Krishna Janmashtami: श्री राधाकृष्ण के अमर प्रेम के गवाह हैं ये स्थान, जन्माष्टमी पर करें दर्शन
punjabkesari.in Thursday, Aug 14, 2025 - 02:00 PM (IST)

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Krishna Janmashtami 2025: जन्माष्टमी हिन्दू धर्म का प्रमुख त्योहार है, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। श्रीकृष्ण विष्णु जी के आठवें अवतार माने जाते हैं, जिन्होंने मथुरा में अधर्म के नाश के लिए जन्म लिया। राधा कृष्ण की प्रेम गाथा भक्तों के लिए आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक है। राधा उनकी प्रियतम थीं, जिनके संग उनका दिव्य प्रेम संपूर्ण ब्रह्मांड में अमर माना जाता है। जन्माष्टमी पर मंदिरों में झांकियां, कीर्तन और मटकी फोड़ उत्सव होते हैं। यह दिन भक्ति, प्रेम और आस्था का पर्व हैं। राधाकृष्ण के प्रेम की गहराई को दर्शाते हुए बहुत से ऐसे स्थल हैं। जन्माष्टमी पर करें उन स्थलों का दर्शन-
भांडीर वन- ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार वृंदावन में यमुना पार भांडीर वन में स्वयं ब्रह्माजी के पुरोहितत्व में श्रीकृष्ण-राधा विवाह संपन्न हुआ था। श्री राधा कृष्ण का संबंध निस्वार्थ प्रेम की अदृश्य बेड़ी से बंधा हुआ है।
निधिवन- धार्मिक नगरी वृन्दावन में निधिवन एक अत्यन्त पवित्र, रहस्यमयी धार्मिक स्थान है। मान्यता है कि निधिवन में भगवान श्रीराधा एवं श्रीकृष्ण आज भी अर्द्धरात्रि के बाद रास रचाते हैं। रास के बाद निधिवन परिसर में स्थापित रंग महल में शयन करते हैं। रंग महल में आज भी प्रसाद (माखन मिश्री) प्रतिदिन रखा जाता है। शयन के लिए पलंग लगाया जाता है तथा प्रातः बिस्तर को देखने से प्रतीत होता है कि यहां निश्चित ही कोई रात्रि विश्राम करने आया था और भोजन भी ग्रहण करके गया है।
संकेत- श्रीकृष्ण रहते थे नंद गांव में और राधा रानी रहती थी बरसाना गांव में। दोनों गांव के बीच में एक गांव है संकेत। माना जाता है की लौकिक जगत में श्रीराधा कृष्ण की प्रथम भेंट यहीं पर हुई थी।
मोर-कुटी- बरसाने के पास एक छोटा सा स्थान है मोर-कुटी। एक समय लीला करते हुए राधा जी श्याम सुंदर से रूठ गई और मोर-कुटी पर जाकर बैठ गई। वहां एक मोर से लाड करने लगी। ठाकुर जी उन्हें मनाने लगे पर वह न मानीं। ठाकुर जी को उस मोर से इर्ष्या होने लगी। किशोरी जी ने ये शर्त रख दी कि बांके बिहारी मेरी नाराजगी तब दूर होगी जब तुम इस मोर को नृत्य प्रतियोगिता में हरा कर दिखाओगे। मोर ऐसा नाचा कि उसने ठाकुर जी को थका दिया।
गहवर वन- मयूर कुटी और मान मंदिर के मध्य गहवर वन है। जो नित्य विहार का स्थल है। मान्यता है की पांच हजार साल पहले इस वन को स्वयं राधारानी ने लगाया था। कहते हैं, गायों को चराने वाली ग्वारियों को आज भी इस वन में बंशी की धुन व राधारानी के घुंघरुओं की आवाज सुनाई देती है।
कुमुदनी कुंड अथवा विहार कुंड- कुमुदनी कुंड अथवा विहार कुंड पर जब श्री कृष्ण गाय चराने आते तो अक्सर राधा रानी से यहीं भेंट करते थे।
कुरुक्षेत्र- नंदगांव छोड़ने के बाद उनकी मुलाकात कुरुक्षेत्र में हुई। सूर्यग्रहण के समय ब्रजवासी कुरुक्षेत्र में स्नान के लिए आए थे। तभी श्रीराधा और कृष्ण का मिलन हुआ। यहां स्थापित तमाल वृक्ष इस बात का गवाह है।