Holi Festival: होली के हैं रंग अनेक, पढ़ें रोचक जानकारी

punjabkesari.in Tuesday, Mar 12, 2024 - 08:23 AM (IST)

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A Celebration of Colors and Joy: होली पर्व भारतीय संस्कृति का पवित्र त्यौहार है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह रंगोत्सव हर्षोल्लास की अभिव्यक्ति करने वाला तथा हास-परिहास का पर्व है। फाल्गुन माह की पूर्णिमा को फाल्गुनी नक्षत्र में आने के कारण ही इस माह का नाम फाल्गुन पड़ा है। हमारे त्यौहार युगों-युगों से चली आ रही सांस्कृतिक परंपराओं, मान्यताओं एवं सामाजिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। होली के दिनों में प्रकृति का माधुर्य अपनी पराकाष्ठा पर होता है। मानो पेड़ों पर आए रंग-बिरंगे फूल रंगोत्सव पर अपनी सहभागिता प्रदर्शित कर रहे हों।

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Story behind holi: इस पर्व के संबंध में जो कथा पुराणों में वर्णित है, उसके अनुसार भक्त प्रह्लाद, जो भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे, उनका पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु जी का घोर शत्रु था। उसने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद को श्री हरि विष्णु जी की भक्ति से विमुख करने के लिए अनेक उपाय किए व प्रताड़ित किया। उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने का निर्देश दिया। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर भक्त प्रह्लाद बच गए। प्रेम एवं सद्भावना की विजय हुई और द्वेष तथा उत्पीड़न की प्रतीक होलिका नष्ट हुई। इसी प्रसन्नता को लेकर लोगों ने होली पर्व मनाया।

भारतवर्ष में रंगोत्सव का यह त्यौहार समाज के हर वर्ग में बड़े उत्साह एवं हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इसमें जाति-वर्ण भेद का कोई स्थान नहीं है। होली पर खेतों में गेहूं की बालियां भी पक कर लहराती हुईं किसान की खुशी में वृद्धि कर देती हैं। पौराणिक ग्रंथों में खेत से प्राप्त नए अनाज (नवान्न) को यज्ञ में हवन करके ग्रहण किए जाने का उल्लेख मिलता है।

Braj ki Holi: ब्रज का विश्व प्रसिद्ध रंग-बिरंगा होली का त्यौहार जितने रूपों में 84 कोस में बसे पूरे ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है, उतने रूपों में विश्व में कहीं कोई पर्व नहीं मनाया जाता। ब्रज के मंदिरों में भक्त भगवान श्री राधा-कृष्ण जी की भक्ति में रंग कर गुलाल में सराबोर होकर होली खेलने आते हैं। बरसाना, वृंदावन, मथुरा, नंदगांव और दाऊजी के मंदिरों में अलग-अलग दिनों में होली धूमधाम से मनाई जाती है। यहां टेसू और गुलाब के फूलों से बने रंगों की फुहारें भक्तों को भिगोती रहती हैं। बरसाना और वृंदावन के मंदिरों में तो फूलों की होली खेली जाती है। बरसाना की लठमार होली विश्व प्रसिद्ध है। इसे देखने देश-विदेश से लोग आते हैं।

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वृंदावन में रंग भरनी एकादशी से होली का विशेष शुभारंभ हो जाता है। इस दिन वृंदावन की परिक्रमा देने के लिए भक्त आते हैं और पूरी परिक्रमा में रंग-गुलाल उड़ता है। पूरे ब्रज में होलिका दहन विधि-विधान से मनाया जाता है।

The Meaning Behind the Many Colors of Holi Festival: हमारे प्राचीन कवियों ने फाल्गुन मास और होली के रंग भरे त्यौहार को अपने शब्दों में बड़ी सजीवता से प्रस्तुत किया है। उन्होंने होली के माध्यम से सगुण साकार भक्तिमय प्रेम और निर्गुण निराकार भक्तिमय प्रेम का निष्पादन किया है। भक्तिकाल और रीतिकाल के हिन्दी साहित्य में होली और फाल्गुन माह का विशिष्ट महत्व रहा है। आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्तिकालीन सूरदास, रहीम, रसखान, पद्माकर, जायसी, मीराबाई, कबीर और रीतिकालीन बिहारी, केशव, घनानंद आदि अनेक कवियों का यह प्रिय विषय रहा।

रसखान के अनुसार :
फागुन लाग्यो जब तें
तब तें ब्रजमंडल में धूम मच्यौ है।

मीरा के शब्दों में :
रंग भरी राग भरी रागसूं भरी री।
होली खेल्यां स्याम संग रंग सूं भरी री॥

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इस पद में मीरा ने होली के पर्व पर अपने प्रियतम कृष्ण को अनुराग भरे रंगों की पिचकारियों से रंग दिया है। पद्माकर के अनुसार गोकुल क्षेत्र में सभी गांवों की गली-गली में होली का उल्लास छाया हुआ है। आधुनिक युग में रंगोत्सव पर्व की प्रासंगिकता इसके माधुर्य में है। आज मनुष्य का जीवन चुनौतियों से भरा हुआ है, जिनका समाधान ढूंढने में वह लगा रहता है। आशा-निराशा के भंवर में, व्याकुलता के क्षणों में होली जैसे पर्व जीवन में आशा और उत्साह का संचार करते हैं।

प्रेम और सद्भाव के इस पर्व को शालीनता से मनाना हमारा कर्तव्य है। युगों-युगों से चली आ रही हमारी गौरवमयी पर्व पर परा हमारी सनातन संस्कृति की महान धरोहर है। होली का पर्व आपस में सारे भेदभाव भूलकर, मानवीय संबंधों में समरसता स्थापित करने का संदेश देता है। यह रंगों का पर्व होली आध्यात्मिक अनुभूति का सांस्कृतिक व राष्ट्रीय एकता का पर्व है।

 


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Content Writer

Niyati Bhandari

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