Harihar Milan 2025: वैकुंठ चतुर्दशी पर उज्जैन में होगा अद्भुत दृश्य, आमने-सामने होंगे महाकाल और गोपाल
punjabkesari.in Thursday, Oct 30, 2025 - 08:31 AM (IST)
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Harihar Milan 2025: मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन, जो अपने तीसरे ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के कारण विश्व प्रसिद्ध है, कई अनोखी परंपराओं का केंद्र है। इन्हीं में से एक विशेष परंपरा है हरि-हर मिलन, जो वैकुंठ चतुर्दशी के पावन अवसर पर निभाई जाती है। यह परंपरा भगवान शिव हर, यानी महाकाल और भगवान विष्णु हरि, यानी श्रीकृष्ण के मिलन का उत्सव है। इस दिन, बाबा महाकाल को एक भव्य पालकी में बिठाकर शहर के मध्य में स्थित गोपाल मंदिर तक ले जाया जाता है। यहां महाकाल की प्रतिमा को गोपाल मंदिर में विराजमान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के ठीक सामने स्थापित किया जाता है। यही अलौकिक दृश्य हरि-हर मिलन कहलाता है।
क्यों होता है यह मिलन ?
इस परंपरा के पीछे एक गहरी धार्मिक मान्यता जुड़ी है। माना जाता है कि चातुर्मास की अवधि के दौरान, भगवान विष्णु सृष्टि का कार्यभार महादेव को सौंपकर पाताल लोक में विश्राम करते हैं। जब देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु अपनी नींद से जागते हैं, तो महादेव उन्हें पुनः सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी सौंप देते हैं। हरि-हर मिलन इसी 'कार्यभार सौंपने' की कथा का प्रतीकात्मक रूप है। देवउठनी एकादशी के दो दिन बाद, वैकुंठ चतुर्दशी पर, महाकाल अपनी सवारी के माध्यम से गोपालजी के मंदिर तक आते हैं ताकि उन्हें सृष्टि का भार वापस सौंपा जा सके। मान्यता है कि यह जिम्मेदारी सौंपने के बाद, बाबा महाकाल पुनः अपने मूल स्थान, श्मशान, में भस्म रमाकर लीन हो जाते हैं।
कैसे मनाया जाता है यह उत्सव ?
मिलन के दौरान, दोनों देवताओं की प्रतिमाओं को आमने-सामने बिठाया जाता है और मंदिरों के पुजारी आदान-प्रदान की रस्म निभाते हैं:
महाकाल भगवान गोपालजी को तुलसी की माला भेंट करते हैं। गोपालजी भगवान महाकालको बिल्व पत्र की माला समर्पित करते हैं। इसके अतिरिक्त, फल और फूल जैसी अन्य वस्तुएं भी एक-दूसरे को भेंट की जाती हैं। इस अद्भुत और भावपूर्ण दृश्य को देखने के लिए उज्जैन में हजारों श्रद्धालु उमड़ते हैं। रस्म पूरी होने के बाद, बाबा महाकाल अपनी पालकी में सवार होकर वापस अपने मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं।
वर्ष 2025 में हरि-हर मिलन
इस बार वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व 4 नवंबर, मंगलवार को मनाया जाएगा क्योंकि इसी दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि है। यह त्योहार केवल एक मिलन नहीं, बल्कि शिव और विष्णु की एकता तथा सृष्टि के संचालन की एक महत्वपूर्ण धार्मिक कथा को जीवंत करने का माध्यम है।
