Motivational Concept: चिंता नहीं चिंतन कीजिए
punjabkesari.in Sunday, Sep 25, 2022 - 02:41 PM (IST)

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भारत वर्ष में सम्राट समुद्रगुप्त प्रतापी सम्राट हुए थे लेकिन चिंताओं से वह भी नहीं बच सके। चिंताओं का चिंतन करने के लिए वह एक दिन वन की ओर निकल पड़े। वह रथ पर थे, तभी उन्हें एक बांसुरी की आवाज सुनाई दी। मीठी आवाज सुनकर उन्होंने सारथी से रथ धीमा करने को कहा और बांसुरी के स्वर के पीछे जाने का इशारा किया। कुछ दूर जाने पर समुद्रगुप्त ने देखा कि झरने और उनके पास मौजूद वृक्षों की आड़ से एक व्यक्ति बांसुरी बजा रहा है। पास ही उसकी भेड़ें घास खा रही हैं।
राजा ने कहा, ‘‘आप तो इस तरह प्रसन्न होकर बांसुरी बजा रहे हैं, जैसे कि आपको किसी देश का साम्राज्य मिल गया हो।’’ युवक बोला, ‘‘श्रीमान आप दुआ करें, भगवान मुझे कोई साम्राज्य न दें क्योंकि साम्राज्य मिलने पर कोई सम्राट नहीं होता बल्कि सेवक बन जाता है।’’
युवक की बात सुनकर राजा हैरान रह गए। तब युवक ने कहा सच्चा सुख स्वतंत्रता में है। व्यक्ति सम्पत्ति से स्वतंत्र नहीं होता बल्कि भगवान का चिंतन करने से स्वतंत्र होता है। तब उसे किसी भी तरह की चिंता नहीं होती है। भगवान सूर्य किरणें सम्राट को देते हैं मुझे भी, जो जल उन्हें देते हैं मुझे भी।
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ऐसे में मुझ में और सम्राट में बस मात्र सम्पत्ति का ही फासला होता है। बाकी सब कुछ तो मेरे पास भी है। यह सुनकर युवक को राजा ने अपना परिचय दिया। युवक यह जान कर हैरान था कि राजा की चिंताका समाधान करने पर राजा ने उसे सम्मानित किया।
संक्षेप में चिंता, मानव मस्तिष्क का ऐसा विकार है जो पूरे मन को झकझोर कर रख देता है, इसलिए चिंता नहीं चिंतन कीजिए।
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