Inspirational Story: खुद को Smart और clever समझने वाले अवश्य पढ़ें ये कहानी

punjabkesari.in Thursday, Dec 10, 2020 - 09:30 AM (IST)

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Best Motivational Story: एक राजा की 3 लड़कियां थीं। वह उन तीनों से बहुत प्यार करता था। तीनों विवाह के योग्य हो गईं। राजा उनके लिए योग्य वर चुनना चाहता था। उसने उन तीनों को बुलाया। उनके हाथों में एक-एक धनुष और तीर दे दिया और कहा कि जिस राजकुमारी का तीर जहां गिरेगा, वहीं उसकी शादी कर दी जाएगी।
 
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राजकुमारियों ने तीर छोड़े। बड़ी राजकुमारी का तीर मंत्री के लड़के के महल पर गिरा। उसकी शादी उसी से कर दी गई। मंझली राजकुमारी का तीर मुख्य न्यायाधीश के लड़के के महल पर गिरा। उसकी शादी भी न्यायाधीश के लड़के से हो गई। सबसे छोटी राजकुमारी का तीर भटक गया। वह दूर कहीं जंगल में रहने वाले एक लकड़हारे की झोंपड़ी पर जाकर गिरा। राजा थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गया पर वह वचनबद्ध था। उसे राजकुमारी का विवाह दूसरे देश में उसी लकड़हारे के साथ करना पड़ा।

राजकुमारी को इसका कोई दुख नहीं हुआ। उसे अपने आप पर भरोसा था। वह तुरंत झोंपड़ी में रहने चली आई। राजकुमारी और उसके पति ने मिलकर उस टूटी झोंपड़ी की मुरम्मत की। दोनों सुबह से शाम जंगल में जाकर मजदूरी करने लगे।

दिन बीतते गए और फिर राजकुमारी के एक लड़की हुई। तभी एक अद्भुत घटना घटी। झोंपड़ी के चारों ओर तेज रोशनी फैल गई। उस रोशनी के घेरे से तीन कन्याएं निकलीं। वे तीनों झोंपड़ी के द्वार पर आकर खड़ी हो गईं। उन्होंने हाथ से संकेत किया। देखते ही देखते झोंपड़ी एक सुंदर घर में बदल गई।
 
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तीनों ने बच्ची को एक-एक वरदान दिया और आंखों से ओझल हो गईं। उन कन्याओं का वरदान पाकर बच्ची में अद्भुत गुण पैदा हो गए। वह रोती तो उसकी आंखों से आंसुओं के स्थान पर मोती झरने लगते। हंसती तो गुलाब के फूल खिल उठते। राजकुमारी ने उसका नाम वरदानी रख दिया।

समय तेजी से बीत रहा था। अब वरदानी बड़ी होने लगी थी। वरदानी को देख कर माता-पिता फूले नहीं समाते थे। उसके गुणों की चर्चा दूर-दूर तक फैलने लगी।

इलाके के राजा ने सोचा, ‘‘क्यों न वरदानी को अपनी पुत्रवधू बना लिया जाए। राजकुमार विवाह का संदेशा लेकर वरदानी के पास गया। महल की एक चतुर बुढ़िया भी राजकुमार के साथ गई। वरदानी के माता-पिता ने खुशी-खुशी राजा के प्रस्ताव को मान लिया परंतु बुढ़िया वरदानी की सुंदरता से जल-भुन गई। वह चाहती थी कि उसकी बेटी राजरानी बने।

शादी के लिए वरदानी को लाने राजा ने बुढ़िया को भेजा। बुढ़िया ने दो पालकियां तैयार करवाईं। उसने एक में अपनी लड़की को दुल्हन के कपड़े पहनाकर बैठा दिया। उसी पालकी में लकड़ी का एक बड़ा संदूक रखा। दूसरी में वह स्वयं बैठ गई। बुढ़िया ने पालकी उठाने वालों को रुपए देकर अपनी ओर मिला लिया था।

वरदानी के मां-बाप ने खुशी-खुशी उसे विदा किया। रास्ते में घना जंगल था। वहां एकाएक पालकियां रुक गईं। बुढ़िया ने वरदानी को डोली से उतारा और नौकरों की सहायता से उसके हाथ-पैर बांध कर संदूक में बंद कर दिया गया। संदूक को नौकर जंगल में फैंक आए। बुढ़िया की बेटी दुल्हन की पालकी में बैठ गई और राजमहल में आ गर्ईं। शाम को शुभ मुहूर्त में राजकुमार का विवाह हो गया। दूसरे दिन राजकुमार नई दुल्हन से मिलने चला। राजकुमार सोच रहा था कि वरदानी अपने माता-पिता की याद में अवश्य रोई होगी। उसकी आंखों से मोती भी गिरे होंगे। इस समय उसके चारों ओर मोतियों का ढेर लगा होगा। राजकुमार यही सोचता वरदानी के पास पहुंचा परंतु वहां न मोतियों का ढेर था, न खिले हुए फूलों के गुच्छे। राजकुमार को आश्चर्य हुआ।
 
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‘‘कौन हो तुम?’’ राजकुमार चिल्लाया।

चालाक बुढ़िया सब देख रही थी। वह तुरंत राजकुमार के पास आई। हंसते हुए बोली, ‘‘राजकुमार, उद्धत मत बनो। यह वरदानी है, तुम्हारी पत्नी। इसके साथ तुम्हें ठीक व्यवहार करना चाहिए। असल में इससे एक भूल हो गई है। राजमहल आते समय इसने वन कन्याओं की पूजा नहीं की इसलिए वन कन्याओं ने इसे श्राप दे दिया है । एक वर्ष तक यह साधारण राजकुमारी रहेगी। उसके बाद फिर वह अपने असल रूप में आ जाएगी।’’

यह सुनकर राजकुमार चुप हो गया।

इधर बेचारी वरदानी का बुरा हाल था। संदूक में बंद होने पर उसका दम घुटने लगा। वह संदूक के भीतर से ही चिल्लाती रही तभी वहां से एक राहगीर निकला। उसने वह आवाज सुनी और संदूक खोला। भीतर इतनी सुंदर लड़की को देख कर उसे बड़ा अचरज हुआ। वरदानी के रोने से संदूक में मोतियों का ढेर लग गया था।
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राहगीर ने वरदानी को पानी पिलाया। वरदानी ने अपनी सारी कहानी सुना डाली। राहगीर बूढ़ा आदमी था। उसकी अपनी कोई संतान नहीं थी इसलिए वह वरदानी को अपने घर ले गया।

वह बहुत गरीब था परंतु उन मोतियों को बेचने से उसे काफी धन मिला। दोनों सुख से रहने लगे। एक दिन वह वरदानी के लिए सुंदर-सुंदर कपड़े लाया। कपड़े देख कर वरदानी को हंसी आ गई। उसके हंसते ही चारों ओर गुलाब के फूल खिलने लगे। बूढ़े की समझ में कुछ नहीं आया। तभी वरदानी ने कहा, ‘‘बाबा देखते क्या हो। इन फूलों को राजमहल में जाकर बेच आओ।’’

वह फूलों के गुच्छों को सुंदर ढंग से सजा कर राजमहल में जा पहुंचा। वह चिल्ला-चिल्लाकर फूल बेचने लगा। उसी समय राजकुमार शिकार से वापस लौट रहा था। उसने अद्भुत लाल गुलाबों को देखा। वह गुलाबों का मौसम नहीं था। राजकुमार ने बूढ़े को पास बुलाया। कहा, ‘‘अरे इतने सुंदर गुलाब।’’

राजकुमार ने मुंह मांगे दाम देकर सारे फूलों को खरीद लिया। उसने पूछा, ‘‘क्यों बाबा! इस मौसम में इतने अच्छे गुलाब किसके बगीचे में खिलते हैं?’’

‘‘बगीचे में नहीं सरकार...।’’ कहता-कहता बूढ़ा चुप हो गया।

‘‘बगीचे में नहीं तो और कहां...?’’ राजकुमार ने आश्चर्य से बूढ़े की ओर देखा।
 
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बूढ़ा अपनी बात छिपा नहीं सका। उसने वरदानी की सारी कहानी राजकुमार को कह सुनाई। सुनते ही सारा भेद खुल गया। राजकुमार के पिता ने तुरंत ही बुढ़िया और नकली राजरानी को कैद में डाल दिया। वरदानी और राजकुमार का धूमधाम से विवाह हुआ। धोखा देने वाली बुढ़िया का बुरा हाल हुआ। उसे देश निकाला दिया गया।

सीख : दुष्ट कामों की सजा आखिर मिलती ही है।

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Niyati Bhandari

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