प्ररेक प्रसंग: इसलिए ज़रूरी है उद्यमी बनना

punjabkesari.in Sunday, Sep 13, 2020 - 07:38 PM (IST)

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किसी नगर में एक व्यापारी रहता था, उसके व्यापार का लगातार प्रसार हो रहा था जिससे उसकी सम्पत्ति में वृद्धि हो रही थी। एक दिन व्यापारी ने सोचा कि अपनी सम्पत्ति का आकलन किया जाए। उसने हिसाब लगाया तो उसे पता चला कि उसके पास करोड़ों की राशि जमा हो चुकी है। उसने सोचा कि कुछ पैसे दान-पुण्य में लगाए जाएं लेकिन वह यह तह नहीं कर पा रहा था कि उसे किस कार्य में लगाया जाए।

वह चाहता था कि उसके धन का सदुपयोग हो और उसे पुण्य प्राप्त हो। काफी सोचकर उसने तय किया कि वह नगर में धर्मशालाएं, मंदिर और अनाथालय बनवाएगा। यह निर्णय कर वह शुभ मुहूर्त निकलवाने एक महात्मा के पास पहुंचा और उन्हें अपनी योजना कह सुनाई। व्यापारी को लगा कि महात्मा जी यह सुन प्रसन्न होंगे और उसे शाबाशी देंगे लेकिन इसके विपरीत वह गंभीर होकर कुछ सोचने लगे। 

थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा, ‘‘भाई तुम्हारे पास जितनी सम्पत्ति है करीब उतने ही लोग देश में ऐसे हैं जो अपाहिज, अनाथ हैं या निठल्ले हैं। ये लोग या तो भीख मांगकर गुजारा करते हैं या मंदिरों, अनाथालयों और धर्मशालाओं की शरण लेते हैं या फिर चोरी करते हैं इसलिए तुम्हारा धन कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाएगा और तुम्हें पुण्य भी नहीं मिलेगा।
व्यापारी दुविधा में पड़ गया। उसने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘फिर आप ही कोई रास्ता निकालें।’’ 

महात्मा ने कहा, ‘‘सेठ मेरी समझ में तुम अपने सोचे गए तरीके में थोड़ा परिवर्तन कर दो तो निश्चय ही तुम्हारा ध्येय सफल हो जाएगा।’’ व्यापारी ने उत्सुकता से पूछा, ‘‘वह कैसे महाराज?’’ 

महात्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘तुम धर्मशालाओं, मंदिरों और अनाथालयों के स्थान पर विद्यालय, उद्योग और चिकित्सालय खुलवाओ क्योंकि जब लोग स्वस्थ होंगे, शिक्षित होंगे तो वह सभी उद्यमी होंगे। जब वे उद्यम करेंगे तो भिक्षावृत्ति, चोरी और लूटपाट का अंत होगा। लोगों को दया- दान देने से ज्यादा उन्हें उद्यमी बनाने की आवश्यकता है।


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Jyoti

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