Anant Chaturdashi Katha: अनंत चतुर्दशी व्रत पर अनंत फल देने वाली हैं ये चमत्कारिक कथाएं

punjabkesari.in Thursday, Sep 04, 2025 - 02:02 PM (IST)

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Anant Chaturdashi 2025: अनंत चतुर्दशी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा के लिए माना जाता है। इस दिन विष्णु भगवान को अनंत स्वरूप में पूजते हैं। संयोगवश इसी दिन गणेश उत्सव का अंतिम दिन भी होता है, इसलिए गणपति विसर्जन भी अनंत चतुर्दशी पर ही होता है। आईए पढ़ें, अनंत चतुर्दशी व्रत पर अनंत फल देने वाली हैं ये चमत्कारिक कथाएं-

Anant Chaturdashi

Anant Chaturdashi ki Kahani: अनंत चतुर्दशी व्रत पर अनंत फल देने वाली हैं ये चमत्कारिक कथाएं अनंत चतुर्दशी की कहानी
एक समय भृगु जी की पुत्री ने भगवान विष्णु की बड़ी तपस्या की। जब भगवान ने दर्शन दिए तो क्रोधित भृगु जी ने योगनिद्रा में लीन भगवान की छाती पर लात मारी तो भगवान ने मुनि के पैर पकड़ लिए और उन्हें सहलाते हुए पूछने लगे कि, ‘‘हे ब्राह्मण आपके पैर में कोई चोट तो नहीं आई?’’

भगवान का अनन्य विनम्र भाव देख कर मुनि को बड़ी ग्लानि हुई। 

भगवान की भक्त वत्सलता तथा शरणागत वत्सलता की अनन्त कथाओं से पुराण ओत-प्रोत है। गणिका, अजामिल जैसे अधम चरित्र वाले जीव भी भगवान की शरण को प्राप्त होकर संसार से मुक्त हो गए।

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Anant Chaturdashi story अनंत चतुर्दशी कथा
एक समय युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा, "हे माधव! अनंत व्रत का महत्व क्या है?"

भगवान ने कहा, "एक बार सत्ययुग में एक ब्राह्मण की पत्नी सुशीला ने अनंत व्रत किया। उसने भगवान विष्णु की पूजा करके हाथ में 14 गांठ वाला अनंत सूत्र बांधा। इससे उसके घर में धन, सुख, शांति और समृद्धि आ गई।

इसी प्रकार जब पांडव कठिनाइयों में थे, तब कृष्ण ने युधिष्ठिर को भी यह व्रत करने को कहा। युधिष्ठिर ने यह व्रत करके जीवन की परेशानियों से मुक्ति पाई और पांडवों को पुनः राज्य मिला। इसलिए इस व्रत को करने से हर प्रकार की विपत्ति से मुक्ति मिलती है।

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Anant Chaturdashi Vrat Katha अनंत चतुर्दशी व्रत कथा: श्री कृष्ण ने इस व्रत की महिमा को समझाने के लिए सुनाई थी ये कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में सुमंत नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी दीक्षा के साथ रहता है। उनकी एक बहुत ही सुन्दर कन्या थी जिसका नाम सुशीला था। कुछ समय बाद सुशीला की मां का निधन हो गया। सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री के साथ दूसरा विवाह कर लिया और अपनी बेटी का विवाह कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विवाह के बाद कौंडिन्य ऋषि सुशीला को अपने आश्रम लेकर जा रहे थे, रात होने के कारण वे रास्ते में ही रुक गए।

उस जगह सुशीला ने देखा की कुछ औरतें पूजा कर रही थी। सुशीला उनके पास गई और उस व्रत की महिमा जानने लगीं। महिलाओं ने सुशीला को अनंत चतुर्दशी की महिमा के बारे में बताया। ये सब जानने के बाद वो भी सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा करने लगी और 14 गांठों वाला अनंत धागा पहन लिया। उसके पति ने जब इस धागे के बारे में पूछा और सब कुछ जानने के बाद ऋषि कौंडिन्य ने उस धागे को आग में डाल दिया। ये सब देखकर भगवान बहुत रुष्ट हो गए और धीरे-धीरे उनकी सारी सम्पति नष्ट होने लगी।

कुछ समय बाद ऋषि कौंडिन्य अपनी पत्नी के साथ बैठकर दुःख का कारण जानने लगे तो पता चला कि यह सब उस धागे का अपमान करने के कारण हुआ। ऋषि ने अपनी गलती मानी और प्रायश्चित करने निकल पड़े। उस अनंत धागे की प्राप्ति के लिए वो वन में चले गए और भटकते-भटकते जमीन पर गिर पड़े। ये सब देखने के बाद अनंत भगवान प्रकट हुए और कहा तुमने मेरा अपमान किया था, इस वजह से तुम्हें ये सब झेलना पड़ा लेकिन तुम्हारे इस प्रश्चाताप को देखकर में खुश हुआ। भगवान ने ऋषि को 14 साल तक अनंत चतुर्दशी का व्रत करने को कहा। इस व्रत के प्रभाव से उनकी धन, संपत्ति वापस लौट आई और जीवन सुखमय हो गया।

जिस तरह अनंत भगवान ने ऋषि कौंडिन्य के दुःख को दूर किया। उसी तरह प्रभु आप सब के दुःख को भी दूर करें और जीवन को खुशहाल बनाएं।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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