यहां जानें, वास्तव में क्या है धर्म ?

punjabkesari.in Thursday, May 30, 2019 - 09:29 AM (IST)

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धर्म क्या है? व्यक्ति का नैसर्गिक गुणों में रहना धर्म है। जिसके जीवन में धर्म है, उसे इसी जन्म में मोक्ष का अनुभव हो सकता है। जिसके जीवन में धर्म नहीं है उसे जीवन में बंधन का अनुभव होता है, तकलीफों-परेशानियों का अनुभव होता है।
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भगवान महावीर की अनुभूतियों से जन्मा सच है कि धर्म शुद्धात्मा में ठहरता है और शुद्धात्मा का दूसरा नाम है अपने स्वभाव में रमण करना, स्वयं के द्वारा स्वयं को देखना। असल में वास्तविक धर्म तो स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार ही है। यह नितांत वैयक्तिक विकास की क्रांति है। विडंबना है कि हमने धर्म के वास्तविक स्वरूप को भूलकर आज धर्म के अनेक मुखौटे प्रचलित कर लिए हैं। धर्म की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं और भिन्न-भिन्न स्वरूप बना लिए हैं जिनसे धर्म का मूल तत्व ही विलुप्त है। 

जीवन में कोई सफल होता है या असफल होता है इसके लिए वह व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार है। उसकी सफलता-असफलता के लिए उसके कृत्य जिम्मेदार हैं। इन कृत्यों को एवं जीवन के आचरणों को आदर्श रूप में जीना और उनकी नैतिकता-अनैतिकता, उनकी अच्छाई-बुराई आदि को स्वयं के द्वारा विशलेषित करना ही धर्म का मूल स्वरूप है। असल में धर्म जीवन के साथ रक्त और श्वास की भांति जुड़ा हुआ है इसलिए धर्म को जीवन से अलग नहीं किया जा सकता।
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धर्म को भूलते जाना या उसके वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ रहने का ही परिणाम है कि व्यक्ति हर क्षण दुख और पीड़ा को जीता है, तनाव का बोझ बढ़ता है। वह असंतुलन और आडंबर में जीते हुए कहीं न कहीं जीवन को बोझ रूप महसूस करता है जबकि इस भार से निर्भार होने का उपाय उसी के पास, उसी के अंदर है। जरूरत है अंतर में गोता लगाने की। 


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