महाभारत: विनम्रता में है सफलता, भीष्म पितामह ने पांडवों को दिया था ये उपदेश
punjabkesari.in Monday, Jul 04, 2022 - 12:37 PM (IST)
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महाभारत का धर्मयुद्ध अपने अंतिम चरण में था। भीष्म पितामह बाण शय्या पर लेटे जीवन की अंतिम घडिय़ां गिन रहे थे। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। धर्मराज युधिष्ठिर जानते थे कि पितामह उच्चकोटि के ज्ञान और जीवन संबंधी अनुभव से सम्पन्न हैं। वह अपने भाइयों और पत्नी सहित उनके समक्ष पहुंचे और उनसे विनती की कि पितामह, ‘‘आप विदाई की बेला में हमें ऐसी शिक्षा दें जो सदैव हमारा मार्गदर्शन करे।’’
तब भीष्म ने बड़ा ही उपयोगी जीवन दर्शन समझाते हुए नदी और समुद्र के संवाद की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि नदी जब समुद्र तक पहुंचती है तो अपने जल के प्रवाह के साथ बड़े-बड़े वृक्षों को भी बहाकर ले जाती है। एक दिन समुद्र ने नदी से प्रश्र किया, ‘‘तुम्हारा जल प्रवाह इतना शक्तिशाली है कि उसमें बड़े-बड़े वृक्ष भी बहकर आ जाते हैं पर कभी कोमल घास नहीं आती। ऐसा क्यों?’’
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नदी का उत्तर था जब-जब मेरे जल का बहाव तेज और प्रलयंकारी होता है, तब घास झुक जाती है और मुझे मार्ग दे देती है, किन्तु वृक्ष अपनी कठोरता के कारण ऐसा नहीं कर पाते, इसलिए मेरा प्रवाह उन्हें बहा ले आता है। इस छोटे से उदाहरण से हमें सीखना चाहिए कि जीवन में हमेशा विनम्र रहें तभी व्यक्ति का अस्तित्व बना रहता है। सभी पांडवों ने भीष्म के इस उपदेश को ध्यान से सुनकर अपने आचरण में उतारा और सुखी हो गए।
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