Lotus Temple: भारत का सबसे सुंदर मंदिर, जहां नहीं है एक भी मूर्ति
punjabkesari.in Sunday, Nov 10, 2024 - 06:00 AM (IST)
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Lotus Temple: भारत में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां न तो कोई पुजारी है और न ही कोई मूर्ति। यह मंदिर है दिल्ली का लोटस टेंपल। इसे कमल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। दिल्ली में कालकाजी मंदिर, नेहरू प्लेस के पास स्थित यह मंदिर बहाई धर्म का उपासना स्थल है और शानदार वास्तुकला के कारण भारत ही नहीं, विश्व के सबसे प्रमुख और विशेष मंदिरों में से एक है।
मंदिर की विशेषता है कि यहां किसी भी प्रकार की मूर्ति नहीं है और न ही किसी तरह का धार्मिक कर्मकांड किया जाता है। इसके बजाय, यहां विभिन्न धर्मों से संबंधित पवित्र लेख पढ़े जाते हैं, जिससे यह विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के संगम का प्रतीक बन गया है। यहां पर्यटकों के लिए धार्मिक पुस्तकें पढ़ने के लिए लाइब्रेरी और आडियो-विजुअल रूम बने हुए हैं। बहाई समुदाय के अनुसार, ईश्वर एक है और उसके रूप अनेक हो सकते हैं। वे मूर्ति पूजा को नहीं मानते लेकिन नाम कमल मंदिर है। फिर भी इसके अंदर अनुष्ठान करने की अनुमति नहीं है। वहीं, किसी भी धर्म-जाति के लोग कमल मंदिर में आ सकते हैं।
लोटस टेंपल की वास्तुकला इसकी सबसे आकर्षक विशेषता है। यह इमारत 27 मुक्त-खड़े संगमरमर की पंखुड़ियों से बनी है, जो कमल के फूल की तरह दिखाई देती हैं। इन पंखुड़ियों को तीन गुच्छों में बांटा गया है, जो नौ भागों में विभाजित हैं। मंदिर के केंद्रीय द्वार पर 40 मीटर से अधिक ऊंचाई है और यहां नौ दरवाजे हैं। मंदिर में 2,500 लोगों की क्षमता वाला प्रार्थना हॉल है।
लोटस टेंपल न केवल अपनी वास्तुकला के लिए बल्कि अपनी शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक वातावरण के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां पर आने वाले लोग शांति और एकाग्रता का अनुभव करते हैं। विभिन्न धर्मों के पवित्र लेखों का पाठ और समर्पण की भावना यहां आने वालों को एक नई ऊर्जा और शांति का अनुभव कराती है। इस मंदिर को बनाने के लिए 1956 में जमीन खरीदी गई थी और उसी समय नींव डाली गई थी। 1980 में मंदिर का निर्माण शुरू किया गया और यह 1986 तक चला। 26 एकड़ में बने इस मंदिर का उद्घाटन 24 दिस बर, 1986 को किया गया।
इसका निर्माण एक प्रसिद्ध ईरानी वास्तुकार फरिबर्ज सहबा ने किया था। लोटस टेंपल ने अपनी अद्वितीय वास्तुकला और डिजाइन के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। यह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि एक स्थान है जहां लोग शांति, प्रेम और एकता का अनुभव करने आते हैं। एक अनुमान के अनुसार मंदिर की कुल स पत्ति 3000 करोड़ है और यह भारत का 20वां सबसे अमीर मंदिर बताया जाता है।
ध्यान रखें
प्रार्थना कक्ष में जूते-चप्पल पहन कर नहीं जा सकते। मंदिर में प्रवेश से पहले आप अपने जूते-चप्पल ‘जूताघर’ में जमा कर सकते हैं। मंदिर परिसर में खाने-पीने की चीजें तथा भारी सामान या बैग लेकर जाने की अनुमति नहीं है। प्रार्थना कक्ष और सूचना केंद्र में फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है। अन्य जगहों पर आप फोटोग्राफी कर सकते हैं।
बहाई समुदाय को जानिए
बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह हैं। उनका जन्म ईरान में सन् 1817 में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने अपना जीवन अत्याचार-पीड़ितों, बीमारों और गरीबों की सेवा में लगा दिया। 19वीं सदी के मध्य में उन्होंने एक नए बहाई धर्म की स्थापना की। उनके विचार अत्यंत आधुनिक और क्रांतिकारी थे। सन् 1892 में उनका स्वर्गारोहण हो गया। बहाउल्लाह की शिक्षा 1872 में जमाल एफेन्दी के जरिए भारत पहुंची। आज भारत में बहाइयों की सं या 20 लाख से भी अधिक है।