Matsya Avatar Story: भगवान विष्णु ने क्यों लिया मछली का अवतार, पढ़ें कथा
punjabkesari.in Wednesday, Dec 11, 2024 - 10:19 AM (IST)
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Matsya Dwadashi 2024: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एकादशी तिथि की तरह द्वादशी तिथि को भी हिंदू धर्म में अधिक महत्व प्रदान है। कहा जाता है इस दिन जो श्री हरि की पूजा विशेष लाभ प्राप्त करती है। तो वहीं मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा करने का विधान बताया जाता है।
Matsya Dwadashi puja: मत्स्य द्वादशी में विधि अनुसार नारायण पूजन करें। चार जल भरे पात्रों में पुष्प डालकर रखा जाता है, उन्हें तिल की खली से ढककर चार समुद्र के रूप में पूजा जाता है। श्रीविष्णु के प्रथम अवतार मत्स्य के रूप में पीली धातु की प्रतिमा का पूजन कर चारों पात्रों का दान किया जाता है।
भगवान विष्णु के मत्स्य का विधिवत दोषोपचार पूजन करें। गौघृत में हल्दी मिलाकर दीप करें, मोगरे की धूप करें। केसर चढ़ाएं। गेंदे के फूल चढ़ाएं, बेसन से बने मिष्ठान का भोग लगाएं तथा तुलसी की माला से इस विशेष मंत्र का 1 माला जाप करें। पूजन के बाद भोग प्रसाद रूप में वितरित करें।
Matsya Dwadashi puja mantra- पूजन मंत्र: ॐ मत्स्यरूपाय नमः ॐ अच्युताय नमः
Matsyavtar Ki Katha: भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्यावतार लिया था। सतयुग की बात है एक दिन राजा सत्यव्रत को नदी में स्नान करते समय एक मछली प्राप्त हुई। राजा ने उसे वापिस नदी में डाल दिया तो मछली बोली," राजा मेरी रक्षा करो इस जल में रहने वाले बड़े-बड़े जीव-जंतु मुझे खा जाएंगे।"
वह उसे अपने कंमडल में डाल कर राजमहल ले आए। वहां आकर उसका आकार असमान्य तौर पर बढ़ने लगा। जब वह राजमहल के किसी भी पात्र में पूरी नहीं आई तो राजा ने उसे फिर से नदी में बहा दिया और उसे प्रार्थना करी की अपने असली रूप में दर्शन दे।
सत्यव्रत की प्रार्थना पर मछ्ली ने विष्णु रूप में प्रकट होकर सत्यव्रत से कहा की "सात दिन बाद प्रलय होगी तब तुम एक विशाल नाव में सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना व मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आकर तुम्हें पार लगाऊंगा"।
समय के अनुसार वही सब कुछ हुआ तथा प्रलय के बाद मत्स्य रूप धारी श्री हरि ने राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान का उपदेश दिया। जो मत्स्यपुराण के नाम से प्रसिद्ध है।
दूसरी मान्यता के अनुसार जब हयग्रीव ने वेदों को चुरा कर सागर की गहराई में छुपा दिया था। तब श्री हरि ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त कर फिर से स्थापित किया था।