Manimahesh Yatra 2024: महादेव का आदेश तो ही जाएं मणिमहेश, मिट जाएंगे सभी क्लेश
punjabkesari.in Thursday, Aug 29, 2024 - 07:24 AM (IST)
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चम्बा (काकू चौहान): देवों के देव महादेव के दर्शन करना मनुष्य मात्र के लिए आसान नहीं है। समुद्रतल से लगभग 13,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कैलाश तक पहुंचने के लिए कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता है। यात्रा के लिए महादेव का आदेश भी अनिवार्य है। बिना आदेश यात्रा अधूरी रह सकती है। आदेश होने पर हर मुश्किल को पार करते हुए मणिमहेश पहुंच जाएंगे। जन्माष्टमी पर्व के छोटे स्नान के उपलक्ष्य पर इस बार मणिमहेश में यात्रियों की अथाह भीड़ उमड़ी हुई थी।
लोग विश्राम मात्र के लिए सुरक्षित स्थल ढूंढते फिर रहे थे लेकिन जगह न मिलने पर रात को भी निरंतर आगे बढ़ते जा रहे थे। कई पत्थरीले रास्तों में ही पत्थरों पर ही प्रभात होने के लिए झपकी ले रहे थे। सभी का मकसद डल झील पहुंचना था और उसके लिए वे हर परीक्षा से गुजरने को तत्पर थे।
पैरों में पड़ गए थे छाले, फिर भी सौरभ सेठी ने पूरी की यात्रा: पंजाब के जालंधर के सौरभ सेठी पहली बार मणिमहेश यात्रा पर निकले थे। हड़सर से जोत का गोठ तक सुगमता से उन्होंने यात्रा पूरी कर ली लेकिन आगे की यात्रा कठिन होती जा रही थी। किसी तरह दुनाली पहुंच गए। यहां से मणिमहेश के लिए 2 रास्ते हैं। कम दूरी वाला रास्ता पुल पर जाम होने के कारण लगभग बंद था। इसलिए वैकल्पिक मार्ग से आगे बढ़ने का निर्णय लिया लेकिन खड़ी चढ़ाई में उनकी सांसें फूलने लगी। श्रद्धा के चलते वह निरंतर आगे बढ़ते रहे। रात के 10 बज चुके थे। सुंदरासी में रात को रुकने के लिए कोई स्थान नहीं बचा था।
एक टैंट में 2 से 3 लाेगों के सोने की जगह शेष थी। हम 4 लोग थे। रेट पूछने पर 2000 रुपए मांगे। बिना किसी मोल भाव रुपए दे दिए और वहां रुक गए। सुबह 6 बजे उठते ही फिर से यात्रा प्रारंभ की। इस तरह 15 घंटे में आस्था के बल पर वह महादेव के आदेश पर डल झील पहुंचे।
सांकेतिक रूप से मिलता है शिव का आदेश
मणिमहेश की यात्रा सुगम नहीं है। यहां भोले के हुकुम से ही जाया जाता है। जो भी कैलाश पहुंचते हैं वह शिव द्वारा आदेशित होते हैं। आदेश न होने पर हजारों लोग बीच रास्ते से भी वापस हो जाते हैं। कुछ अकस्मात दुख झेलते हैं। श्रद्धा से ही जाएं। शक्तियां हमेशा दुर्गम स्थलों, ऊंचे पहाड़ों और एकांत में रहती हैं। इसलिए आस्था को हमेशा साथ लेकर चलें। 8 घंटे की सीधी चढ़ाई चढ़ सकें तो ही घर से कदम उठाएं। क्या हम इतना सफर एकदम चढ़ाई का चल सकते हैं? तभी घर से कदम उठाएं। -भूपिंद्र जसरोटिया अणजाण, कवि एवं समाजसेवी चम्बा।