मानो या न मानो: कब होता है, चन्द्र दर्शन निषेध कलंक चतुर्थी या सिद्धिविनायक व्रत के दिन ?
punjabkesari.in Tuesday, Aug 27, 2024 - 01:49 PM (IST)
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Chandra Darshan- चतुर्थी तिथि में चन्द्र उदय होकर पंचमी तिथि तक चन्द्र अस्त पंचमी तिथि में हो तो सिद्धिविनायक व्रत के दिन चन्द्र दर्शन करना या होना दोषकारक नहीं होता तथा यदि पहले दिन सायंकाल से चतुर्थी तिथि की व्याप्ति हो जाए अर्थात तृतीया में चन्द्रोदय होकर चतुर्थी तिथि व्याप्ति तक चन्द्र दर्शन हो यानी चन्द्र अस्त चतुर्थी तिथि में हो तो चन्द्र दर्शन का दोष पहले दिन लगेगा, फिर चाहे उस दिन सिद्धिविनायक व्रत हो या न हो। सिद्धिविनायक व्रत का सम्बन्ध मध्याह्न व्यापिनी ग्राह्य से होता है। केवल चतुर्थी में ही चन्द्र दर्शन का दोष लगता है।
चतुर्थ्यामुदितस्य पंचम्यां दर्शनं विनायकव्रत दिनेपि न दोषाय पूर्वदिने सायाह्नमारभ्य प्रवृत्तायां चतुर्थ्यां विनायकव्रताभावेपि पूर्वैद्युरेव चंद्रदर्शने दोष इति सिध्यति । इदानीं लोकास्तवेकतरपक्षाश्रयेण विनायक व्रतदिने एवं चंद्रं न पश्चयन्ति न तदयकाले दर्शनकाले वा चतुर्थीसत्त्वासत्त्वे नियमेनाश्रयन्ति ।
अधिकतर जनमानस में यह भ्रांति प्रचलित है की सिद्धिविनायक व्रत वाले दिन ही चन्द्रदर्शन का निषेध है। फिर चाहे उस दिन की संध्या में पंचमी तिथि व्याप्ति में ही चन्द्रास्त हो यानी पंचमी तिथि तक चन्द्र दर्शन हो रहा हो। दर्शन काल में चतुर्थी होने या न होने पर चन्द्र दर्शन के नियम को नहीं माना जाता।
Story related to Kalank Chaturthi कलंक चतुर्थी से जुड़ी कथा- हिंदू शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की रात चन्द्र दर्शन होने पर मिथ्या कलंक लगता है। इसका प्रमाण है श्री कृष्ण पर मिथ्या आरोप लगने की घटना महाभारत के संदर्भ में आती है। द्वापर युग में द्वारकापुरी में सत्राजित नामक यदुवंशी को भगवान सूर्य की कृपा से मणि प्राप्त हुई। एक बार वह उसे धारण कर राजा उग्रसेन की सभा में आया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने राष्ट्र हित में वह दिव्य मणि उग्रसेन को भेंट करने की सलाह दी। सत्राजित के मन में यह भाव आया कि शायद भगवान श्रीकृष्ण उनकी मणि लेना चाहते हैं।
उसने मणि अपने भाई प्रसेन को दे दी। एक बार प्रसेन मणि को गले में डालकर आखेट के लिए वन में गया, जहां वह सिंह द्वारा मारा गया, लेकिन सत्राजित ने भगवान श्रीकृष्ण पर मणि छीनने का आरोप लगाया।
श्रीकृष्ण जंगल में स्यमंतक मणि तथा प्रसेन को ढूंढने गए। वहां रामायण काल के जामवंत जी अपनी पुत्री जामवंती के साथ रहते थे, उन्हें वन में स्यमंतक मणि मिल गई। श्री कृष्ण का जामवंत से युद्ध हुआ, जिन्होंने उन्हें अपने स्वामी श्री राम के रूप में पहचान लिया। जामवंत जी ने अपनी पुत्री का विवाह उनसे कर दिया तथा स्यमंतक मणि भी उन्हें दे दी। इस प्रकार श्रीकृष्ण मिथ्या कलंक से मुक्त हुए।