Mahabharat: श्रीकृष्ण के पुण्य इस महारथी के आगे पड़ गए थे छोटे
punjabkesari.in Wednesday, Mar 01, 2023 - 10:17 AM (IST)
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Grihastha ashram: नियमों में रहने वाले ‘गृहस्थों’ को हमारे शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ स्वीकार किया गया है क्योंकि वही अन्य तीनों आश्रम ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और संन्यास का आधार हैं।
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चाणक्य ने आदर्श गृहस्थ कैसा हो? उसका वर्णन करते हुए लिखा है, ‘‘घर आनंदप्रद हो, संतानें बुद्धिशाली हों, पत्नी प्रिय बोलने वाली हो, सच्चे मित्र हो, प्रचुर धन हो, पत्नी में प्यार हो, सेवक आज्ञाकारी हो, अतिथि सत्कार हो, शिव जी की आराधना होती हो, घर में अन्न पान की सुंदर व्यवस्था हो तथा सज्जनों का संग हो - ऐसा गृहस्थाश्रम धन्य है।’’
गृहस्थाश्रम की महिमा अकारण नहीं है। भक्त, ज्ञानी, संत, महात्मा, विद्वान, पंडित गृहस्थाश्रम से निकलकर आते हैं। उनके जन्म से लेकर शिक्षा-दीक्षा, पालन-पोषण, ज्ञान सवंर्धन गृहस्थाश्रम के मध्य ही होता है। इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है, स्वयं प्रभु भी गृहस्थ के यहां प्रकट होते हैं।
प्रभु भजन और नाम स्मरण के लिए सबसे अच्छा आश्रम घर-परिवार ही है। इसमें मनुष्य प्रतिदिन आत्म संयम सीखता है, परिजन आदि में अपना प्रेम बढ़ाता है।
यही क्रम धीरे-धीरे आगे बढ़ता जाता है और मनुष्य सम्पूर्ण जड़ चेतन में प्रेम को समाया देखता है। उसे परमात्मा की दिव्य ज्योति दिखती है। पारिवारिक जीवन की परिभाषा करते हुए ऋषियों-मनीषियों ने कहा है, ‘‘परिवार परमात्मा की परिभाषा से स्थापित एक ऐसा साधक है जिसके द्वारा हम आत्म विकास कर सकते हैं। आत्म में सतोगुण परिपुष्ट कर सुख समृद्ध जीवन प्राप्त कर सकते हैं।’’
Krishna arjun story: प्राचीन काल में सुधन्वा में जो अद्भुत शक्ति प्रकट हुई थी जिसके द्वारा उसने अर्जुन को भी पराभूत कर दिया था, वह केवल गृहस्थ धर्म के पालन से ही थी।
Mahabharat: घटना कुछ इस प्रकार है- महाभारत के मध्य दोनों में घमासान युद्ध छिड़ गया। निर्णायक स्थिति आ नहीं रही थी। अंतिम निर्णय इस बात पर हुआ कि फैसला तीन बाणों में ही होगा-या तो इतने में ही किसी का वध हो जाएगा, अन्यथा युद्ध बंद करके दोनों पक्ष पराजय स्वीकार करेंगे।
जीवन-मरण का प्रश्र सामने आ खड़े होने पर श्री कृष्ण को भी अर्जुन की सहायता करनी पड़ी। उन्होंने हाथ में जल लेकर संकल्प किया कि ‘‘गोवद्र्धन उठाने और ब्रज की रक्षा करने के पुण्य को मैं अर्जुन के बाण के साथ जोड़ता हूं।’’
आग्नेयास्त्र और भी प्रचंड हो गया। काटने का प्रत्येक उपचार कम पड़ रहा था। सो सुधन्वा ने भी संकल्प लिया कि एक पत्नी व्रत पालने का मेरा पुण्य भी इस अस्त्र के साथ जुड़े।
दोनों ने दोनों के अस्त्र मध्य में काटने के प्रयत्न किए। अर्जुन का अस्त्र कट गया और सुधन्वा का आगे बढ़ा किन्तु निशाना चूक गया।
दूसरा अस्त्र फिर उठा। इस बार श्री कृष्ण ने अपना पुण्य उसके साथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘ग्राह से गज को बचाने और द्रौपदी की लाज बचाने वाला पुण्य अर्जुन के बाण के साथ जुड़ जाए।’’
दूसरी ओर सुधन्वा ने भी वैसा ही किया, ‘‘मैंने नीतिपूर्वक ही उपार्जन किया है और चरित्र के किसी भी पक्ष में त्रुटि न आने दी हो तो वह पुण्य इस अस्त्र के साथ जुड़ जाए।’’
इस बार भी दोनों अस्त्र आकाश में टकराए और सुधन्वा के बाण से अर्जुन का बाण आकाश में ही कटकर धाराशायी हो गया। अब केवल तीसरा बाण ही शेष था। इसी पर अंतिम निर्णय निर्भर था।
श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘मेरे बार-बार अवतार लेकर धरती का भार उतारने का पुण्य अर्जुन के बाण के साथ जुड़े।’’
दूसरी ओर सुधन्वा ने कहा, ‘‘अगर मैंने स्वार्थ का क्षण भर चिंतन किए बिना मन को निरंतर परमार्थ में रखा हो तो मेरा वह पुण्य बाण के साथ जुड़े।’’
इस बार भी सुधन्वा का बाण विजयी हुआ। उसने अर्जुन का बाण काट दिया। दोनों में कौन अधिक सामर्थ्यशाली है इसकी जानकारी देवलोक तक पहुंची तो वे सुधन्वा पर आकाश से पुष्प बरसाने लगे और युद्ध समाप्त कर दिया गया।
श्री कृष्ण ने सुधन्वा की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘तुमने सिद्ध कर दिया कि गृहस्थ धर्म किसी भी तपस्वी से कम नहीं होता।’’
इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि गृहस्थ धर्म सभी अन्य धर्मों से श्रेष्ठ और उत्तम है।