गांधीगिरी या गांधीवाद? किसे चुन रहा है भारत
punjabkesari.in Friday, Aug 22, 2025 - 06:00 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Mahatma Gandhi story: समस्त विश्व में न्याय एवं अपने हक के लिए हाहाकार एवं हिंसाचार हो रहा है पर क्या कभी किसी ने इन सभी के पीछे का कारण जानने की कोशिश भी की है? शायद नहीं! क्योंकि आधुनिक जीवन जीने वाला मनुष्य तो पहले अपने जीवन की चिंता करता है क्योंकि वह सोचता है कि औरों के सुख-दुख की चिंता के लिए भगवान बैठे हैं न, फिर हम अपना समय क्यों जाया करें। पर एक महत्वपूर्ण प्रश्न खुद से पूछना अनिवार्य हो जाता है कि क्या उस सर्वशक्तिमान द्वारा जो नियम मानव के लिए बनाए गए हैं, उनका पालन हम उचित रूप से कर रहे हैं या उसके बनाए नियम एवं कायदों को भुलाकर हमने अपने ही नियम-कानून बना लिए हैं? यह उल्लंघन ही आगे चलकर इंसानियत के पतन का कारण बनेगा।
प्रकृति के नियमानुसार संसार में हर जीव सौहार्दपूर्ण तरीके से जीवन व्यतीत करता है। जैसे गाय कभी मांस नहीं खाती, शेर कभी घास नहीं खाता, चिडिय़ा अपने बनाए घौंसले में ही रहती है। इनकी भेंट में आज मनुष्य क्या से क्या कर बैठा है? सुंदर-सुंदर बंगले, खूबसूरत बाग-बगीचे, घूमने-फिरने के अनेक साधन बनाकर ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहा है पर क्या जल, वायु, अग्नि, गर्मी, सर्दी आदि पर साइंस के चमत्कारों द्वारा अपना स्वामित्व जताने वाला मनुष्य अपने आप को निर्भय, दयालु, कृपालु, परोपकारी, स्नेही, दृष्टित, सुखी व संतुष्ट कह सकता है? बिल्कुल नहीं! भले दिखावे के लिए आज हमारे घरों में रेफ्रिजरेटर चल रहे हैं परन्तु दिलों में तो देखो, हर समय बगैर बिजली के भी हीटर जल रहे हैं। क्या यह सत्य नहीं है? कड़वा ही सही, परंतु यही सत्य है।
आज भले ही हम नृत्य नाटिकाओं एवं फिल्मों के माध्यम से देवी-देवताओं का रूप धारण कर लेते हैं पर क्या केवल अच्छा मेकअप करके, स्वयं की सूरत उनसे भी ज्यादा सुन्दर बनाके हम अपनी सीरत भी उन जैसी बना सकते हैं?
नकल करना तो बड़ा आसान है परंतु चरित्र भी उन जैसा हो, इसके लिए हमें बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी और वह भी अभी करनी होगी क्योंकि समय अब बहुत थोड़ा रह गया है। हम देख ही रहे हैं कि प्राकृतिक आपदाएं किस कदर रौद्र रूप धारण करती जा रही हैं। एक ही पिता परमात्मा की संतानें एक-दूसरे के खून की प्यासी बन पड़ी हैं। सत्ता और धन की लोलुपता में मानव इतना नीचे गिर चुका है कि अब तो केवल परमात्मा ही उसे इस दलदल से बाहर निकाल सकते हैं।
बापू गांधी का राम राज्य का जो सपना था, उसके सामने आज हम मनुष्यों ने रावण-राज्य की स्थापना कर दी है। क्या यह सपना कभी साकार नहीं होगा? नहीं ऐसा नहीं है यदि हम सचमुच रामराज्य चाहते हैं, तो हमें उस एक सर्वशक्तिमान परमात्मा द्वारा दिए हुए दिव्य गुणों को फिर से अपने भीतर उजागर कर, उनकी रौशनी से औरों के जीवन के अंधेरों को मिटाकर एक नई सृष्टि का निर्माण करना होगा। यह कार्य जितना सुनने में लगता है, उतना मुश्किल भी नहीं है। यदि हम सब एक संकल्प, एक लक्ष्य लेकर आगे बढ़ेंगे तो रामराज्य आया की आया।