दूसरों से श्रेष्ठ होने का भाव दिलाता है छप्पड़ फाड़ सफलता

punjabkesari.in Tuesday, Nov 29, 2016 - 11:00 AM (IST)

किसी नगर में एक सेठ रहता था, जिसकी अनेक कपड़ा फैक्टरियां थीं। एक बार सेठ ने देखा कि उसकी एक कपड़ा मिल के कर्मचारी लक्ष्य के मुताबिक उत्पादन नहीं कर रहे हैं। पूछताछ करने पर मैनेजर बोला, ‘‘सेठजी, मैंने मिल में काम करने वाले मजदूरों को ज्यादा काम करने के लिए हर तरह से समझाया, उन्हें लालच भी दिया और यहां तक कि नौकरी से निकालने का भय भी दिखाया, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। वे किसी तरह पर्याप्त उत्पादन नहीं कर रहे हैं।’’


सेठ जब मैनेजर से यह चर्चा कर रहा था, तब शाम के 7 बजे थे और रात की पाली वाले मजदूर काम पर आने वाले थे। सेठ ने मैनेजर से चॉक का एक टुकड़ा मांगा और फिर सुबह की पाली के मजदूरों, जो काम खत्म कर घर जाने की तैयारी में थे, को बुलाकर पूछा, ‘‘आज तुम्हारी पाली में कपड़े के कितने थान तैयार हुए?’’ 


मजदूरों ने जवाब दिया, ‘‘डेढ़ सौ।’’ सेठ ने बिना कुछ कहे फर्श पर बड़े अंकों में ‘150’ लिखा और वहां से चले गए।


जब रात की पाली के मजदूर आए और उन्होंने ‘150’ लिखा हुआ देखा तो उसका मतलब पूछा। दिन की पाली वाले मजदूरों ने बताया, ‘‘आज सेठजी आए थे। उन्होंने हमसे पूछा कि हमने दिन में कपड़ों के कितने थान तैयार किए। हमने उन्हें बताया कि डेढ़ सौ। उन्होंने उसी अंक को यहां लिखा है।’’


अगली सुबह सेठ पुन: मिल में पहुंचे तो देखा कि रात की पाली के मजदूरों ने काम करने के बाद फर्श पर ‘150’ का अंक मिटाकर उसकी जगह बड़े-बड़े अंकों में ‘175’ लिख दिया है। जब दिन की पाली वाले लोग सुबह काम पर आए और उन्होंने फर्श पर ‘175’ लिखा हुआ देखा तो सोचने लगे कि रात की पाली वाले खुद को कुछ ज्यादा ही होशियार समझते हैं। उन्हें सबक सिखाना ही पड़ेगा। इसके बाद दिन की पाली वाले मजदूरों ने दोगुने जोश से काम किया और शाम को घर जाते वक्त उन्होंने फर्श पर बड़े-बड़े अंकों में लिखा ‘250’।


इस तरह कुछ ही दिनों में मिल का उत्पादन तेजी से बढ़ गया। कथा का सार यह है कि काम करवाने का अच्छा तरीका है ऐसी प्रतियोगिता के लिए प्रोत्साहित करना, जिसमें दूसरों से श्रेष्ठ होने का भाव निहित हो। इस तरह की सकारात्मक प्रतिस्पर्धा से उन्नति के नए आयाम तय किए जा सकते हैं।


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