कुम्भलगढ़: विश्व की दूसरी सबसे लम्बी दीवार और घोड़े की स्मारक है खास आकर्षण

punjabkesari.in Friday, Dec 23, 2016 - 12:59 PM (IST)

राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में अरावली पर्वतशृंखला की एक चोटी पर इतिहास तथा महाराणाओं की वीरता व शक्ति का एकमात्र गवाह स्थित है। राजपूताना शान की असंख्य कहानियों से जुड़ा यह राजस्थान का दुर्जेय किला कुम्भलगढ़ दुर्ग है। यह दुर्ग विश्व धरोहर स्थल है जिसकी खूबसूरत प्राचीरों से एक ओर दूर स्थित मेवाड़ के रेत के टीलों का अद्भुत नजारा दिखाई देता है तो दूसरी ओर पाली तथा राजसमंद जिलों के सूखे मैदान हैं। 


दुर्ग में स्थित बादल महल का नाम भी सटीक है। इसके गुम्बद के करीब बादल जो दिखाई देने लगते हैं। गुलाबी बलुआ पत्थर की दीवारों वाले इसी महल में सिसोदिया वंश के सर्वाधिक विख्यात राजा महाराणा प्रताप ने सन् 1540 ईस्वी में जन्म लिया था। 


कुम्भलगढ़ के पास मेवाड़ के ऐसे एकमात्र दुर्ग होने का गौरव है जिसे मुगल तथा बाद में अंग्रेज भी कभी जीत नहीं सके। इसकी बेहद मजबूत दीवार चीन की दीवार के बाद विश्व की दूसरी सबसे लम्बी दीवार है। पर्वतों की चोटियों व घाटियों पर 36 किलोमीटर में फैली इस दीवार पर आज भी तोपों के गोलों के निशान इसके युद्धग्रस्त इतिहास की गवाही देते हैं। 


कई परतों में फैली इसकी दीवारों को मेहनत से पार करने के बाद इस शानदार दुर्ग के अंदरूनी हिस्से दिखाई देते हैं। भीतर यह विभिन्न हिस्सों में फैला है जहां कुदरती डाई पेंटिंग्स से इसे सजाया गया है। दुर्ग के प्रत्येक महल में खूबसूरत बालकनियां हैं जिन पर धनुषाकार आकृतियां हैं। इनमें बैठ कर सामने शानदार चोटियों का सुंदर नजारा मन मोह लेता है।


दुर्ग का सबसे पुराना हिस्सा कुम्भ महल है जिसका निर्माण राणा कुम्भ ने 15वीं सदी में करवाया था। फिलहाल इसका जीर्णोद्धार कार्य जारी है। 


इन दिनों रात के वक्त जैसे ही कुम्भलगढ़ दुर्ग अंधेरे में घिरता है, शानदार लाइटिंग से जगमगा उठता है। एक ‘साऊंड एंड लाइट शो’ इस स्थान के इतिहास से पर्यटकों का ज्ञान बढ़ाता है। 


दुर्ग के निकट पहाड़ी के नीचे एक रिसोर्ट है जिसके आरामदायक कमरों में पर्यटक रह सकते हैं। रिसोर्ट में हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध है जिसमें स्पा तथा मसाज भी शामिल हैं।


सुबह बुलबुल तथा अन्य पक्षियों का चहचहाना नींद खोलता है। इसके बाद परशुराम गुफा मंदिर की ओर चढ़ाई पर निकल सकते हैं। वहां से रणकपुर की ओर 6 किलोमीटर ट्रैकिंग करके खूबसूरत रणकपुर जैन मंदिर दिखाई देता है। मार्बल से बने इस मंदिर के 4 दर्जन से अधिक शिखर, पत्थर पर सुंदर नक्काशियां, स्तम्भ तथा कई सौ जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हर किसी को अविस्मरणीय यादें दे जाती हैं। 


यहां से आगे हमीर पल एक खूबसूरत नख्लिस्तान है। इस झील के चारों ओर स्थित गांवों के हर घर में महाराणा प्रताप की वीरता की कहानियां सुनाई जाती हैं। इस झील का निर्माण महाराणा ने ही करवाया था जहां प्यास बुझाने के लिए उनकी सेना रुका करती थी। वे इसके किनारों पर ही आराम करते और अपने घोड़ों को बांधा करते थे। 
महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ा एक विख्यात स्थान है हल्दीघाटी। झाडिय़ों से घिरी इस घाटी के एक ओर एक सूखा नदी-नाला है। इसकी लाल-पीली मिट्टी साफ दिखाई देती है। कहते हैं कि हल्दीघाटी की पीले रंग की मिट्टी महाराणा प्रताप के मुगलों की विशाल सेना से हुए युद्ध में बहे सिपाहियों के रक्त से लाल हो गई थी।


सूखे नदी-नाले में एक वक्त खूब पानी बहता था जिसे महाराणा प्रताप के निर्भय व समर्पित अश्व चेतक ने एक ही छलांग में पार कर लिया था। कहते हैं कि घायल होने पर भी महाराणा का यह अश्व तीन पैरों पर दौड़ते हुए अपने स्वामी को सुरक्षित मंदिर तक ले गया और वहीं पहुंचने पर उसने प्राण त्यागे थे। आज इसी स्थान पर उसकी याद में एक स्मारक स्थित है और पत्थर पर यह अमर कहानी उकेरी हुई है। 


कैसे पहुंचें 
दिल्ली से कुम्भलगढ़ 600 किलोमीटर दूर है जबकि मुम्बई से 850 तथा जोधपुर से यह 235 किलोमीटर दूर है। इसके सबसे करीब स्थित रेलवे जंक्शन उदयपुर तथा फालना दोनों 90 किलोमीटर दूर हैं। करीबी घरेलू हवाई अड्डा भी उदयपुर है। 


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