नहीं रख सकते गुरुवार का व्रत तो ये कथा जरूर पढ़ें

punjabkesari.in Thursday, Jan 23, 2020 - 10:08 AM (IST)

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हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। ऐसे ही गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। कहते हैं कि इस दिन केले के पेड़ के रूप में उन्हें पूजा जाता है। बहुत से लोग इस दिन व्रत करके भगवान को प्रसन्न करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो कुंआरी कन्याएं इस दिन व्रत करती हैं उनके विवाह में हो रही देरी दूर होती है। इसके साथ ही आज हम आपको इस दिन पढ़ी जाने वाली कथा के बारे में बताने जा रहे हैं, कहते हैं कि जो लोग व्रत नहीं कर पाते वे आज के दिन इस कथा को पढ़ या सुन ले तो भी भगवान उन पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। 
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एक बार जब रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा- हे दासी, पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है। वह बड़ी धनवान है। तू उसके पास जा और कुछ ले आ, ताकि थोड़ी-बहुत गुजर-बसर हो जाए। दासी रानी की बहन के पास गई। उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन उस समय बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी। कथा सुनकर और पूजन समाप्त करके वह अपनी बहन के घर आई और कहने लगी- हे बहन, मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी। तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली। कहो दासी क्यों गई थी। रानी बोली- बहन, तुमसे क्या छिपाऊं, हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं था. ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आई. उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने तक की बात अपनी बहन को विस्तारपूर्वक सूना दी। रानी की बहन बोली- देखो बहन, भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं। देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो।
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पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया। यह देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई। दासी रानी से कहने लगी- हे रानी, जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, ताकि हम भी व्रत कर सकें। तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा।
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उसकी बहन ने बताया, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें। इससे बृहस्पतिदेव प्रसन्न होते हैं। व्रत और पूजन विधि बताकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई। सात दिन के बाद जब गुरुवार आया, तो रानी और दासी ने व्रत रखा। केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया। अब पीला भोजन कहां से आए इस बात को लेकर दोनों बहुत दुखी थे। चूंकि उन्होंने व्रत रखा था इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे। इसलिए वे एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए। भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया।
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उसके बाद वे सभी गुरुवार को व्रत और पूजन करने लगी। बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी। तब दासी बोली- देखो रानी, तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था, इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब भगवान बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस्य होता है। इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखे मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए, और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए, जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा और रानी ने ठीक वैसे ही दान पुण्य का काम करना शुरू कर दिया।


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