हनुमान जी की यह कथा अवश्य पढ़ें, सभी संकटों से रक्षा करेंगे
punjabkesari.in Tuesday, Oct 06, 2020 - 10:25 AM (IST)
Hanuman Ji Story: त्रेतायुग में अवतारी सत्ता का अवतरण भगवान राम के रूप में हुआ था। उन्हीं राम के ‘निशिचर हीन करहुं महि’ के महान संकल्प की पूर्ति में हाथ बंटाने के लिए ऐसे वानर का प्राकट्य हुआ, जिसे सारी दुनिया हनुमान जी के नाम से जानती है। हनुमान जी की माता का नाम अंजनि बताया जाता है। उन्हें पवन पुत्र भी कहते हैं अर्थात पवन के समान गतिशील।
हनुमान जी में आध्यात्मिकता के संपूर्ण गुण विद्यमान थे। उनका एक विशेष आध्यात्मिक गुण था सेवा। सेवा ही उनकी साधना थी। प्रारंभ में वह वानरों के राजा सुग्रीव के दरबार में सेवा कार्य करते थे। तब तक तो उनका दायरा बहुत ही सीमित था और शक्ति- सामर्थ्य भी सीमित थे। परंतु जब उन्होंने भगवान राम के प्रति अपने को समर्पित कर दिया और जामवंत ने उन्हें झकझोरा और कहा कि ‘राम काज लगि तव अवतारा’ तब से भगवान राम का कार्य करने के लिए ‘सुनतहि भयउ पर्वताकारा’ पर्वताकार हो गए अर्थात उनका मनोबल बहुत ऊंचा हो गया और वह असंभव लगने वाले कार्यों को संभव कर दिखाने में सफल हुए। अपनी सेवा साधना और समर्पण के बल पर ही हनुमान जी आध्यात्मिकता की उच्चतम स्थिति तक पहुंच सके।
न्याय, सत्य, प्रेम, सदाचार के लिए हनुमान जी ने अपने आप को समर्पित कर दिया। कितने ही अजेय राक्षसों का वध कर डाला और रावण की सोने की लंका जला डाली। सीता जी की खोज कर ली और अपनी अनवरत सेवा- समर्पण के बल पर राम के दरबार अर्थात राम पंचायतन में अपना स्थान भी बना लिया।
सच्चे उपासक के रूप में हनुमान जी ने परम प्रकाश का निरंतर ध्यान करते हुए उसे अपने रोम-रोम में संव्याप्त करके सूर्य के समान अपने को तेजस्वी बना लिया था।
Lord Hanuman Story: हनुमान जी के जीवन में विवेकशीलता देखते ही बनती है। सीता जी का पता लगाने के लिए जाते हुए समुद्र छलांगते समय जब सुरसा से भेंट होती है तब पहले तो उसकी शक्ति की थाह लेने के लिए स्वयं ही उसके मुंह से अधिक बड़ा आकार बनाते हैं, किन्तु जब उन्हें याद आता है कि मैं रामकाज के लिए अर्थात श्रेष्ठ प्रयोजन के लिए जा रहा हूं यहां पर मेरा बल एवं सिद्धि का प्रदर्शन बुद्धिसंगत न होगा ‘तब अति लघु रूप धरेउ हनुमंता’ छोटा आकार बनाकर उसके मुंह में प्रवेश करके कान के बाहर निकलकर अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते हैं।
Hanuman Ji Story: हनुमान जी के व्यक्तित्व में निरहंकारिता कूट-कूट कर भरी है। उनके जीवन में अहंकार कभी भी देखने को नहीं मिलता। सीता जी की खोज के लिए समुद्र लांघने की चर्चा चल रही है, सभी वानर रीछ अपने-अपने बल का बखान कर रहे हैं किन्तु उनमें सर्वाधिक शक्तिशाली होते हुए भी वह चुपचाप बैठे रहते हैं और जामवंत के कहने पर ही अपनी स्वीकृति देते हैं। एक सुयोग्य दूत के रूप में हनुमान की भूमिका द्रष्टव्य है। वह मुद्रिका लेकर जब सीता जी के पास अशोक वाटिका में पहुंचते हैं तो अपना परिचय इसी रूप में देते हैं, ‘राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य शपथ करूणा निधान की।’’
रावण के दरबार में भी जब श्री हनुमान प्रस्तुत होते हैं तो वहां पर भी अपने स्वामी राम के ही गुणों की गाथा गाते हैं।
आसुरी वृत्तियों से जूझने हेतु एक योद्धा के रूप में हनुमान बेमिसाल हैं। मानसाकार ने उनके मुष्टिक प्रहार एवं गदा युद्ध का बखूबी वर्णन किया है।