Jay maharana pratap: आज भी यहां रहते हैं डुंगर बाबा के वंशज
punjabkesari.in Wednesday, Jan 19, 2022 - 01:01 PM (IST)
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Bharat Ka Veer Putra Maharana Pratap: एक बार की बात है कि महाराणा प्रताप अपने पूरे लाव लश्कर के साथ गर्मी के दिनों में शिकार खेलने के लिए निकले। थोड़ी ही देर में वह उदयपुर के महलों से बियाबान जंगल में आ गए और उनका काफिला पीछे छूट गया। बाद में तो महाराणा प्रताप और उनके चुने हुए 10-15 सरदार ही बच गए। भयंकर गर्मी के कारण महाराणा का गला सूखने लगा और उन्हें जोरों की प्यास लगी। बहुत दूर पेड़ की छाया में उन्हें एक बूढ़ा-सा व्यक्ति संध्या करता हुआ दिखलाई दिया लेकिन उसका संध्या करने का ढंग अनोखा था।
आम की गुठली के खोल में उसने पानी भर रखा था और खोल के जल से वह आचमन कर रहा था। जब दरबारियों ने उस बूढ़े व्यक्ति को पूजा करते देखा तो उन्हें यह विश्वास हो गया कि अब पानी भी मिल जाएगा और महाराणा प्रताप के प्राण भी बच जाएंगे।
फिर एक दरबारी ने उस बूढ़े व्यक्ति से महाराणा के लिए जल मांगा। तब उसने महाराणा से गुठली को मुंह के पास लगा कर उसी से अपनी प्यास बुझाने के लिए कहा लेकिन एक बड़ा आश्चर्य उस समय घटित हो गया। जहां दरबारी ने तो गले को तर करने की बात कही थी वहां महाराणा के साथ सभी दरबारियों की प्यास उस आम की गुठली के खोल में भरे पानी से बुझ गई।
यह चमत्कार देख कर महाराणा प्रताप ने तुरंत पूछा, ‘‘भाई आप कौन हैं?’’
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘‘मैं ब्रज का रहने वाला एक चौबे मिश्र हूं और अपना नित्य नियम कर रहा था। मेरा नाम चयन राय मिश्र है।’’
महाराणा ने उसे कुछ न कुछ मांगने के लिए आग्रह किया परन्तु उसने हर बात को यह कह कर टाल दिया कि उसके पास बहुत कुछ है लेकिन महाराणा नहीं माने।
जब उस व्यक्ति ने देखा कि महाराणा प्रताप किसी भी सूरत में नहीं मान रहे हैं तो उसने उनसे यह प्रार्थना कि कि ऐसा गांव जागीर में दिया जाए जो नदी के किनारे हो और जिससे वहां की महिलाएं और बच्चे उसमें स्नान भी कर सकें और उनके पास पानी की कभी कमी न रहे।’’
महाराणा ने ऐसे गांव का पता लगाया और चयन राज मिश्र की इच्छा के अनुसार दीपली गांव की जागीर उन्हें विधिवत ताम्रपत्र लिख कर दे दी। यही बाबा चयन राय आगे जाकर डुंगर बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए।
आज भी डुंगर बाबा के गीत घर-घर में गाए जाते हैं और जब कभी भी चौबे लोगों के घर में शादी-विवाह के मौके आते हैं तो उन गीतों में डुंगर बाबा की अमिट छाप दिखलाई पड़ती है।
यह गांव चित्तौड़ से लगभग 7 किलोमीटर दूरी पर है। वहां डुंगर बाबा के वंशज आज भी रहते हैं और इस घटना को याद कर लोग बाग सेवा के क्षेत्र में प्रेरणा लेकर आनंदित होते हैं।