Kalpa Vriksha: आज भी भारत में है समुद्र मंथन से निकला कल्पवृक्ष

punjabkesari.in Thursday, Jul 21, 2022 - 09:48 AM (IST)

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Kalpa Vriksha: उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में महाकालेश्वर का एक मंदिर स्थित है जिसके परिसर में कल्पवृक्ष लगा हुआ है। इस मंदिर का दर्शन करने के लिए लोग बहुत दूर-दूर से आते हैं। सावन के अंतिम सोमवार के दिन इतने भक्त यहां जल चढ़ाने आते हैं कि यहां पैर रखने की भी जगह नहीं होती।
 
कल्पवृक्ष के बारे में बताया जाता है कि सतयुग में समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी समुद्र से निकला था। पूरे देश में कल्पवृक्ष सिर्फ 7 स्थानों पर ही लगा है और आठवां स्थान है मुरादाबाद का महाकालेश्वर मंदिर। कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने इसे स्वर्ग से लाकर पृथ्वी पर स्थापित किया था।

इस कल्पवृक्ष पर कलावा बांधने और जल चढ़ाने से लोगों की हर मन्नत पूरी होती है। कल्पवृक्ष भारत में सिर्फ हैदराबाद, गोलकुंडा किला, राष्ट्रपति भवन, प्रयागराज, कोलकाता और हरिद्वार में लगा हुआ है। यहां दूर-दूर से लोग पूरे वर्ष दर्शन करने के साथ ही इस पर जल चढ़ाने व कलावा बांधने आते हैं।

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उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में भी है एक कल्पवृक्ष

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर शहर में भी यमुना नदी तट पर भी एक कल्पवृक्ष है। यह वृक्ष कम से कम एक हजार साल पुराना बताया जाता है। जिसके सर्दियों में सूखने और गर्मी के मौसम में हरा-भरा रहने का दृश्य बड़ा ही रमणीक लगता है। यह कल्पवृक्ष बुंदेलखंड क्षेत्र का इकलौता वृक्ष है, जिसके अतीत में कई रोमांचक इतिहास छिपे हैं।

हमीरपुर शहर यमुना और बेतवा नदियों से चारों ओर से घिरा है। करीब सात किलो मीटर लम्बाई में बसा यह शहर बड़ा ही रमणीक लगता है। यहां यमुना नदी के तट पर कल्पवृक्ष आम लोगों के लिए श्रद्धा और आस्था का केन्द्र बना हुआ है। इस वृक्ष की मोटाई करीब सोलह फुट से अधिक है। वहीं, ऊंचाई भी पैंतालीस फुट है।
 
यमुना नदी के तट पर इस वृक्ष को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ती है। शुरू में इसकी पहचान पारिजात वृक्ष के रूप में हुई, लेकिन बाद में वन विभाग ने रिसर्च करने के बाद इसे कल्पवृक्ष का नाम दिया। पूरे बुंदेलखंड क्षेत्र में यही इकलौता वृक्ष है, जो सबसे अधिक ऑक्सीजन देता है। वन विभाग ने बताया कि शासन ने सौ साल पुराने वृक्षों को संरक्षित करने के निर्देश दिए थे जिनमें कल्पवृक्ष को सूची में शामिल कर रिपोर्ट शासन को भेजी जा चुकी है।
 
फिलहाल इस पौराणिक वृक्ष को संवारने और सुरक्षित रखने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि वे इस वृक्ष को दूर से ही प्रणाम करें। कल्पवृक्ष को चारों ओर से लोहे की रेलिंग लगाकर संरक्षित भी कराया गया है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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