सुख अौर सिद्धि पाने के लिए ऐसे करें मां शैलपुत्री को प्रसन्न

punjabkesari.in Saturday, Jan 28, 2017 - 08:48 AM (IST)

हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है, लेकिन अधिकतर लोग केवल दो नवरात्रि (चैत्र व शारदीय नवरात्रि) के बारे में ही जानते हैं। आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि में हर तिथि पर माता के एक विशेष स्वरूप का पूजन किया जाता है। नवरात्रि के पहले दिन को मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। नवरात्र के प्रथम दिन घट स्थापना के साथ देवी के इसी स्वरूप का पूजन किया जाता है। मां का ये स्वरूप भक्तों को प्रसन्नता देने वाला है। 

 

माना जाता है कि मां पार्वती पूर्व जन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थी। उन्होंने दक्ष के यज्ञ कुंड में जलकर अपने प्राण त्याग दिए थे। भगवान शिव से पुन: विवाह करने के लिए मां ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण मां को हैमवती, उमा अौर शैलपुत्री के नाम से भी जाना जाता है। 

 

एक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भोलेनाथ को पाने के लिए कठोर तप किया। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर देवी पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया। विवाह के बाद माता पार्वती भोलेनाथ के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई। जिसके बाद मां पार्वती हर साल नवरात्र के नौ दिन अपने माता-पिता से मिलने पृथ्वी पर आने लगी। संपूर्ण पृथ्वी को मां का मायका माना जाता है। नवरात्र के प्रथम दिन पर्वतराज अपनी पुत्री का स्वागत कर उनका पूजन करते थे। इसलिए नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री का पूजन होता है। 

 

माता शैलपुत्री भोलेनाथ की अर्धांगिनी है। माता शैलपुत्री ने वृषभ को अपना वाहन बनाया है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल अौर बाएं हाथ में कमल है। मां का त्रिशूल इस बात का प्रतीक है कि मां अपने भक्तों की रक्षा करती हैं अौर कमल से हर रिद्घि सिद्घि प्राप्त होती है। मां शैलपुत्री के पूजन से मूलाधार चक्र जाग्रत हो जाता है। इनकी कृपा से भक्त को सुख व सिद्धि की प्राप्ति होती है। मां की प्रतिमा स्थापित होने के बाद उस स्थान पर आपदा, रोग, व्‍याधि, संक्रमण का खतरा नहीं होता। मां को प्रसन्न करने के लिए मां के ध्यान मंत्र से पूजा आरंभ करें। इसके बाद दुर्गा सप्तशती का कम से कम पहला अध्याय कवच, कीलक और अर्गला अवश्य पढ़ें।
 


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