Krishna Janmashtami: धर्म की स्थापना और संसार का उद्धार करने के लिए अवतरित हुए भगवान श्री कृष्ण
punjabkesari.in Thursday, Aug 14, 2025 - 12:11 PM (IST)

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Krishna Janmashtami 2025: अखिल ब्रह्मांडाधिपति भगवान श्री कृष्ण जी का अत्यंत पुण्यप्रद प्राकट्य भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कंस के कारागार में वसुदेव-देवकी के यहां रोहिणी नक्षत्र में हुआ, जिसे हम श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के रूप में मनाते हैं। वसुदेवजी ने देखा, उनके सामने एक अद्भुत बालक है। उसके नेत्र कमल के समान कोमल और विशाल हैं। चार सुंदर हाथों में शंख, गदा, चक्र और कमल लिए हुए हैं। वक्ष:स्थल पर श्रीवत्स का चिह्न-अत्यन्त सुन्दर सुवर्णमयी रेखा है। गले में कौस्तुभमणि झिलमिला रही है। वर्षाकालीन मेघ के समान परम सुंदर श्यामल शरीर पर मनोहर पीताम्बर फहरा रहा है।
जब वासुदेव जी ने देखा कि मेरे पुत्र के रूप में तो स्वयं भगवान ही आए हैं, उनका रोम-रोम परमानंद में मग्न हो गया। देवकी भी कंस के भय से भगवान से प्रार्थना करते हुए बोलीं, हे विश्वात्मन्! आपका यह रूप अलौकिक है। आप शंख, चक्र, गदा और कमल की शोभा से युक्त अपना यह चतुर्भुजरूप छिपा लीजिए।
सर्वशक्तिमान, संसाररूपी वृक्ष की उत्पत्ति के एकमात्र आधार, चराचर जगत के कल्याण के लिए निराकार स्वरूप होते हुए भक्ति तथा प्रेमवश साकार रूप धारण करने वाले श्री हरि भगवान ने भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप में बहुत सुंदर एवं मधुर लीलाएं कीं, इन लीलाओं का इतना प्रभाव है कि इनके श्रवण, पठन से अंत:करण शीघ्र अतिशीघ्र शुद्ध हो जाता है।
भगवान ने अपनी बाललीला में कंस द्वारा भेजे गए राक्षसों पूतना, तृणावर्त, बकासुर, अघासुर का नाश कर उनको मुक्ति प्रदान की तथा कंस का वध कर मथुरा नगरी को भयमुक्त किया।
अघासुर जैसे राक्षसों को मोक्ष प्राप्त हुआ देख ब्रह्मा जी को अत्यंत आश्चर्य हुआ। जब उन्होंने बाल कृष्ण भगवान की परीक्षा लेने के लिए ग्वाल बाल और बछड़ों को चुरा लिया तब सब ग्वाल बालों और बछड़ों का स्वरूप धारण कर भगवान ने ब्रह्मा जी के विश्वकर्ता होने के अभिमान को नष्ट किया।
महाविषधर कालिय नाग ने जब यमुना जी का जल विषैला कर दिया, तब आनंदकंद भगवान ने कालिय दमन कर यमुना जी का जल पावन किया। गोविंद भगवान ने इंद्र की पूजा बंद करवा कर गोवर्धन पर्वत की पूजा प्रारंभ करवाई तो क्रोध एवं अहंकार वश इंद्र ने ब्रज पर मूसलाधार वर्षा करवाई।
तब माधव गोविंद ने खेल-खेल में गिरिराज गोवर्धन को अपनी ऊंगली पर धारण कर ब्रजवासियों की प्रलंयकारी वर्षा से रक्षा की। भगवान श्री कृष्ण की योगमाया से चकित इंद्र ने उनसे क्षमा मांगी।
पांडवों ने जब राजसूय यज्ञ का आयोजन किया तब भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से पांडवों के माध्यम से जरासंध की कैद से सहस्रों राजाओं को मुक्त करवाया। महाभारत के युद्ध में कर्तव्य मार्ग से विमुख हुए अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने समस्त वेद, उपनिषदों से सारगर्भित ज्ञान को श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में प्रदान किया और अर्जुन को अपने विश्वरूप परमात्मा के रूप में दर्शन कराए। आदि अंत से रहित, अनादि धर्म के रक्षक, सनातन पुरुष भगवान के उस दिव्य विश्वरूप में अर्जुन ने सभी लोक, रुद्र, आदित्य, वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनी कुमार, मरुद्गण, पितरों के समुदाय, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, कमल के आसन पर विराजित ब्रह्मा, महादेव जी, सम्पूर्ण ऋषियों को देखा।
भगवान ने अर्जुन को धर्ममय उपदेश देते हुए कहा कि मनुष्य आसक्ति से रहित होकर कर्तव्य कर्मों को करता हुआ परमात्मा को प्राप्त कर लेता है। जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है और न ही किसी की आकांक्षा करता है, वह कर्मयोगी, सदा संन्यासी ही समझने योग्य है। किसी भी शरीरधारी, मनुष्य द्वारा सम्पूर्णता से सब कर्मों का त्याग किया जाना संभव नहीं है, इसलिए जो कर्मफल का त्यागी है। वही त्यागी है।
भगवान श्री कृष्ण ने श्री गीता जी के माध्यम से अंधकार में भटक रहे मनुष्यों को गीता ज्ञान रूपी प्रकाश प्रदान किया। भगवान श्री कृष्ण परिपूर्णतम् परात्पर ब्रह्म हैं।
वे जगत के कल्याण के लिए अपने भक्तों को आनंद प्रदान करने के लिए सर्वव्यापक निराकार ब्रह्म होते हुए भी साकार रूप में अपनी माया को अधीन करके प्रकट होते हैं।
वे सच्चिदानंदन परमात्मा, अविनाशी और सर्वभूतों के परम गति तथा परम आश्रय हैं, वे केवल धर्म की स्थापना करने और संसार का उद्धार करने के लिए ही अपनी योगमाया से सगुणरूप होकर अवतरित होते हैं।
भगवान के जन्म एवं कर्म दिव्य हैं। जो इस प्रकार तत्व से जान लेता है, ऐसे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता। भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों का स्मरण सभी अशुभों का नाश करता तथा महान सौभाग्य प्रदान करता है। यह हृदय को शुद्ध करता तथा परमात्मा के प्रति भक्ति प्रदान करता है, साथ ही बोध और वैराग्य से समृद्ध ज्ञान भी प्रदान करता है।