आंखों की बीमारी से हैं परेशान तो जाएं इस मंदिर

punjabkesari.in Sunday, Feb 24, 2019 - 02:17 PM (IST)

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भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, जहां देवी-देवताओं के दर्शन करके अलग-अलग मन्नतें पूरी होती है। लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि भारत में ऐसे भी कई धार्मिक स्थल है, जहां-जहां लोगों के कई तरह के बड़े-बड़े रोग जो अनेकों दवाईयों से ठीक नहीं होते, केवल दर्शन करने से ठीक हो जाते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां के बारे में मान्यता प्रचलित है कि यहां केवल दर्शन करने से हर किसी की आंखों से जुड़ी बीमारियां ठीक हो जाती हैं। तो चलिए जानते हैं इस अनोखे मंदिर के बारे में-
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हम में से बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्हें पता होगा कि भारत में अलग-अलग जगहों पर कुल 52 शक्तिपीठ स्थापित हैं। इन शक्तिपीठों के बारे में मान्यता प्रचलित है कि यहां भोलेनाथ की पत्नी सती के शरीर के अंग गिरे थे जिन्होंने शक्तिपीठों का रूप ले लिया। आज हम उन्हीं में से एक के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जो बिहार के मुंगेर जिले से करीब 4 किमी दूर है, चंडिका स्थान और श्मशान चंडी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यहां देवी सती की बाईं आंख गिरी थी।
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पौराणिक मान्यताओं के यहां आने वालों का आंखो से संबंधित हर रोग का इलाज होता है। जी हां, मंदिर में एक खास तरह का काजल मिलता है जिसे आंखों में लगाने से व्यक्ति के आंख से संबंधित बीमारियों हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं। यहां भारी संख्या में श्रृद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्रि के दौरान तो यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है।
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तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है मंदिर
बता दें कि गंगा किनारे स्थित इस मंदिर के पूर्व-पश्चिम में श्मशान है, जिस कारण यहां अनेकों तांत्रिक तंत्र सिद्धियों के लिए आते हैं, कहा जाता है कि नवरात्र के समय मंदिर का महत्व और भी अधिक हो जाता है। मंदिर के पुजारियों के मुताबिक सुबह के समय मंदिर में 3 बजे देवी का पूजन शुरू हो जाता है। इसके अलावा शाम के समय भी यहां श्रृंगार पूजन किया जाता है। मंदिर प्रांगण में काल भैरव, शिव परिवार और बहुत सारे हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर भी स्थित हैं।
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मंदिर का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव राजा दक्ष की पुत्री अपनी पत्नी सती के जलते हुए शरीर को लेकर भ्रमण कर रहे थे, तब सती की बाईं आंख यहां गिरी थी। जिस कारण इसे 52 शक्तिपीठों में एक माना जाता है।
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कहा जाता है कि महाभारत के प्रमुख पात्र कर्ण मां चंडिका के परम भक्त थे। वह प्रत्येक सुबह मां के सामने खौलते हुए तेल की कड़ाही में कूदकर अपनी जान देते थे और मां उनके इनके बलिदान से प्रसन्न होकर उन्हें जीवनदान दे देती थी और उन्हें सोना भी देती थी, जिसे कर्ण मुंगेर के चौराहे पर ले जाकर बांट देते। यही कारण है कि इस मंदिर के इतिहास को महाभारत से जोड़ा गया है।
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कहते हैं जब इस बात का पता उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को पड़ा तब वे वहां पहुंचे और उन्होंने अपनी आंखों से पूरा दृश्य देखा।इसके बाद राजा विक्रमादित्य एक दिन कर्ण से पहले मंदिर चले गए और ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान कर खौलते हुए तेल की कड़ाही में कूद गए। मां ने उन्हें जीवित कर दिया। वह तीन बार कड़ाही में कूदे और तीनों बार मां ने उन्हें जीवनदान दे दिया।
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जब वह चौथी बार वे कूदने लगे तो मां ने उन्हें रोक दिया और वरदान मांगने को कहा। राजा विक्रमादित्य ने देवी मां से सोना देने वाला थैला और अमृत कलश मांग लिया। कहते हैं कि मां ने भक्त की इच्छा पूरी करने के बाद कड़ाही को उलटा दिया और खुद उसके अंदर अंतर्ध्यान हो गई। आज के समय में भी ये कड़ाही मंदिर में उलटी पड़ी है। कहा जाता है कि मंदिर में मां चंडिका के पूजन से पहले विक्रमादित्य का नाम लिया जाता है।
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Jyoti

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