Motivational Story: क्या क्षमा ही है भीतर की सच्ची शांति की चाबी?
punjabkesari.in Tuesday, Sep 09, 2025 - 06:01 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Motivational Story: विश्व में ऐसी कौन-सी चीज है, जो सभी मांगना चाहते हैं परन्तु देना नहीं चाहते। अधिकांश लोगों का उत्तर होगा पैसा, परन्तु यह गलत उत्तर है क्योंकि इसका सही उत्तर है ‘क्षमा’। हम सभी से जिंदगी में जाने-अनजाने में गलतियां तो होती रहती हैं। जब हम खुद गलती करते हैं तो सामने वाले से हम यह स्वाभाविक अपेक्षा रखते हैं कि वह अपना दिल बड़ा करके हमें क्षमा कर दे, पर जब किसी और से गलती होती है तब उन्हें क्षमा करने में जैसे हमारा हृदय विदीर्ण हो जाता है। भला ऐसा क्यों? क्षमा लेने में तो हम बड़े आशावादी बन जाते हैं, परन्तु देने में बड़े निराशावादी? जरा सोचिएगा कभी इस पर!
क्षमा एक ऐसा विशिष्ट गुण है, जिसमें कोई व्यक्ति अन्य द्वारा अपने साथ किए गए दुर्व्यवहार या अपराध से दुखी न होकर बदले में उसके प्रति सहृदयता पूर्ण व्यवहार करता है। क्षमा शीलवान का शस्त्र और अहिंसक का अस्त्र है। क्षमा, प्रेम का परिधान है। क्षमा, विश्वास का विधान है। क्षमा, सृजन का सम्मान है। क्षमा, नफरत का निदान है। क्षमा, पवित्रता का प्रवाह है। क्षमा, नैतिकता का निर्वाह है। क्षमा, सद्गुण का संवाद है। क्षमा शक्ति है, धर्म है, दुर्बलता नहीं। अपने में दंड देने की शक्ति होते हुए भी दोषी को दंड न देना यही तो क्षमा है।
क्षमा, क्षमाशील का आत्मिक बल है जो उदारता, सद्भावना, सहृदयता, सहनशीलता, दयालुता, परोपकार, नि:स्वार्थता, त्याग तथा समदृष्टि जैसे अनेक गुणों के रूप में परिलक्षित होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि ‘क्षमा करना बहुत बड़ा दान है’। क्षमा देने वाले की तरह, क्षमा मांगने वाला व्यक्ति भी महान ही होता है क्योंकि वह न केवल अपनी गलती को स्वीकार करता है अपितु भविष्य में उस गलती को न दोहराने का संकल्प लेकर अपने मन से सदा के लिए निन्दा, नफरत, क्रोध व दुर्भावना को सम्पूर्ण समाप्त कर देता है।
कई लोगों को अंदर यह भय रहता है कि क्षमा या माफी मांगने से उनकी प्रतिष्ठा को आंच आएगी, परन्तु यह सरासर गलत मान्यता है क्योंकि क्षमा मांगने से व्यक्ति छोटा नहीं हो जाता, अपितु उसके इस कृत्य से जो विनम्रता का भाव प्रस्फुटित होता है, उससे उसका कद पहले से कहीं अधिक बढ़ जाता है और उसका क्रोध एवं अहंकार समाप्त हो जाता है। क्षमा न करना और घृणा तथा द्वेष के भावों को अपने भीतर पालना यह विकृत व नकारात्मक मानसिकता का प्रतीक है।
शत्रुता और द्वेष-ईर्ष्या आदि शब्दों का अस्तित्व क्षमा के अभाव के कारण ही तो होता है। क्षमा शत्रुता का नाश करके मित्रता का विस्तार करती है। कहा गया है कि दान के गर्भ में निहित है प्राप्ति का मूल। अत: हृदय से किया गया क्षमादान मन को शांति और सुकून प्रदान करता है। तो क्या यह उपलब्धि किसी वस्तु की प्राप्ति से कम है?
क्षमादान मन की एक दशा है और उसका सकारात्मक प्रभाव तभी पड़ेगा जब वह सहज भाव से संपन्न होगी। वास्तविक क्षमा, आचरण एवं व्यवहार से परिलक्षित होती है। जो लोग न क्षमा मांगना जानते हैं और न ही क्षमा करना, वे अपने लिए इस धरती पर ही नरक की सृष्टि रच लेते हैं। याद रहे! प्रेम और क्षमा द्वारा किसी पर भी विजय पाई जा सकती है। तो आइए, हम सभी क्षमा भाव के गुण को अपने में धारण कर स्वयं को एवं संसार को सुखी बनाएं।