Kansa Vadh 2019: श्रीकृष्ण ने अपने मामा को मारने के बाद किया था ये काम...

punjabkesari.in Thursday, Nov 07, 2019 - 07:18 AM (IST)

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श्री कृष्ण ने जब कंस का वध कर दिया तो मथुरा की प्रजा ने बड़ी खुशियां मनाईं। कंस की मृत्यु का समाचार जब उसके श्वसुर मगध राज जरासंध को मिला तो वह आग बबूला हो गया। अपनी विशाल सेना लेकर वह यदुवंशियों पर आक्रमण करने चल पड़ा। श्री कृष्ण को जब पता चला कि जरासंध मथुरा पर आक्रमण करने आ रहा है तो उन्होंने बलराम जी से कहा, ‘‘भैया बलराम! कंस को मार कर हमने मथुरा राज्य को अत्याचार से मुक्ति तो दिला दी, पर जब जरासंध के आक्रमण का चतुराई से सामना करना पड़ेगा। यह आमने-सामने का भयंकर युद्ध होगा, अत: सामान्य प्रजा को किसी सुरक्षित दुर्ग में रख कर धन-जन की रक्षा करनी होगी। फिर हम सैनिकों को लेकर युद्ध करेंगे।’’

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बलराम जी को यह विचार पसंद आया। जरासंध की सेना के आने पर श्री कृष्ण तथा बलराम जी ने बड़े ही युद्ध-कौशल से जरासंध को परास्त किया। जरासंध की बहुत सी सेना मारी गई। जरासंध बड़ा लज्जित हुआ। वह चला तो गया पर उसने यह तपस्या करके दैवी शक्ति प्राप्त करने तथा और भी बड़ी सेना लेकर सम्पूर्ण यदुवंश का नाश करने की प्रतिज्ञा की। जरासंध के हार जाने पर श्री कृष्ण और बलराम जी ने सोचा कि हारा हुआ शत्रु अधिक भयंकर होता है। अब वह बार-बार आक्रमण करेगा, इसलिए हमें मथुरा से दूर पश्चिम में समुद्र तट पर अपना राज्य स्थापित करना चाहिए ताकि बार-बार शत्रु के आक्रमण से धन-जन की हानि न हो। 

श्री कृष्ण और बलराम जी ऐसा विचार कर ही रहे थे कि कालयवन को अपने मित्र जरासंध की हार का समाचार मिल गया। वह अपनी विशाल आसुरी सेना लेकर श्री कृष्ण पर आक्रमण करने के लिए चल पड़ा। कालयवन वरदानी असुर था। उसने भगवान शंकर की कठोर तपस्या पर यह वरदान प्राप्त किया था कि किसी भी अस्त्र-शस्त्र से उसकी मृत्यु न हो। श्री कृष्ण ने जब कालयवन के मथुरा पर चढ़ाई करने के विषय में सुना तो उन्होंने बलराम जी से कहा, ‘‘भैया बलराम! जरासंध तो मानव राजा था, कालयवन वरदान प्राप्त असुर है। इसे तो आमने-सामने युद्ध करने की बजाय किसी कौशल से पराजित करना होगा। तुम आसुरी सेना को रोको। मैं अकेले ही कालयवन का सामना करूंगा और लड़ते हुए उसे युद्ध क्षेत्र से दूर ले जाऊंगा। अपने राजा और सेनापति को युद्ध में न देख कर असुर सैनिकों का मनोबल टूट जाएगा, फिर तुम असुर सेना को आसानी से परास्त कर सकोगे।’’

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ऐसी युद्ध नीति बनाकर श्री कृष्ण कालयवन की सेना की प्रतीक्षा करने लगे। थोड़ी ही देर में विशाल कालयवन की सेना मथुरा पर चढ़ आई। बलराम जी भी अपनी सेना के साथ युद्ध के मैदान में डट गए। श्री कृष्ण सीधे कालयवन के सामने आए। थोड़ी देर हथियारों से कालयवन का सामना करते रहे। कालयवन को थकाते-छकाते रहे, फिर अपना हथियार फैंक कर युद्ध के मैदान से भागे। श्री कृष्ण को भागते देख कर कालयवन दहाड़ा, ‘‘भागकर कहां जाओगे? अब तुम मेरे हाथों से बच नहीं सकते।’’

श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘कालयवन! मैं जानता हूं कि तुम बड़े पराक्रमी हो। मैं तुम्हारा सामना युद्ध के मैदान में नहीं कर सकता इसलिए तो भागा जा रहा हूं। तुम मुझे पकड़ लो, तभी तो मार सकोगे।’’

यह कह कर श्री कृष्ण आगे-आगे और कालयवन पीछे-पीछे भागता रहा। उधर कालयवन की सेना ने जब देखा कि उनका राजा कालयवन युद्ध के मैदान में कहीं दिखाई नहीं दे रहा है तो उन्होंने समझा कि कालयवन मारा गया। अपने राजा और सेनापति को न देख कर कालयवन की सेना युद्ध का मैदान छोड़कर भाग निकली। यदुवंशियों ने विजय की दुंदुभी बजानी आरंभ कर दी। कालयवन तो श्री कृष्ण को पकडऩे की धुन में पीछा करता जा रहा था। उसे अपनी सेना का ध्यान ही न रहा। श्री कृष्ण एक विशाल पहाड़ी गुफा में छिप गए। बहुत दूर निकल जाने के बाद भी जब श्री कृष्ण उसकी पकड़ में न आए तो उसने सोचा कि श्री कृष्ण अवश्य ही थक कर डर के मारे इसी गुफा में छिप गए होंगे। वह भी गुफा में घुसा। उसने देखा कि गुफा के अंदर एक बहुत विशाल आदमी पैर से सिर तक अपने को पीताम्बर से ढके सो रहा है। उसे देखते ही कालयवन अट्हास कर उठा, ‘‘अब आए न पकड़ में। मुंह ढक कर सोने का बहाना करके समझते हो मैं पहचान न पाऊंगा और तुम बच जाओगे।’’

श्री कृष्ण एक खंभे की ओट में खड़े यह सब देख-सुन रहे थे। कालयवन ने उस सोते हुए व्यक्ति को जोर से एक लात मारी और चीख कर बोला, ‘‘उठ, देख मैं तेरा काल आ गया हूं।’’

सोता हुआ वह आदमी चोट खाकर जाग गया। मुंह से कपड़ा हटाकर बोला, ‘‘अरे नराधम! तू कौन है जो इस प्रकार मेरी नींद में विघ्न डाल रहा है?’’

ऐसा कह कर उसने जब सामने खड़े कालयवन को देखा तो उसकी आंखों से अग्नि-शिखा निकली और देखते-ही-देखते सामने खड़ा कालयवन राख के ढेर में बदल गया। इतने में ही श्री कृष्ण खम्भे की ओट से हटकर सामने प्रकट हो गए और उस व्यक्ति से कहा, ‘‘महाराज मुचकुंद! आप धन्य हैं। एक भयंकर असुर पापी को भस्म कर आपने फिर मानव-कल्याण किया है। आपके दृष्टि पात से ही जो जल कर भस्म हो गया, वह असुर राज कालयवन था।’’

मुचकुंद ने कहा, ‘‘आप कौन हैं और मुझे कैसे जानते हैं?’’

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श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘महाराज! आपने त्रेतायुग में देवासुर संग्राम में देवताओं की बड़ी सहायता करके उन्हें विजय दिलाई थी। एक कल्प तक चलने वाले उस युद्ध में देवों की विजय होने पर जब आपने अपने राज्य और परिवार में जाने की इच्छा प्रकट की तो देवेंद्र ने कहा था, ‘‘राजन! अब तो आपको यहां आए एक कल्प बीत चुका है। देवलोक में आने पर आपको देवों की आयु मिली थी। भूमंडल पर तो अब आपका न कोई राज्य है और न परिवार इसलिए भूमंडल पर हम आपके विश्राम के लिए एक स्थान बताते हैं, आप वहां सोकर विश्राम करें। अगर किसी ने आपकी नींद में बाधा पहुंचाई तो वह आपके प्रथम दृष्टिपात से ही भस्म हो जाएगा। जाग जाने पर फिर आपको नारायण के दर्शन होंगे और आप बैकुंठ लोक चले जाएंगे।’’

मुचकुंद ने कहा, ‘‘आपने जो कहा वह सब सत्य है, पर एक कल्प पुराने मेरे इतिहास को आप कैसे जानते हैं? आप कौन हैं?’’

श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘मैं यदुवंशी कृष्ण हूं।’’

मुचकुंद ने पूछा, ‘‘एक साधारण नर यह सब कैसे जान सकता है? प्रभो! आपसे मेरी प्रार्थना है। आप अपने असली स्वरूप में मुझे दर्शन दें। मेरी नींद में बाधा डालने वाले इस असुर का तो प्राणांत हुआ, पर अब जाग जाने पर मेरा क्या होगा? मैं कब तक इस अवस्था में पड़ा रहूंगा?’’

श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘राजन! मैं नारायण का अवतार श्री कृष्ण द्वापर युग में नर-लीला कर रहा हूं। तुम मेरा वास्तविक स्वरूप देखोगे और उसे देखकर यह भौतिक शरीर त्याग कर अपने पुण्य कर्मों से मेरे मुक्ति-लोक में वास करोगे।’’ 

ऐसा कह कर श्री कृष्ण ने शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी नारायण के स्वरूप में मुचकुंद को दर्शन दिया। उसे देखते ही मुचकुंद के शरीर से एक दिव्य ज्योति निकल कर आकाश में विलीन हो गई।
(श्रीमद्भागवत पुराण से)
(राजा पाकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित ‘पुराणों की कथाएं’ से साभार)

 


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Niyati Bhandari

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