क्यों जरूरी है खुद को कमतर समझना बंद करना?
punjabkesari.in Saturday, Nov 15, 2025 - 08:23 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Inspirational Story: वीर योद्धा रुद्रसेन एक दिन एक संत से मिलने उनके आश्रम पहुंचे। संत प्रार्थना में लीन थे। प्रार्थना पूरी होने पर रुद्रसेन ने उनसे कहा, “भगवन, मैं स्वयं को बहुत हीन महसूस करता हूं। न जाने कितनी ही बार मैंने मृत्यु को अपने समक्ष देखा है, और हमेशा निर्बलों की रक्षा की है। परंतु आज आपको ध्यानमग्न देख मुझे लग रहा है कि मेरे होने या न होने का कोई महत्व नहीं।”

यह सुनकर संत बोले, “थोड़ी देर प्रतीक्षा करो। मैं लोगों से मिलने के बाद तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा।”
संत ने एक-एक करके सभी आगंतुकों की शंका का निवारण किया।
सबको विदा करके वह उसे बगीचे में ले गए। आसमान में पूर्णिमा का चांद था। संत ने रुद्रसेन से कहा, “चंद्रमा बहुत सुंदर है न?”
रुद्रसेन ने जवाब दिया, “जी हां, इसमें कोई शक नहीं।”

संत बोले, “यह तो तुम जानते हो कि चंद्रमा रात भर पूरे नभ मंडल को नापता हुआ अस्त हो जाएगा और कल सूर्योदय होगा। सूर्य के तेज प्रकाश के सामने चंद्रमा का क्षीण प्रकाश कुछ नहीं है। पर मैंने कभी चंद्रमा को यह शिकायत करते नहीं सुना कि मैं सूर्य की भांति क्यों नहीं चमकता? मैं इतना तुच्छ क्यों हूं?”
रुद्रसेन ने कहा, “सूर्य और चंद्रमा का अपना-अपना सौंदर्य है, दोनों की तुलना नहीं हो सकती।”
संत बोले, “यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। हम दोनों अलग-अलग तरह के हैं और अपनी आस्था तथा विश्वास के अनुरूप हम दोनों ही दुनिया को बेहतर बनाने के लिए कर्म कर रहे हैं। तुम्हें हीनता का बोध नहीं होना चाहिए।”
रुद्रसेन ने संत को प्रणाम किया और संतुष्ट होकर आश्रम से चला गया।

