इस जगह की थी लक्ष्मण ने एक लाख छिद्रों वाले अनोखे शिवलिंग की स्थापना

punjabkesari.in Sunday, Feb 04, 2018 - 10:26 AM (IST)

विश्वभर में एेसे कई मंदिर आदि प्रसिद्ध हैं जिनका संबंध रामायण से है। एेसा ही एक विश्व प्रसिद्ध आश्रम शिवरीनारायण है जो छत्तीसगढ़ में है। कहा जाता है कि इस जगह शबरी ने श्रीराम को अपने झूठे बेर खिलाए थे। इस आश्रम के बारे में बहुत से लोग जानते होंगे, लेकिन इस ही आश्रम से 3 किलोमीटर दूरी पर एक मंदिर है। जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे। मान्यता प्रचलित है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं श्रीराम ने की थी। यह मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर दूर खरौद नगर में स्थित है। यह मंदिर लक्षलिंग लक्ष्मणेश्वर के नाम से देशभर में विख्यात है। 
 

पौराणिक कथा
लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना से संबंधित एक किवदंती प्रचलित है जिसके अनुसार भगवान राम ने खर और दूषण के वध के पश्चात, भ्राता लक्ष्मण की विनती पर  इस मंदिर की स्थापना की थी। कहा जाता है कि भगवान राम ने यहां पर खर व दूषण का वध किया था इसलिए इस जगह का नाम खरौद पड़ा। खरौद नगर में प्राचीन कालीन अनेक मंदिरों की उपस्थिति के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है।


गर्भगृह में है लक्षलिंग
लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है जिसके बारे में मान्यता है की इसकी स्थापना स्वयं लक्ष्मण ने की थी। इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र है जिस कारण इसे लक्षलिंग कहा जाता है। इन लाख छिद्रों में से एक छिद्र ऐसा है जो की पातालगामी है क्योंकि उसमे कितना भी जल डालो वो सब उसमें समा जाता है जबकि एक छिद्र अक्षय कुण्ड है क्योंकि उसमे जल हमेशा भरा ही रहता है। लक्षलिंग पर चढ़ाया जल मंदिर के पीछे स्थित कुण्ड में चले जाने की भी मान्यता प्रचलित है, क्योंकि कुण्ड कभी सूखता नहीं। लक्षलिंग जमीन से करीब 30 फीट ऊपर है और इसे स्वयंभू लिंग भी माना जाता है।

 

मंदिर की बनावट
यह मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है। इस दीवार के अंदर 110 फीट लंबा और 48 फीट चौड़ा चबूतरा है जिसके ऊपर 48 फुट ऊंचा और 30 फुट गोलाई लिए मंदिर स्थित है। मंदिर के अवलोकन से पता चलता है कि पहले से चबूतरे में बृहदाकार मंदिर के निर्माण की योजना थी, क्योंकि इसके अधोभाग स्पष्टत: मंदिर की आकृति में निर्मित है। चबूतरे के ऊपरी भाग को परिक्रमा कहते हैं। 
 


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