Motivational Concept: सब कुछ कल्पना मात्र है
punjabkesari.in Wednesday, Dec 15, 2021 - 06:15 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
आज दो तरह के योग किए जा रहे हैं। एक क्षीण होने के लिए, दूसरा तीव्र होने के लिए। सामाजिक स्तर पर तीव्र बनाने वाले को अधिक स्वीकार किया जाता है मगर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई तुम्हारे बारे में क्या सोचता है। जहां तक अस्तित्व का सवाल है, उसका कोई औचित्य नहीं होता। इसका कोई सामाजिक सरोकार हो सकता है परन्तु दुनिया तुम्हारे बारे में क्या सोचती है अथवा तुम खुद अपने बारे में क्या सोचते हो इनका अस्तित्व के स्तर पर कोई औचित्य नहीं।
जब तुम ‘अध्यात्मिकता’ की बात करते हो तो तुम यह देख रहे हो कि अस्तित्व के स्तर पर तुम्हें किस तरह की प्रगति करनी है, सामाजिक स्तर पर, मनोवैज्ञानिक स्तर पर या भावनात्मक स्तर पर। तुम अस्तित्व के स्तर पर निरंतर आगे बढऩा चाहते हो, तुम वास्तव में कहीं पहुंचना चाहते हो क्योंकि तुम्हारी भावनाएं, तुम्हारा समाज, तुम्हारा मनोविज्ञान सब कुछ कल्पना मात्र है, विशुद्ध कल्पना है कोई बहुत सुखद कल्पना हो, पर फिर भी है तो वह कल्पना ही, है कि नहीं?
इसलिए अपने शरीर से परे प्राणी का आगे बढ़ना, इस बात पर निर्भर नहीं करता कि वह संसार में क्या था और वह अपने बारे में क्या सोचता था या सब लोग उसके बारे में क्या सोचते थे। यह सीधे इस पर निर्भर करता है कि वह कितना जागरूक है और उसने अपने अंदर इस भौतिक शरीर के परे कितना कुछ पैदा किया है।
क्योंकि जब तक तुम इस शरीर में हो, तभी तक तुम सचेतन कर्म कर सकते हो। जैसे ही तुम शरीर छोड़ देते हो, फिर कोई सचेतन कर्म सम्भव नहीं होता क्योंकि बुद्धि का विवेक-विचार वाला विभेदकारी आयाम तुमसे अलग हो जाता है। मानव जन्म क्यों इतना मूल्यवान है, इसका मुख्य कारण यही है।
मानव जीवन, एकमात्र ऐसा जीवन है जिसमें तुम अपने विवेक-विचार के इस्तेमाल से जागरूक होकर कर्म कर सकते हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अभी तक तुमने किस तरह के कार्य किए हैं। अगर अभी तक तुमने बहुत ही वीभत्स जीवन जिया है, तब ही तुम इस क्षण में जागरूक होकर कर्म कर सकते हो। यह स्वतंत्रता और निर्णय लेने का अधिकार सदैव तुम्हारे पास है।