Kirtimukha Shiva Story: शिव जी के आदेश पर खुद को निगल जाने वाला दैत्य, बन गया बुरी नजर से रक्षा करने वाला देवता
punjabkesari.in Monday, Nov 10, 2025 - 01:28 PM (IST)
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Kirtimukha Shiva Story: क्या आपने कभी किसी घर, मंदिर या दुकान के द्वार पर एक भयानक लेकिन रहस्यमय चेहरा देखा है ? वह चेहरा किसी साधारण मूर्ति का नहीं बल्कि कीर्तिमुख नामक राक्षस का है, जिसे भगवान शिव ने स्वयं उत्पन्न किया था। कीर्तिमुख को बुरी नजर से बचाने वाला प्रतीक (Evil Eye Protector) माना जाता है। इसका मुख देखने में भयंकर है लेकिन इसका अर्थ शुभ और रक्षक शक्ति से जुड़ा हुआ है।

कीर्तिमुख हमें यह संदेश देता है कि अहंकार और लालच का अंत आत्मविनाश है लेकिन भक्ति और आज्ञाकारिता से मुक्ति और यश मिलता है। इसलिए आज भी मंदिरों के द्वारों, घरों और व्यापारिक स्थलों पर कीर्तिमुख का चेहरा लगाया जाता है ताकि सुरक्षा, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे।

Kirtimukha Shiv Story भगवान शिव से जुड़ी कीर्तिमुख की कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार एक बार राहु ने अहंकारवश भगवान शिव के सिर पर विराजमान चंद्रमा को ग्रहण लगा दिया। इससे शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोली। उनके क्रोध से एक भीषण दानव प्रकट हुआ। यही था कीर्तिमुख। उसका चेहरा सिंह के समान और आंखों से अग्नि की ज्वालाएं निकल रही थीं।
शिव ने उसे आदेश दिया कि वह राहु को भक्षण कर ले। भयभीत राहु ने शिव जी से क्षमा मांगी और महादेव ने उसे क्षमा कर दिया। लेकिन तब कीर्तिमुख ने निवेदन किया, “प्रभु, आपने मुझे भूखा पैदा किया है, अब मैं क्या खाऊं?”

शिव के आदेश पर स्वयं को ही निगल गया कीर्तिमुख
भगवान शिव ने मुस्कराते हुए कहा, “यदि भूख लगी है तो अपने ही शरीर को खा जाओ।”
शिव यह सोच भी नहीं पाए थे कि वह वास्तव में ऐसा करेगा। लेकिन कीर्तिमुख ने बिना देर किए स्वयं को ही निगलना प्रारंभ कर दिया। जब केवल उसका मुख शेष रह गया, तब शिव ने उसे रोकते हुए कहा, “हे कीर्तिमुख, तुम्हारा मुख अत्यंत यशस्वी और पूजनीय रहेगा। जहां तुम्हारा मुख होगा, वहां कोई अशुभ शक्ति प्रवेश नहीं कर पाएगी।”

शुभता और सुरक्षा का प्रतीक
शिव के वरदान से कीर्तिमुख केवल राक्षस नहीं रहा, बल्कि वह द्वार रक्षक देवता बन गया। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर या मंदिर के प्रवेश द्वार पर कीर्तिमुख का मुख लगाने से बुरी नजर, नकारात्मक ऊर्जा और दुष्ट शक्तियों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। यह ऊर्जा को निगल कर स्थान को शुद्ध रखता है।
