ही यहां भोलेनाथ के अंगूठे की पूजा की जाती है। यहां पर प्रतिदिन भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है। माना जाता है ये जल उस खाई में चला जाता है। कहा जाता है कि यहां पर जितना भी जल अर्पित करें इस खाई में समा जाता है। ये जल कहां जाता है इस विषय में रहस्य बना हुआ है। 


 


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