यहां लव बर्डस को मिलाती हैं देवी मां, जानिए क्या है इस जगह का रहस्य
punjabkesari.in Sunday, May 24, 2020 - 05:07 PM (IST)
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चलिए आज हम बताते हैं हिंदू धर्म के एक प्राचीन मंदिर से जुड़ा एक ऐसा किस्सा है जो आपको इस बात पर विश्वास करने को मज़बूर कर देगा। जी हां, आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां देवी मां दो प्रेमियों को मिलवाने के लिए प्रकट हुई थी।
आइए जानते हैं इतिहास के पन्नों में दर्ज़ इस किस्साा का रहस्य-
22सौ वर्ष पुराना है इतिहास
दरअसल जिस इतिहास की हम बात कर रहे हैं वो करीब 22सौ वर्ष पुराना है। ये इतिहास छत्ती सगढ़ के डोंगरगढ़ का है जो पुराने समय में कामाख्यास नगरी के नाम से प्रसिद्ध था। बताया जाता है यहां 22सौ वर्ष पूर्व राजा वीरसेन का शासन था, जो एक प्रजापालक राजा था। यही कारण था कि हर कोई उनका बहुत मान-सम्मान करता था। इनके जीवन की सबसे दुखद बात यही थी कि उनके कोई संतान नहीं थी।
संतान की प्राप्ति के लिए पंडितों ने उन्हें शिव जी और मां दुर्गा की उपासना करने की सलाह दी। उन्होंने ऐसा ही किया बल्कि साथ ही अपने नगर में मां बम्ले श्व्री के मंदिर की स्था पना करवाई। जिसके बाद उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्त हुआ। उनके पुत्र हुए कामसेन जो कि राजा की ही तरह प्रजा के प्रिय राजा बने। लेकिन उनका पुत्र मदनादित्यन उनसे बिल्कुतल विपरीत था।
कुछ यूं शुरू हुआ राजा कमसेन के राज्यन में प्रेम का किस्सा
कि राजा कमसेन के राज्यक में एक दिन संगीत कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इसमें प्रसिद्ध संगीतज्ञ माधवनल और नृतकी कामकन्देला भी शामिल हुए। नृत्यय शुरू हुआ लेकिन उसमें लय, ताल की समीकरण कुछ ठीक नहीं बैठ रही थी। तभी माधवनल ने बताया कि आखिर किस वजह से लय, ताल का तालमेल नहीं बन पाया।
राजा कमसेन माधवनल के इस ज्ञान से काफी प्रभावित हुए और उन्हों ने माधवनल को अपनी मोतियों की माला उपहार स्व्रूप दे दी। लेकिन उसने वह माला कामकन्दमला को सौंप दी। इससे नाराज़ होकर राजा ने उसे राज्य। से बाहर निकाल दिया। उधर कामकन्दोला और माधवनल पहली ही नज़र में एक-दूसरे को अपना दिल दे बैठे थे।
एक ओर जहां कामकन्देला और माधवनल एक-दूसरे से प्रेम करने लगे थे। वहीं राजा कमसेन का पुत्र भी कामकन्देला को पसंद करने लगा। माधवनल को कुछ हो न जाए इसके डर से कामकन्दरला ने मदनादित्यक से प्रेम का झूठा नाटक रचाया। लेकिन एक दिन मदनादित्यक को सारा सच पता चल गया। जिसके बाद उसने कामकन्दाला को राजद्रोह के आरोप में बंदी बना लिया और सिपाहियों को माधवनल को खोजने के लिए भेज दिया।
उधर सिपाहियों से बचता हुआ माधवनल राजा विक्रमादित्यद के पास मदद के लिए पहुंचा। उसकी तकलीफ सुनकर राजा ने उनकी मदद की। आखिर में तमाम संघर्ष और युद्ध के बाद माधवनल को कामकन्दकला मिल गई।
परंतु राजा विक्रमादित्यि ने दोनों के प्रेम को परखने के लिए कामकन्द ला से कहा कि माधवनल की युद्ध में मृत्युद हो गई। ऐसा सुनते ही कामकन्दनला ने समीप स्थित तालाब में कूदकर अपनी जान दे दी। उधर माधवनल को जैसे ही पता चला तो उसने भी अपने प्राण त्यािग दिए। इसके बाद विक्रमादित्य ने देवी बगुलामुखी जो कि आज के समय में बम्लेकश्वभरी देवी के नाम से जानी जाती हैं, उनकी आराधना की और दोनों के लिए जीवनदान मांगा।
साथ ही मां से प्रार्थना की कि वह अपने जागृत रूप में डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थाशपित हों, ताकि सभी सच्चेप प्रेमियों को मां की कृपा और आशीर्वाद मिल सके। कहा जाता है जिसके बाद मां बम्लेसश्वेरी देवी वहां ऊंचे पर्वत पर विराजमान हो गईं।