महालक्ष्मी के इस मंदिर में चढ़ती है पहली फसल रहस्य जानकर चौंक जाएंगे आप

punjabkesari.in Friday, Dec 21, 2018 - 03:15 PM (IST)

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महाराष्ट्र में पालघर जिले के डहाणू में महालक्ष्मी का एक ऐसा मंदिर है, जहां खेत की पहली फसल से महालक्ष्मी की पूजा होती है। पितृ मावस्या के दिन यहां आदिवासी मेला लगता है। यहां के सभी किसान अपने खेत में पैदा होने वाले धान, बाजरा, ककड़ी, गोभी सहित विविध प्रकार की सब्जी तथा फल चढ़ाकर मां की पूजा करते हैं। उनका मानना है कि मां को खेत की फसल अर्पित करने से उनके घर में सुख-शांति तथा पैदावार में बरकत होती है।
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महालक्ष्मी देवी मंदिर के विषय में मंदिर के पुजारी कहते हैं कि प्राचीन काल में एक बार मां महालक्ष्मी कोल्हापुर से भ्रमण पर निकलीं। उस समय पांडव वनवास काट रहे थे। मां जब डहाणू के पास पहुंचीं तो बहुत रात हो गई थी, उस समय उनकी मुलाकात भीम से हुई। भीम ने भूषण से सजी-धजी मां के सुंदर रूप को जब देखा तो वे उन पर मोहित हो गए। उन्होंने मां के सामने शादी का प्रस्ताव रखा।
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मां ने उनकी नीयत साफ न दिखने पर एक शर्त रखी। देवी ने कहा कि अगर एक ही रात में सूर्या नदी को बांध दोगे तो मैं शादी कर लूंगी। भीम ने नदी पर बांध बनाना शुरू कर दिया। मां को लगा कि अब अनर्थ होने वाला है तो उन्होंने मुर्गे का रूप धारण कर कुकडूं कूं की आवाज लगाई। भीम ने सोचा कि सुबह हो गई और वह अपनी हार मान कर वहां से चल दिए।
मां रानशेत के पास स्थित भूसल पर्वत की एक गुफा में जाकर बैठ गईं। समय बीतता गया। आदिवासी लोग मां के दर्शन के लिए गुफा में आने लगे। एक आदिवासी महिला भक्त गर्भवती होने पर भी मां के दर्शन के लिए गई। जब वह पहाड़ चढ़ रही थी तो उसे चक्कर आ गया। वह बेहोश होकर गिर गई। मां को उस पर तरस आया। मां ने कहा कि आज से तुम ऊपर मत आना, अब मैं ही नीचे आ रही हूं। मां पर्वत से उतर कर वलवेढे गांव में आकर बस गईं। चैत्र नवरात्रि में यहां माता जी को ध्वज चढ़ाने की परंपरा है। जव्हार के तत्कालीन राजा मुकने घराने का ध्वज ही मां के मंदिर पर चढ़ाया जाता है। उस ध्वज को वाघाडी गांव के पुजारी नारायण सातवी चढ़ाते हैं।
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Niyati Bhandari

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