मानवता के सच्चे रक्षक श्री गुरु तेग बहादुर जी

punjabkesari.in Tuesday, Nov 25, 2025 - 06:51 AM (IST)

 भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर में यदि किसी एक व्यक्तित्व की उपस्थिति सदियों से अडिग, उज्ज्वल और अमर रही है, तो वह हैं श्री गुरु तेग बहादुर जी, जो पीढ़ी दर-पीढ़ी मानवता के सच्चे रक्षक, अत्याचार के विरुद्ध अदम्य साहस के प्रतीक और धार्मिक स्वतंत्रता के महान संरक्षक के रूप में जाने जाते हैं। उनका बलिदान केवल एक समुदाय या क्षेत्र के लिए नहीं था, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए था। एक ऐसा बलिदान, जिसने भारत की आध्यात्मिक आत्मा को सुरक्षित रखा और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के सिद्धांत को जीवंत किया।
श्री गुरु तेग बहादुर जी, जिन्हें नौवें नानक के नाम से भी जाना जाता है, का बचपन का नाम त्याग मल था। वह छठे पातशाह श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी व माता नानकी जी की संतान थे। उनका जन्म 1 अप्रैल,1621 ई. को अमृतसर में हुआ। वहां आज गुरुद्वारा ‘गुरु के महल’ के नाम से सुशोभित है।

भारत में उस समय बहुतायत, सनातन को मानने वालों की थी। औरंगजेब के धर्म परिवर्तन के लिए, किए जा रहे अत्याचार से सताए हुए तत्कालीन हिंदू नेता पंडित कृपा राम जी ने कश्मीर से अपने साथियों के साथ श्री आनंदपुर साहिब (पंजाब) में गुरु तेग बहादुर जी के पास पहुंच कर किए जा रहे जुल्म को रोकने तथा धर्म की रक्षा करने की विनती की। गुरु जी ने उनकी फरियाद सुनकर कहा कि ऐसे अत्याचारों को रोकने के लिए किसी महापुरुष को बलिदान देना होगा। उस समय बालक गोबिंद राय ने पूरी वार्ता सुनकर अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी से कहा कि आप जी से बड़ा कोई महापुरुष नहीं है। इसलिए बलिदान आपको ही देना चाहिए। यह सुनकर गुरु जी ने अंतर्मुग्ध होते हुए आए फरियादियों से कहा कि जाओ, औरंगजेब को कह दो कि यदि गुरु तेग बहादुर जी धर्म परिवर्तन कर लेंगे, तो पूरा भारतवर्ष ही इस्लाम कबूल कर लेगा। यह संदेश जब औरंगजेब को मिला तब उसने गुरु जी को दिल्ली दरबार में उपस्थित होकर इस्लाम कबूल करने को कहा। 

तब उन्होंने दृढ़तापूर्वक फतवा स्वीकार करने से इंकार कर दिया। बादशाह ने अपनी अवज्ञा का परिणाम, मृत्यु के रूप में कबूलने के लिए कहा। सजा की तारीख 11 नवंबर, 1675 तय करके चांदनी चौक, दिल्ली में गुरु जी के साथ गए तीन श्रद्धालुओं-भाई दयाला जी, भाई सती दास जी और भाई मती दास जी, को क्रमश: देग में उबाल, रूई में लपेट जलाकर और आरे से चीरकर शहीद करने के बाद भी जब गुरु तेग बहादुर जी घबराए नहीं बल्कि दृढ़ रहे, तब गुरु जी का शीश भी धड़ से अलग कर दिया गया। इतना ही नहीं, भाई जैता जी को दिल्ली से आते हुए, गांव गढ़ी कुशाला (बढ खालसा) सोनीपत में, शीश सहित मुगल फौज ने घेर लिया। इस गांव के गुरु घर के अनन्य सेवक भाई कुशाल सिंह दहिया ने अपने शीश को पुत्र द्वारा फौज के हवाले कर दिया और फिर भाई जैता जी फौज को चकमा देकर शीश सहित तरावड़ी, अम्बाला से होते हुए श्री आनंदपुर साहिब पहुंचे। उनके शीश को आनंदपुर साहिब पुहंचाने के लिए भाई जैता जी ने सेवा निभाई। पवित्र शरीर का संस्कार लक्खी शाह वंजारा, जो कि उस समय के विश्व के सबसे बड़े अमीर लोगों में शामिल थे, ने अपने गांव रायसिना (दिल्ली) में अपने घर में रख आग लगा कर किया था। इस हृदय-विदारक घटना के उपरांत ही, मुगलिया सल्तनत का पतन होना तय हो गया।

यह हमारा गौरव है कि हमारा हिंदुस्तान गुरुओं, संतों, महापुरुषों, फकीरों का देश है। यहीं हरियाणा प्रदेश में कुरुक्षेत्र की धरती पर अधर्म के विरुद्ध धर्म की रक्षा के लिए महाभारत का युद्ध हुआ। यहां ही महाराज कुरु ने स्वर्ण मंडित हल चलाया एवं भगवान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। इसीलिए हरियाणा सरकार ने श्री गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहादत समागम ज्योतिसर (कुरुक्षेत्र) में मनाने का फैसला लिया।  हरियाणा में ही, सिख समुदाय के पहले बादशाह बाबा बंदा सिंह बहादुर की राजधानी लोहगढ़ (यमुनानगर) में मार्शल आर्ट इंस्टीच्यूट तथा श्री गुरु तेग बहादुर मैडीकल कॉलेज, यमुनानगर में बनाया जा रहा है। श्री गुरु नानक देव जी के गुरुद्वारा चिल्ला साहिब (सिरसा) को 72 कनाल भूमि नि:शुल्क दी गई। सारे प्रदेश में  अन्य स्थानों पर भी स्मारक, द्वार, कालेज एवं संस्थानों का नामकरण गुरु साहिबानों के नाम पर किया गया है। वर्तमान हरियाणा प्रांत के लोगों का, श्री गुरु तेग बहादुर जी के साथ घनिष्ठ प्यार था। यहां उनकी याद में लगभग 28 गुरुद्वारा साहिबान हैं तथा उनका ससुराल गांव लखनौर साहिब (अम्बाला) में है। श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस पर श्रद्धासुमन भेंट करने के लिए, देश के प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी जी 25 नवंबर, 2025 दिन मंगलवार को कुरुक्षेत्र आ रहे हैं।

नरेन्द्र मोदी जी की अगुवाई में सारे विश्व में लगभग 142 विदेशी दूतावास हैं, वहां के स्थानीय लोगों के सहयोग से, गुरु जी की शहादत को नमन किया जा रहा है। कुरुक्षेत्र की पवित्र धरती पर 8 गुरु साहिबानों, श्री गुरु नानक देव जी, श्री गुरु अमरदास जी, श्री गुरु अर्जुन देव जी, श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी, श्री गुरु हरिराय जी, श्री गुरु हरिकृष्ण जी, श्री गुरु तेग बहादुर जी तथा श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने समय-समय पर अपने चरण डालकर पवित्र किया। राज्यभर में चारों दिशाओं से निकली श्रद्धा यात्राएं एक अनोखा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव बन गई हैं। राज्य में 8 नवंबर, को रोड़ी  (सिरसा), 11 नवंबर को पिंजौर (पंचकूला), 14 नवंबर को फरीदाबाद तथा 18 नवंबर को कपाल मोचन (यमुनानगर) में आयोजित यात्राओं ने हरियाणा को सचमुच एक आध्यात्मिक और भाईचारे की एकजुटता के धागे में पिरो दिया है। 
गुरु तेग बहादुर जी की स्मृति में प्रदेश सरकार द्वारा कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। सिरसा स्थित चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय में ‘गुरु तेग बहादुर चेयर’ की स्थापना की गई। अंबाला के पॉलिटैक्निक कॉलेज का नाम बदलकर गुरु तेग बहादुर जी के नाम पर रखने का प्रस्ताव स्वीकृत किया गया है। करनाल में एक भव्य मैराथन तथा टोहाना-जींद-नरवाना मार्ग को ‘गुरु तेग बहादुर मार्ग’ नाम देने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है। कलेसर क्षेत्र में ‘गुरु तेग बहादुर वन’ विकसित किया जा रहा है। यमुनानगर के किशनपुर में ‘जी.टी.बी. कृषि महाविद्यालय’ की स्थापना भी प्रस्तावित है। गुरु जी की शहादत संबंधी, गुरु परंपरा के समकालीन कवि ‘सेनापति’ ने उपयुक्त और अति सुंदर कहा है-नायब सिंह सैनीमुख्यमंत्री (हरियाणा)
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Related News