कोई अंजानी शक्ति हर रोज़ करती है मां का पूजन, जानें रहस्य

punjabkesari.in Wednesday, Sep 25, 2019 - 12:32 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हमारे भारत देश में ऐसे कई मंदिर स्थापित हैं, जोकि विश्व प्रसिद्ध भी माने गए हैं। वहीं शक्ति साधना के लिए बहुत से ऐसे शक्तिपीठ स्थापित है, जिनके बारे में शायद ही कोई जानता होगा। आज हम मां दुर्गा के एक ऐसे शक्तिपीठ के बारे में बात करेंगे जहां माता के गले का हार गिरा था। कहते हैं कि इस जगह के दर्शन करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि प्रातःकाल के समय मां की आरती व पूजा के फूल माता पर अर्पित किए हुए मिलते हैं। लेकिन ये बात कोई नहीं जानता कि ऐसा कौन कर जाता है। चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।  
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ये मंदिर मध्य प्रदेश के सतना ज़िले में स्थित मैहर नगर में 600 फीट की ऊंचाई पर हरी-भरी त्रिकुटा पहाड़ी पर स्थित है और जिसे मां दुर्गा के शारदीय स्वरूप श्रद्धेय देवी मां शारदा का अद्भुत व चमत्कारी मंदिर के नाम से जाना जाता है। जो मैहर देवी शक्तिपीठ के नाम से भी विख्यात है। मान्यता है कि नवरात्रि के दिनों में देवी के इस धाम में लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है।

क्यों माना जाता है इसे शक्ति पीठ
माना जाता है कि भगवान शंकर के तांडव नृत्य के दौरान उनके कंधे पर रखे माता सती के शव से गले का हार त्रिकूट पर्वत के शिखर पर आ गिरा था, इसलिए इस पवित्र स्थल की गणना शक्तिपीठों में की जाती है। मंदिर की खास बात ये भी है कि यहां सुबह मंदिर के कपाट खुलने से पहले ही कोई अंजानी शक्ति मां की आरती व पूजा करके चली जाती है और इस बात को लेकर सारे पंडित भी हैरान है और आज तक इसके बारे में कोई भी पता नहीं कर पाया है। 

स्थानीय लोग मानते है कि हर रोज रात 8 बजे मंदिर की आरती के बाद साफ़-सफाई होती है और फिर मंदिर के सभी कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इसके बावजूद जब मंदिर सुबह पुनः खोला जाता है तो मंदिर में मां की आरती और पूजा किए जाने के सबूत मिलते हैं। आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं।
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जानिए आल्हा और उदल कौन?  
मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन सबसे पहले आल्हा और उदल दोनों भाई ही करते हैं। माता के परम भक्त बुंदेलखंड के दो वीर योद्धा भाई आल्हा और उदल परमार के सामंत थे। कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हखंड नामक एक काव्य रचा था जिसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रन्थ में इन दो भक्त वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णनं किया गया है।आखिरी युद्ध उन्होंने सन 1182 में पृथ्वीराज चौहान के साथ किया था। पृथ्वीराज चौहान की युद्ध में हार हुई पर इस युद्ध में उदल वीरगति को प्राप्त हुए। गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया परन्तु आल्हा के मन में वैराग्य आ गया और उन्होंने संन्यास लेकर 12 वर्षों तक मां की कठोर तपस्या की थी। 
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आल्हा माता को शारदा माई कहकर पुकारते थे इसलिए प्रचलन में देवी का नाम शारदा माई हो गया। मां के परम भक्त आल्हा ने मां के आदेशानुसार अपनी तलवार उनके चरणों में समर्पित कर दी एवं देवी आज्ञा से उसकी नोक टेढ़ी कर दी थी जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया है। मंदिर परिसर में अनेकों ऐतिहासिक महत्त्व के अवशेष अभी भी आल्हा व पृथ्वीराज  चौहान के बीच जंग की गवाही देते हैं।

मंदिर के महंत बताते हैं कि अभी भी मां का पहला श्रृंगार आल्हा ही करते हैं और जब ब्रह्म मुहूर्त में शारदा मंदिर के पट खोले जाते हैं तो पूजा की हुई मिलती है। इस रहस्य पर से पर्दा हटाने के लिए कई बार वैज्ञानिकों की टीम भी यहां पहुंच चुकी है लेकिन रहस्य अभी भी बना हुआ है। मंदिर के पास ही आल्हा की स्मृति में एक सुन्दर तालाब है। कहा जाता है कि इस इलाके में दोनों भाई ज़ोर-आज़माइश के लिए कुश्ती का अभ्यास करते थे। आज भी ये अखाड़े उन वीरों की गाथा का गान करते हैं और मंदिर दर्शन करने वाले तीर्थ यात्री अखाड़े में जाकर माथा टेकते हैं। 
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मंदिर के ठीक पीछे भव्य मंदिर है जिसमें अमरत्व का वरदान प्राप्त आल्हा की तलवार उसी की विशाल प्रतिमा के हाथ में थमाई गई है। मां शारदा के मंदिर को रात दो से पांच बजे के मध्य बंद कर दिया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि इसी अवधि में ये दोनों भाई मां के दर्शन करने आते हैं और उनका पूजन-श्रृंगार करते हैं।


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