प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है ‘मालशेज घाट’

punjabkesari.in Friday, Nov 26, 2021 - 12:42 PM (IST)

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मॉनसून में आसमान से बरसाती रिमझिम फुहारों के बीच पुणे शहर से कुछ ही दूरी पर बसा मालशेज घाट बेहतरीन पिकनिक स्पॉट हो सकता है। यहां की खूबसूरत वादियां आपके सारे तनाव और थकान को भुला देंगी। वैसे तो मालशेज घाट हर मौसम में पर्यटकों को लुभाता है लेकिन मॉनसून में इसकी खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। यहां पहाड़ से जंगल और वादियों का बेहद रमणीय नजारा दिखता है। आस-पास कई झरने गिरते दिखेंगे। यहां की हरियाली मॉनसून के दौरान बेहतरीन नजारा प्रस्तुत करती है।

मालशेज घाट को आप एक पहाड़ी दर्रे की तरह मान सकते हैं जोकि पश्चिमी घाट शृंखला की ऊंची और उबड़-खाबड़ पहाडिय़ों में स्थित है। पहाडिय़ों से घिरे मालशेज घाट में यदि आप मॉनसून के दौरान आते हैं तो समझिए कि यहां आपके पैसे वसूल हो जाएंगे। इस दौरान यहां के हरे-भरे पहाड़ और ठंडक का अहसास आपके आनंद को कई गुना बढ़ा देगा।  मॉनसून के दौरान यहां के झरनों की सुंदरता और हरियाली इतनी बढ़ जाती है कि टूरिस्ट्स की नजरें उन्हें निहारती ही रह जाती हैं। उस दौरान आपको सैंकड़ों तरह के फूल-पौधे तथा जानवर भी दिखेंगे। बारिश के दिनों में यहां का मौसम इतना निराला होता है कि प्रवासी पक्षी फ्लेमिंगो भी इस जगह पर सुंदर स्थलों  से अपना डेरा डालने के लिए आते हैं।

दर्शनीय स्थल
मालशेज घाट से 40 किलोमीटर की दूरी पर शिवनेरी किला स्थित है। इसी किले में छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म हुआ था। मालशेज घाट पर कुछ लोग आपको ट्रैकिंग करते भी दिख जाएंगे। पहाड़ों में ट्रैकिंग के दौरान जंगल और वादियों का बेहद रमणीय नजारा दिखता है। साथ ही इस दौरान आसपास कई झरनों को करीब से अनुभव भी किया जा सकता है।

प्रमुख स्थलों से दूरी
मुम्बई से मुरबाड़ होते हुए मालशेज घाट की दूरी 154 किलोमीटर है। पुणे से आलेफाटा होते हुए इसकी दूरी 164 किलोमीटर जबकि आलेफाटा से मालशेज घाट की दूरी महज 39 किलोमीटर है।

पश्चिमी घाट के पहाड़ों की कुछ खास बातें
मालशेज घाट तथा आसपास के पहाड़ काफी मजबूत हैं  जिनमें भू-स्खलन बहुत कम होता है। इसका कारण है कि ये ज्वालामुखी से बने हैं।  करोड़ों साल पहले जब भारतभूमि अफ्रीका से मिली हुई थी या फिर समुद्र में तैर रही थी, तब इस क्षेत्र में ज्वालामुखी थे, जो लगातार लावा उगलते रहते थे। उस लावे से पश्चिमी घाट के पहाड़ बने- एकदम कठोर। कालांतर में भारतभूमि एशियाभूमि से मिली, हिमालय का जन्म हुआ और ज्वालामुखी भी शांत हुए लेकिन तब तक यहां पहाड़ बन चुके थे- लावे के पहाड़। एकदम सीधे खड़े और कठोर। धुर से धुर तक महाराष्ट्र से केरल तक ये करीब-करीब ऐसे ही हैं। इन पहाड़ों के इस तरफ तो खड़ी ढाल है, उस तरफ हल्की ढलान है। जो नदी इन पहाड़ों के उस तरफ से निकलती है वह 50 किलोमीटर दूर अरब सागर में नहीं गिरती बल्कि 1000 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी की ओर चल देती है और इन पहाड़ों से जो नदियां अरब सागर में मिलती हैं, वे बहुत छोटी-छोटी नदियां होती हैं।

आप ही बताइए कि कोई नदी या जलधारा जब पश्चिमी घाट में पैदा होकर अरब सागर में मिलने चलेगी तो क्या चुपचाप बह लेगी? अजी नहीं बहेगी। ये खड़े पहाड़ उसे चुपचाप बहने ही नहीं देंगे। ऐसे ऊंचे-ऊंचे जलप्रपात बनाते हैं कि आप हैरान हो जाओगे। ऊंचे जलप्रपात हैं, इतना भी काफी था लेकिन यहां तो ‘रिवर्स वाटरफॉल’ भी हैं। मतलब पानी नीचे गिरने की बजाय ऊपर आसमान में उड़ जाता है। यह कोरी गप नहीं है। दरअसल, कई बार यहां हवा इतनी तेज चलती है कि झरने का पानी ऊपर की ओर उड़ जाता है। इन पहाड़ों की एक और खास बात है कि ये वर्षारोधी पर्वत हैं। अरब सागर से जो भी हवा चलती है, उसमें स्वाभाविक रूप से नमी होती है। वे जब इन खड़े पहाड़ों से टकराती हैं, तो सारी नमी यहीं निकल जाती है और इन पर्वतों के पार पहुंचती है शुष्क हवा।  इनके उस तरफ दक्कन का पठार है जो भारत के सबसे सूखे क्षेत्रों में से एक है।  

कहां ठहरें?
यदि संभव हो तो मालशेज घाट आने से पहले ही यहां ठहरने की व्यवस्था कर लें। अगर आप जुलाई-अगस्त के मानसून सीजन में यहां आ रहे हैं तो एडवांस बुकिंग करा लें क्योंकि इस सीजन में ज्यादातर होटलों के कमरे बुक हो जाते हैं। महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एम.टी.डी.सी.) का ‘फ्लेमिंगो हिल्स’ यहां का सबसे बड़ा रिजॉर्ट है। इसके आस-पास का नजारा भी आंखों को सुकून देने वाला है और यहां खाने की भी वैरायटी मिलती है।

कैसे पहुंचे?
नजदीकी एयरपोर्ट मुम्बई 154 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यदि आप रेल के जरिए मालशेज आना चाहते हैं तो कल्याण पहुंच सकते हैं। कल्याण से यहां के लिए राज्य परिवहन की बसें चलती हैं। इस तरह की बसें कर्जत और पुणे से भी ली जा सकती हैं।


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Content Writer

Jyoti

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