हयग्रीव जयंती: आप भी करें इस प्राचीन मंदिर के दर्शन, जहां विराजमान भगवान हयग्रीव

punjabkesari.in Sunday, Aug 22, 2021 - 04:53 PM (IST)

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सनातन धर्म के शास्त्रों में श्री हरि के विभिन्न रूपों की व्याख्या की गई है। इसमें वर्णित अवतारों में से एक है भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार। आज यानि 22 अगस्त रविवार को हयग्रीव जयंती का पर्व भी है। इसी खास पर्व के मद्देनजर हम आपको बताने जा रहे हैं मध्य प्रदेश के गुवाहटीमें स्थित भगवान हयग्रीव मंदिर के बारे में। बताया जाता है गुवाहटी से 30 कि.मी की दूरी पर मोनिकूट नाम की एक छोटी-सी पहाड़ी पर हाजो, असम में हयग्रीव माधव मंदिर स्थित है। बताया जाता है यह प्राचीन मंदिर अपने आप में हज़ारों वर्षों प्राचीनता समेटे हुए हैं। बता दें यहा एक ऊंची चट्टानी पहाड़ी पर भगवान हयग्रीव माधव स्थापित है, जिनके दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को एक लंबी-ऊंची सीढ़ी चढ़कर जाना पड़ता है। 

कालखंड के अनुसार इस मंदिर के निर्माण की सटीक तिथि के बारे मे अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है। परंतु माना जाता है संभवतः 1583 में राजा रघुदेव नारायण ने इसका निर्माण कराया था। तो वहीं कुछ ऐतिहासिक तथ्य की मानें तो राजा ने मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार कराया था और पुनः पूजन आरंभ कराया था। मंदिर में इससे प्राप्त होने वाले साक्ष्यों के अनुसार उस दौर में आए मुस्लिम आक्रांताओं ने इस मंदिर को क्षति पहुंचाई थी, जिसके निशान यहां मिलते हैं। इतिहासकारों का कहना है कि वास्तव में इसे कामरूप के पाल राजवंश ने 10वीं शताब्दी में बनवाया था। बताया जाता है कि ऐतिहासिक कामरूप में 11वीं शताब्दी में रचित कलिका पुराण में हयग्रीव अवतार की उत्पत्ति व उनकी इस पहाड़ पर स्थापना का वर्णन है। 

भगवान जगन्नाथ जैसे दिखते हैं हयग्रीव माधव
मंदिर परिसर में स्थापित ' भगवान हयग्रीव' की स्थापित पावन मूर्ति पुरी के भगवान जगन्नाथ जैसी दिखती है। असम के लोगों में इस मंदिर में अत्यधिक मान्यता है और दूर-दूर से भक्त यहां हयग्रीव भगवान के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित प्रतिमा कृष्णवर्णीय पत्थर की बनी हुई है।

हयग्रीव अवतार की कथा
देवी भागवत और विष्णु पुराण के अनुसार हयग्रीव नामक एक असुर ने अपनी सारी इंद्रियों को वश में करके देवी के तामसिक स्वरूप को प्रसन्न किया और देवी से अमरता का वर मांगा, लेकिन जब देवी ने ऐसा वरदान देने से मना किया तो उसने कहा ठीक है। आप मुझे इसके बदले ये वर दीजिए कि मेरी मृत्यु हयग्रीव से ही हो। ऐसा वर पाकर असुर अजेय हो गया। धीरे-धीरे उससे सभी देवता परेशान होने लगे और वह ब्रह्म देव सहित विष्णु लोक पहुंचें परंतु श्रीहरि निद्रा मग्न थे मगर उनके धनुष की प्रत्यंचा तनी हुई थी। ब्रह्मा जी ने भयंकर शब्द करने के उद्देश्य से प्रत्यंचा काट दी, लेकिन डोरी का तना सिरा कटकर झटके से श्रीहरि की गरदन में लगा और वह कट गई। सभी देवता शोक करने लगे। उस समय वहां देवी प्रकट हुई और देवताओं को कहा कि ये श्रीहरि की ही प्रेरणा से हुआ है। उन्होंने ब्रह्म देव से कहा कि आप तुरंत ही किसी घोड़े का सिर हरि के धड़ पर रख दें तो उनका तुरंत ही हयग्रीव अवतार हो जाएगा। जैसे ही ब्रह्म देव ने घोड़े का सिर लगाया भगवान विष्णु हयग्रीव अवतार के तौर पर प्रगट हो गए। कथाओं के अनुसार इसके उपरांत असुर हयग्रीव और श्री हरि के बीच भयानक युद्ध हुआ और उन्होंने उसका अंत कर दिया। ऐसा मान्यताएं हैं कि असुर इसी स्थान पर तामसी तंत्र क्रिया कर रहा था, इसलिए कालांतर में यहां हयग्रीव माधव मंदिर स्थापित हुआ। 
 


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Content Writer

Jyoti

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