Lala Jagat Naryan Story: कुछ ऐसा था लाला जी का राजनीतिक सफर...
punjabkesari.in Saturday, Sep 07, 2024 - 07:55 AM (IST)
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Lala Jagat Naryan Story: चुनावों में लाला जी की सिफारिश पर 60 शरणार्थियों को कांग्रेस टिकट दिए गए। यह उनके लिए परीक्षा की घड़ी थी। उनके इस कदम से पार्टी नेताओं में असंतोष व विरोध भी पैदा हुआ परंतु अपनी राजनीतिक सूझबूझ व व्यवहार-कुशलता से लाला जी ने विरोध के स्वरों को शांत कर दिया। उनके नेतृत्व में लड़े गए इस चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला। 98 सीटों पर विजय मिली कांग्रेस को। लाला जी अपनी राजनीतिक परीक्षा में सफल हुए। चुनाव के परिणामों ने उनकी भविष्यवाणी सच सिद्ध कर दी। उनकी राजनीतिक बुद्धिमत्ता को मान्यता व प्रतिष्ठा प्राप्त हुई।
लाला जी ने स्वयं भी एक कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में रायपुर रानी (चंडीगढ़) सीट से चुनाव लड़ा। मुकाबले में 12 उम्मीदवार थे। वे स्वयं तो कांग्रेस के महासचिव होने के नाते अन्य प्रत्याशियों के समर्थन में जनसभाओं को आयोजित व संबोधित करते रहे। अपने चुनाव क्षेत्र में जाने तथा प्रचार करने के लिए अधिक समय नहीं मिला। केवल अंतिम तीन दिन उन्हें मिले।
ज्यादा समय उन्होंने स. प्रताप सिंह कैरों के लिए समर्थन जुटाने में व्यतीत किया था। चुनाव क्षेत्र उनके लिए नया था। नए लोग थे। परंतु अपने जादुई व्यक्तित्व, सेवाभाव की राजनीति, अनथक संघर्ष, परिवार के सभी सदस्यों के परिश्रम भरे सहयोग व ईश्वर की कृपा से वह रायपुर रानी (चंडीगढ़) विधानसभा क्षेत्र से विजयी घोषित हुए।
पं. नेहरू और मौलाना आजाद भी पंजाब कांग्रेस की इस शानदार विजय पर बहुत खुश हुए तथा पं. नेहरू ने लाला जी को उनके परिश्रम के लिए बधाई भी दी। जब लाला जी से इस सफलता का रहस्य पूछा गया तो उन्होंने बताया, ‘‘हमने उन लोगों को टिकट दी थी जो चरित्रवान थे तथा जिन्होंने विभाजन के कारण बहुत दु:ख उठाए थे... हमारे प्रत्याशी ईमानदार, गरीब व देशभक्त व्यक्ति थे।’’इस शानदार विजय के बाद भीमसेन सच्चर के नेतृत्व में मंत्रिमंडल का गठन किया गया, परंतु लाला जगत नारायण व उनके साथी स. प्रताप सिंह कैरों को मुख्यमंत्री पद सौंपना चाहते थे। स्वतंत्रता-संघर्ष के दौरान लाला जी, डा. लहना सिंह, स. प्रताप सिंह कैरों व ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर साथ-साथ रहे थे तथा आगे भी सदा साथ निभाने का वचन दिया था। लाला जी स. प्रताप सिंह कैरों के समर्थन में पं. नेहरू से मिले भी परंतु पं. नेहरू नहीं माने। उन्होंने लाला जी व स. प्रताप सिंह कैरों से भीमसेन सच्चर का ही समर्थन करने को कहा। लाला जी के साथियों को इससे बहुत निराशा हुई।
पं. नेहरू के अहमवादी व्यवहार से लाला जी खिन्न हो गए। लाला जी को मंत्री बनाए जाने के प्रश्न पर भी पं. नेहरू पूर्वाग्रहों से जकड़े हुए थे। शेख अब्दुल्ला के मित्र मृदुला साराभाई ने पहले ही पं. नेहरू के कान लाला जी के विरुद्ध भर रखे थे। लाला जी ‘हिन्द समाचार’ में शेख अब्दुल्ला व उसकी नीतियों का विरोध करते थे। उन्होंने चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाए जाने का विरोध भी अपने लेखों में किया था।
इन लेखों की कतरनें भी पंडित नेहरू के पास भेजी गई थीं। वह उस समय अखिल भारतीय कांग्रेस के प्रधान भी थे। पं. नेहरू ने लाला जी को दिल्ली बुला कर स्पष्टीकरण मांगा। लाला जी ने अपनी राय दे दी जिसे सुनते ही पं. नेहरू रोष भरे स्वर में बोले, ‘‘ठीक है, यदि तुम चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाए जाने का विरोध करते हो तो मैं तुम्हारे विरोध के बावजूद इसे ही पंजाब की राजधानी बनाऊंगा।’’
लाला जी चुप रहे। उन्होंने पं. नेहरू को बताया कि वह चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाए जाने के विरुद्ध न होकर उस भ्रष्टाचार के विरुद्ध हैं जो चंडीगढ़ के निर्माण कार्यों में किया जा रहा है। पं. नेहरू ने स. प्रताप सिंह कैरों से कहा कि लाला जगत नारायण के नाम से एक बयान दिलवाया जाए तथा अखबारों में प्रकाशित भी करवाया जाए कि वह चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाने के विरुद्ध नहीं हैं तथा ऐसा किया भी गया। पं. नेहरू अभी भी लाला जगत नारायण को पंजाब मंत्रिमंडल में लिए जाने को सहमत नहीं थे। लाला जी ने गांधी जी से ‘राष्ट्र हित’ में ‘निज हित’ का बलिदान करना सीखा था।
पार्टी में अनुशासन सर्वोपरि है। अत: कांग्रेस अध्यक्ष की इच्छा का सम्मान उन्हें करना ही था। कुछ विधायकों ने लाला जी को मंत्रिमंडल में न लिए जाने के रोष स्वरूप अपने त्यागपत्र देने की बात भी कही परंतु लाला जी ने उन्हें शांत कर दिया। उन्होंने समझाया कि मंत्रिमंडल में रहने या न रहने से उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता। वह कांग्रेस के एक वफादार सिपाही हैं, वह अपना कार्य बिना मंत्रिपद के भी उसी समर्पण भाव से करते रहेंगे। परन्तु पार्टी के लोगों की हार्दिक इच्छा थी कि लाला जी मंत्रिपरिषद में शामिल हों। एक-दो प्रतिनिधिमंडलों ने इस संबंध में नेहरू जी को मिलना भी चाहा परंतु उन्होंने मिलने से ही इंकार कर दिया।
कुछ विधायक साथियों के बार-बार आग्रह करने पर लाला जी ने स्वयं एक बार पं. नेहरू से मिलने का विचार बनाया, ताकि उन्हें वास्तविक स्थिति से अवगत कराया जा सके। सवाल मंत्रिमंडल में शामिल होने या न होने का नहीं था। लाला जी यह जानना चाहते थे कि आखिर उनका दोष क्या था ?
श्री लालबहादुर शास्त्री के निकट के साथी तथा अपने मित्र लाला फिरोज चंद को साथ लेकर वह शास्त्री जी से मिले। लाला फिरोज चंद ने शास्त्री जी को बताया कि पंजाब में चुनावों में कांग्रेस पार्टी को मिली भारी विजय के पीछे लाला जी का हाथ है। शास्त्री जी उस समय कांग्रेस के अखिल भारतीय महासचिव थे। लाला जी त्रिमूर्ति भवन में उन्हें मिले तथा उन्हें सारी स्थिति स्पष्ट कर दी।
सारी बातें सुनकर शास्त्री जी संतुष्ट हो गए तथा उन्हें भी लगा कि लाला जी की उपेक्षा पंजाब कांग्रेस में मतभेदों व गुटबंदी को प्रोत्साहित करेगी तथा इसका पंजाब में कांग्रेस सरकार के भविष्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। शास्त्री जी के कारण ही लाला जी की पं. नेहरू से भेंट संभव हुई। यह वही दिन था जिस दिन मंत्रिमंडल की औपचारिक घोषणा होनी थी।