Makar Sankranti 2022: मकर सक्रांति की तारीख को लेकर हैं कन्फ्यूज, पढ़ें कब हैं शुभ योग

punjabkesari.in Monday, Jan 10, 2022 - 08:01 AM (IST)

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Makar Sankranti 2022: भारतीय संस्कृति में और हमारे शास्त्रों में मकर सक्रांति पर्व का बहुत महत्व है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष फल मिलता है। ये भी कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन देवता पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और गंगा स्नान करते हैं। शास्त्रों में भी कहा गया है कि मकर सक्रांति के दिन आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। अंधकार का नाश व प्रकाश का आगमन होता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का बहुत महत्व है।

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2022 में कुछ लोग मकर संक्रांति की तारीख को लेकर कन्फ्यूज हैं। इस बार मकर संक्रांति की शुरूआत 14 जनवरी को रोहणी नक्षत्र में हो रही है जो कि शाम को 08 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। इस नक्षत्र को शुभ नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र में स्नान दान और पूजन करना शुभफलदायी होता है। इसके साथ ही इस दिन ब्रह्म योग और आनंदादि योग का निर्माण हो रहा है जिसे शास्त्रों में अनंत फलदायी माना जाता है।

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मकर संक्राति शुभ मुहूर्त
मकर संक्राति का पुण्य काल 14 जनवरी को दोपहर 02:43 से शाम 05:45 तक है और पुण्य काल की कुल अवधि- 03 घण्टे 02 मिनट रहेगी। इसी तरह मकर संक्राति महा पुण्य काल दोपहर 02:43 से रात्रि 04:28 तक 01 घण्टा 45 मिनट रहेगा।

ज्योतिषीय गणना के अनुसार मकर संक्रांति से ही सूर्य उत्तरायण होते हैं। पौष मास में मनाए जाने वाले इस पर्व को विशेष माना गया है। मकर संक्रांति में 'मकर' शब्द मकर राशि को इंगित करता है जबकि 'संक्रांति' का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति को सभी संक्रांति में अति महत्वपूर्ण माना गया है। मकर संक्रांति को खिचड़ी का पर्व भी कहा जाता है। मकर संक्रांति पर स्नान और दान का विशेष महत्व बताया गया है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं। शनि, सूर्य के पुत्र कहलाते हैं। पिता-पुत्र का संबंध होने के बाद भी पिता और पुत्र में नहीं बनती है यानि इनके आपस में संबंध मुधर नहीं माने जाते हैं। इसके बाद भी सूर्य पुत्र की राशि में लगभग एक माह के लिए आते हैं। एक माह तक पिता पुत्र के घर में रहते हैं और यह पर्व पिता पुत्र के मिलन का प्रतीक बनता है। जिन लोगों की जन्म कुंडली में सूर्य अशुभ या कमजोर हैं, उन्हें पौष मास में सूर्य भगवान की विशेष पूजा करनी चाहिए। सूर्य देव की पूजा करने से जीवन में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। सूर्य को प्रसन्न करने के लिए उन्हें सूर्योदय के समय अर्ध्‍य देने के साथ आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है।

यह भी माना जाता है कि महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। यशोदा जी ने जब श्री कृष्ण जी के जन्म के लिए व्रत किया था, तब भी सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। कहा जाता है कि तभी से मकर संक्रांति का प्रचलन शुरू हो गया था।
     
मकर संक्रांति का पर्व देश भर में अलग-अलग नामों से भी मनाया जाता है। मकर संक्रांति को उत्तर भारत के कुछ इलाकों में खिचड़ी के पर्व के रूप में मनाते हैं तो वहीं दक्षिण भारत के तमिलनाडु व केरल में इसे पोंगल के रूप में मनाते हैं। इस दिन लोग प्रात: नदी में स्नान करने के बाद अग्निदेव व सूर्यदेव की पूजा करते हैं। मंदिरों व ब्राह्मणों व गरीबों को दान देते हैं। इसके बाद तिल के लड्डू, खिचड़ी और पकवानों की मिठास के साथ मकर संक्रांति का पर्व मनाते हैं। गुजरात और दिल्ली समेत देश के कई इलाकों में आज के दिन लोग पतंगबाजी भी करते हैं।

मकर संक्रांति को मौसम में बदलाव का सूचक भी माना जाता है। इस दिन से ही ऋतु में परिवर्तन आरंभ हो जाता है। मकर संक्रांति से सर्दी में कमी आने लगती है यानि शरद ऋतु के जाने का समय आरंभ हो जाता है और बसंत ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है। मकर संक्रांति के बाद ही दिन लंबे रातें छोटी होने लगती हैं। इस दिन खिचड़ी का दान बहुत ही पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है।

मकर सक्रांति इस बार बेहद शुभ और मंगलकारी योग में आई है, जब 3 ग्रह शनि, सूर्य और बुध का मकर राशि में संगम होगा और कई राशियों को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी।

गुरमीत बेदी
gurmitbedi@gmail.com

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Content Writer

Niyati Bhandari

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