वस्तुओं का संग्रह करने से पहले पढ़ें गांधी जी की ये अहम सीख
punjabkesari.in Saturday, Feb 11, 2023 - 08:52 AM (IST)
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एक समय की बात है, जब गांधी जी के पुत्र कांतिभाई सेवाग्राम में आश्रमवासी की तरह रहने के लिए आए। कांतिभाई को आश्रम की ओर से उपयोग करने के लिए 2 धोती दी गईं। यह नियम सभी आश्रम वासियों के लिए निश्चित था। कांतिभाई ने गांधी जी से निवेदन किया, बापू, 2 धोतियों से मेरा काम नहीं चलेगा। कम से कम एक धोती तो मुझे और दी जाए।
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गांधी जी ने कहा 2 धोतियों में तो मेरा और सभी आश्रम वासियों का अच्छी तरह काम चल जाता है। तुम्हें तीसरी धोती की जरूरत क्यों है ? यहां हम सब काफी सादगी और मितव्ययिता से रहते हैं। कांतिभाई ने गांधी जी को आश्वस्त करना चाहा कि प्रवास आदि के लिए एक धोती साथ में अतिरिक्त रखी जाए, तो ठीक रहेगा। परन्तु गांधी जी को यह तर्क समझ में नहीं आया। उन्होंने कहा जनता को पाई-पाई का हिसाब देना होता है। हम स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि हम उनके द्वारा दिए गए धन को चाहे जैसा खर्च करें।
उन्होंने कहा कि यह सोचना गलत होगा कि हमें कोई पूछने वाला नहीं है। हमारी जनता के प्रति जवाबदेही है और मैं तो कहता हूं कि सुविधाओं का ख्याल करने वालों को सेवाग्राम से कोई संबंध ही नहीं रखना चाहिए। यहां रहना है तो संयम से ही रहना होगा।
गांधी जी का यह व्यवहार देखकर वहां मौजूद एक पत्रकार ने गांधी जी से पूछा, बापू एक धोती की ही तो बात है। एक छोटी सी बात पर आप इतना जोर क्यों दे रहे हैं ?
गांधी जी ने तब उस पत्रकार से कहा, ‘‘इसे छोटी-सी बात मत समझो। यह संस्कारों की बात है। संग्रह की भावना इसी से उपजती है और समाज में विषमता पैदा करती है।’’
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