Navratri 2020: मां शैलपुत्री का नाम ऐसे हुआ था विख्यात

punjabkesari.in Wednesday, Mar 25, 2020 - 05:37 PM (IST)

आज नवरात्रि का पहला दिन है और इस दिन माता शैलपुत्री  (Mata Shailputri) की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि माता भगवती की आराधना, संकल्प, साधना और सिद्धि का दिव्य समय है। इस दौरान माता के 9 रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी मां (Devi Maa) के विशिष्ठ रूप को समर्पित होता है और हर स्वरुप की उपासना करने से अलग-अलग प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं। आज हम आपको मां दुर्गा के पहले रूप यानि शैलपुत्री के बारे में बताने जा रहे हैं।
PunjabKesari

माँ शैलपुत्री कथा (Maa Shailputri Katha)

मां दुर्गा अपने पहले स्वरुप में शैलपुत्री (Shailputri) के नाम से पूजी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकर जी से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया जिसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया किन्तु शंकर जी को उन्होंने इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। 

देवी सती ने जब सुना कि हमारे पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं,तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने भगवान शिव को बताई। भगवान शिव ने कहा-''प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं,अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।'' शंकर जी के इस उपदेश से देवी सती का मन बहुत दुखी हुआ। पिता का यज्ञ देखने वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी।उनका प्रबल आग्रह देखकर शिवजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। 
PunjabKesari
सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बातचीत नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने ही स्नेह से उन्हें गले लगाया। परिजनों के इस व्यवहार से देवी सती को बहुत क्लेश पहुंचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहां भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है,दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का ह्रदय ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा कि भगवान शंकर जी की बात न मानकर यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।वह अपने पति भगवान शिव के इस अपमान को सहन  न कर सकीं,उन्होंने अपने उस रूप को तत्काल वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया।

वज्रपात के समान इस दारुणं-दुखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वह शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं। पार्वती,हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं। इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ।


 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Lata

Recommended News

Related News