Mahabalipuram: आज भी अनसुलझे हैं इस अनोखे मंदिर के रहस्य

punjabkesari.in Friday, Aug 06, 2021 - 12:26 PM (IST)

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Mahabalipuram Tourism 2021: यदि आपके पास 10 रुपए का पुराना नोट हो जो आज भी प्रचलन में है तो उसका पिछला हिस्सा ध्यान से देखें। इस पर आपको दो मृगों के रेखा चित्र नजर आएंगे जिसमें एक मृग दूसरे के निकट बैठा है और दूसरा अपने पिछले पैर से अपना मुंह सहला रहा है। यह किसी चित्रकार की कल्पना नहीं है अपितु चेन्नई के समीप महाबलीपुरम के मंदिर में चट्टानों पर उकेरी गई मूर्तियों में से एक कलाकृति है जिसके चित्र आप यहां देख सकते हैं।

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महाबलीपुरम का एक और मुख्य आकर्षण है- कृष्ण की मक्खन गेंद जिसे स्थानीय लोग ‘कृष्णा’ज बटर बॉल’ कहते हैं। यह पुराना गोल पत्थर है जिसका व्यास 5 मीटर और ऊंचाई 20 फुट है। इसे देखकर लगता है, यह किसी समय भी लुढ़क सकता है। 1908 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर आर्थर ने इसे हटवाने के लिए 7 हाथियों से खिंचवाया था परंतु यह टस से मस नहीं हुआ और गुरुत्व के सभी नियमों को ताक पर रख कर आज भी ढलान वाली चट्टान पर 45 डिग्री के कोण पर कायम है।

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तमिलनाडु में कई प्राचीन शहर हैं जिनमें से एक है महाबलीपुरम जो समुद्र तट पर स्थित है। यह दक्षिण भारत के प्रमुख शहर चेन्नई से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित एक मंदिर कस्बा है। यहां अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं, तट मंदिर और रथ गुफा मंदिर इनमें से सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं। 

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इस शहर का इतिहास बहुत ही प्राचीन और भव्य है। इसका नाम महान दानवीर असुर राजा महाबली के नाम पर रखा गया था। 7वीं और 10वीं सदी के पल्लव राजाओं द्वारा बनाए गए कई मंदिर और स्थान यहां की शोभा बढ़ा रहे हैं। यहां प्राचीनकाल में सैंकड़ों मंदिर थे। यह स्थान कई भव्य मंदिरों, स्थापत्य कला और सागर-तटों के लिए बहुत प्रसिद्ध था। 

महाबलीपुरम के बारे में माना जाता है कि इसके तट पर 17वीं शताब्दी में 7 मंदिर स्थापित किए गए थे और एक तटीय मंदिर को छोड़ कर शेष 6 मंदिर समुद्र में डूब गए थे। महाबलीपुरम में 8 रथ हैं जिनमें से पांच को महाभारत के पात्र पांच पाण्डवों और एक द्रौपदी का नाम दिया गया है। इनका निर्माण बौद्ध विहार शैली तथा चैत्यों के अनुसार किया गया है अपरिष्कृत तीन मंजिल वाले धर्मराज रथ का आकार सबसे बड़ा है। द्रौपदी का रथ सबसे छोटा है और यह एक मंजिला है और इसमें फूस जैसी छत है। अर्जुन और द्रौपदी के रथ क्रमश: शिव और दुर्गा को समर्पित हैं।

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शोर मंदिर
महाबलीपुरम के समुद्र तट पर स्थित यह मंदिर प्राचीन वास्तु कला का उदहारण है। भगवान शिव और विष्णु को समर्पित शोर मंदिर का निर्माण लगभग 700-728 ईस्वी के समय हुआ था। 

इसे ‘स्टोन टैम्पल’ भी कहते हैं क्योंकि मंदिर वाला भाग ग्रेनाइट पत्थर से बना हुआ है जो बहुत ही सुंदर दिखता है। मंदिर के प्रांगण में सात पगोडा की पत्थर की मूर्तियां हैं जिन्हें देखना अद्भुत है। इस मंदिर की एक अलग ही कथा है।

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पंच रथ मंदिर
महाबलीपुरम के समुद्र तट पर दूसरा मंदिर पंच रथ या पंच पांडवों का रथ नामक मंदिर है। यह एक सुन्दर स्मारक परिसर है जिसका निर्माण 7वीं सदी में महेंद्र वर्मन प्रथम और बेटे नरसिंह वर्मन प्रथम ने करवाया था।पंच रथ के पांच स्मारकों को पूरे तरीके से रथ के समान बनाया गया है जो सभी ग्रेनाइट पत्थर को खोद-खोद कर बनाए गए हैं। इसमें महाभारत की कहानी को दर्शाने वाली कलाकृतियां मिलती हैं। 

ये सभी रथ बड़े से छोटे आकार में इस प्रकार से हैं- धर्मराज रथ, भीम रथ, अर्जुन रथ, नकुल एवं सहदेव रथ और द्रौपदी रथ। ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि कांचीपुरम में 7वीं सदी में पल्लव शासन के दौरान चीनी यात्री ह्वेन त्सांग आए थे और राजा महेंद्र पल्लव ने उनकी अगवानी की थी। करीब 1300 साल बाद नवम्बर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का स्वागत करने के लिए इसी ऐतिहासिक नगरी महाबलीपुरम का चयन किया था। 

शक्तिशाली पल्लव शासकों का ममलापुरम का करीब 2000 साल पहले चीन के साथ खास संबंध था और पल्लव वंश का चीन के साथ भी संबंध रहा था। उन्होंने अपने शासनकाल में वहां दूत भेजे थे।    

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Content Writer

Niyati Bhandari

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