Jitiya Jivitputrika Vrat Katha: संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए पढ़ें जीवित्पुत्रिका व्रत कथा
punjabkesari.in Wednesday, Sep 10, 2025 - 03:23 PM (IST)

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Jivitputrika Vrat Katha: जीवित्पुत्रिका व्रत संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत की कथा सुनने और व्रत रखने से संतान की मृत्यु का भय टल जाता है और निसंतान दंपत्तियों को संतान-प्राप्ति का आशीर्वाद भी मिलता है। संतान-सुख की विशेष कामना हेतु इस दिन माताएं जीवित्पुत्रिका मंत्र का जप और कथा सुनकर अपनी संतान की मंगल-कामना करें।
Jivitputrika Vrat Mantra जीवित्पुत्रिका व्रत मंत्र- जीवित्पुत्रिका यै नमः
भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े मंत्र का जाप करें- ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:॥
Jivitputrika story जीवित्पुत्रिका कथाः महाभारत के 18वें दिन कौरवों के तीन योद्धा शेष बचे थे अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा। इसी दिन अश्वत्थामा ने पांडवों के वध की प्रतिज्ञा ली लेकिन उन्हें समझ में नहीं आता कि कैसे पांडवों को मारा जाए। अश्वत्थामा यही सोच रहे थे तभी एक उल्लू द्वारा रात्रि को कौवे पर आक्रमण करने पर उल्लू उन सभी को मार देता है। यह घटना देखकर अश्वत्थामा के मन में भी यही विचार आया और घोर कालरात्रि में कृपाचार्य तथा कृतवर्मा की सहायता से पांडवों के शिविर में पहुंचकर उसने सोते हुए पांडवों के 5 पुत्रों को पांडव समझ कर उनका सिर काट दिया। इस घटना से धृष्टद्युम्र जाग जाता है तो अश्वत्थामा उसका भी वध कर देता है।
अश्वत्थामा के इस कुकर्म की सभी निंदा करते हैं। अपने पुत्रों की हत्या से दुखी द्रौपदी विलाप करने लगती हैं। उनके विलाप को सुनकर अर्जुन ने अश्वत्थामा का सिर काट डालने की प्रतिज्ञा कर ली। अर्जुन की प्रतिज्ञा सुन अश्वत्थामा भाग निकला तब श्री कृष्ण को सारथी बनाकर एवं अपना गाण्डीव-धनुष लेकर अर्जुन ने उसका पीछा किया। अश्वत्थामा को कहीं भी सुरक्षा नहीं मिली तो भय के कारण उसने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। मजबूरी में अर्जुन को भी ब्रह्मास्त्र चलाना पड़ा। ऋषियों की प्रार्थना पर अर्जुन ने तो अपना अस्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा ने अपना ब्रह्मास्त्र अभिमन्यु की विधवा उत्तरा की कोख की ओर मोड़ दिया। कृष्ण अपनी शक्ति से उत्तरा के गर्भ को बचा लेते हैं। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। कहा जाता है तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा।
Mythological story related to Jivitputrika fast जीवित्पुत्रिका व्रत से जुड़ी पौराणिक कथाः प्राचीन काल में गन्धर्वराज नामक जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। ये अपनी युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन इन्हेें भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली जो विलाप में थी। जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वे नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है। अपने वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा। जिसमें आज उनके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है।
नागमाता की पूरी बात सुनने के बाद जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे। बल्कि उनके पुत्र की जगह खुद कपड़े में लिपटकर गरुड़ के समक्ष उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ठीक ऐसा ही किया। गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाया और पहाड़ की तरफ उड़ने लगा। थोड़ा आगे जकर जब गरुड़ ने सोचा कि हमेशा की तरह आज नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जिसके बाद जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बताई। कहा जाता है इस घटना के बाद गरुड़ ने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और उन्हें नागों को न खाने का वचन दिया।