क्यों कहा जाता है इंद्रेश उपाध्याय के पिता को भागवत भास्कर? जानें उनकी अनकही कहानी
punjabkesari.in Monday, Dec 08, 2025 - 03:44 PM (IST)
Bhagwat Bhaskar Krishna Chandra Shastri Story: युवा और लोकप्रिय कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय जी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने अपनी मधुर वाणी और सरल प्रस्तुति से लाखों श्रोताओं के बीच अपनी जगह बनाई है। लेकिन उनकी इस सफलता के पीछे उनके पिता, पूज्य श्री रामानुज दयालु उपाध्याय जी का गहरा प्रभाव और त्याग है। श्री रामानुज दयालु उपाध्याय जी स्वयं भी एक महान आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं, जिन्हें उनके अनुयायी प्रेम से भागवत भास्कर के नाम से पुकारते हैं। तो आइए जानते हैं इनके जीवन से जुड़ी अनसुनी कहानी के बारे में-

श्री रामानुज दयालु उपाध्याय जी की अनसुनी कहानी
इंद्रेश उपाध्याय जी के पिता श्री रामानुज दयालु उपाध्याय जी का जीवन समर्पण, सादगी और धार्मिक शास्त्रों के गहन अध्ययन को समर्पित रहा है। रामानुज दयालु जी ने अपना जीवन प्रभु की भक्ति और सेवा में समर्पित कर दिया। उन्होंने केवल कथावाचन को ही अपना जीवन-लक्ष्य नहीं बनाया, बल्कि धार्मिक ग्रंथों के मूल ज्ञान को आत्मसात करने में वर्षों लगाए। उन्होंने अपने गुरुदेव से भागवत और अन्य पुराणों का गहन अध्ययन किया।
उनकी साधना और भक्ति का स्तर ऐसा था कि वह ग्रंथों के मर्म को अत्यंत सरलता से जनसामान्य तक पहुंचाने की कला में निपुण हो गए। एक बड़े कथावाचक होने के बावजूद, उनका जीवन हमेशा सादगी और नियम-संयम से भरा रहा। उन्होंने अपने बच्चों को भी यही संस्कार दिए, जिसका परिणाम आज इंद्रेश जी के व्यक्तित्व और उनकी कथा शैली में साफ झलकता है।

उन्हें भागवत भास्कर क्यों कहा जाता है?
भागवत भास्कर यह उपाधि श्री रामानुज दयालु उपाध्याय जी को यूं ही नहीं मिली है। यह उनके विशिष्ट ज्ञान और समर्पण का प्रतीक है। 'भास्कर' का अर्थ होता है सूर्य। जिस प्रकार सूर्य पूरे संसार को अंधकार से निकालकर प्रकाशवान करता है, उसी प्रकार रामानुज दयालु जी ने अपनी कथाओं के माध्यम से श्रीमद्भागवत महापुराण के गूढ़ ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाया। उनके ज्ञान की चमक सूर्य के समान प्रखर मानी जाती है।
उन्हें श्रीमद्भागवत महापुराण का एक अत्यंत मर्मज्ञ और प्रभावशाली वक्ता माना जाता है। वे केवल कथा सुनाते नहीं हैं, बल्कि कथा के हर प्रसंग को जीवन के व्यावहारिक पहलुओं से जोड़कर श्रोताओं के हृदय में उतार देते हैं। भागवत भास्कर की उपाधि उनके शिष्यों और भक्तों ने उन्हें उनके अखंड भक्तिभाव, समर्पण और भागवत ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए दी है। उनका एकमात्र लक्ष्य भगवान के यश और कथा का प्रचार करना रहा है।

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