Matru Shradh Siddhpur: दुनिया का इकलौता तीर्थ जहां होता है मां के लिए श्राद्ध
punjabkesari.in Thursday, Sep 11, 2025 - 02:56 PM (IST)

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Matrugaya Tirth Place Siddhpur : क्या आपने कभी सोचा है कि श्राद्ध हमेशा पितरों यानी पिता और पूर्वजों के लिए ही क्यों किया जाता है? लेकिन गुजरात का एक ऐसा अनोखा तीर्थ है, जहां श्राद्ध सिर्फ और सिर्फ मां के लिए किया जाता है। जी हां! सिद्धपुर, जिसे मातृगया धाम भी कहा जाता है, दुनिया का इकलौता स्थान है, जहां पुत्र अपनी मां की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पिंडदान करता है।
कहां है सिद्धपुर
अहमदाबाद से करीब 110 कि.मी. दूर पाटन जिले में स्थित सिद्धपुर शहर को पवित्र मंदिरों की नगरी कहा जाता है। यह वही स्थान है, जहां बिंदू सरोवर स्थित है- भारत के पांच पवित्र सरोवरों में से एक। (पहला कैलाश मानसरोवर, दूसरा नारायण सरोवर, तीसरा पुष्कर सरोवर, चौथा पंपा सरोवर और पांचवा बिंदू सरोवर)। यही बिंदू सरोवर वह जगह है, जहां हजारों की संख्या में लोग हर साल कार्तिक माह में मातृ श्राद्ध करने आते हैं।
बिंदू सरोवर का रहस्य और महिमा
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, यह वही स्थान है, जहां कर्दम ऋषि ने 10,000 वर्षों तक तपस्या की थी और उनके आंसुओं की बूंदों से यह सरोवर बना। इसे ही ‘बिंदू सरोवर’ कहा गया है। यहीं पर भगवान कपिल मुनि का आश्रम भी स्थित था। कहा जाता है कि कभी देवताओं और असुरों ने यहीं समुद्र मंथन किया था और मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। इसी कारण इसे श्रीस्थल भी माना जाता है।
क्यों खास है यहां का श्राद्ध
आमतौर पर गया (बिहार) में पितरों का पिंडदान होता है लेकिन सिद्धपुर ही वह जगह है जहां केवल मां के लिए विशेष कर्मकांड का प्रावधान है। यह परंपरा इस बात को दर्शाती है कि हिंदू परिवारों में मां का महत्व सर्वोपरि है। यहां आकर पुत्र मानो मां के दूध का ऋण चुकाने की कोशिश करता है। हालांकि कहा जाता है कि मां का ऋण कभी चुकाया नहीं जा सकता, लेकिन यहां मातृ तर्पण करके लोग अपने कर्तव्य का निर्वाह जरूर करते हैं।
सदियों पुराने रजिस्टर में दर्ज हैं नाम
सिद्धपुर की सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहां के पुजारियों के पास सदियों पुराने पारिवारिक रिकॉर्ड्स मौजूद हैं। अगर कोई श्रद्धालु अपने पूर्वजों का नाम भूल जाए तो यहां के पंडित इन रजिस्टरों से नाम निकालकर तर्पण विधि कराते हैं। साथ ही यहां यह नियम है कि हर समुदाय का तयशुदा पंडित ही उनके कर्मकांड कराएगा। यानी किसी और पुजारी को उनका श्राद्ध कराने का अधिकार नहीं है। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।
कपिल मुनि का पूर्व से पश्चिम तक संबंध
यह भी बड़ा रोचक है कि कपिल मुनि का आश्रम न केवल सिद्धपुर (पश्चिम) में है, बल्कि गंगासागर (पूर्व) में भी है यानी पूर्व से पश्चिम तक उनका मोक्ष और तपस्या से गहरा संबंध है। यही कारण है कि लोग मानते हैं कि भगवान विष्णु ने कपिल मुनि का अवतार ही जनसाधारण को मोक्ष दिलाने के लिए लिया था।
क्यों बन गया सिद्धपुर अद्वितीय?
गया- पितरों का श्राद्ध
सिद्धपुर- माताओं का श्राद्ध
यानी हिंदू परम्परा ने दोनों ही रिश्तों- पिता और मां के लिए अलग-अलग मोक्षस्थल बनाए। सिद्धपुर इसलिए अद्वितीय है क्योंकि यहां न सिर्फ धार्मिक आस्था जुड़ी है, बल्कि भावनात्मक रिश्ता भी सबसे गहरा है-मां। हर साल कार्तिक माह में लाखों श्रद्धालु यहां जुटते हैं। कोई अपने हाथों से मां के मोक्ष का पिंडदान करता है, तो कोई पुराने ग्रंथों से अपनी वंशावली ढूंढता है। किसी के लिए यह धार्मिक यात्रा है, तो किसी के लिए मां के प्रति श्रद्धा का अंतिम कर्तव्य।