Gupt Navratri: कब से शुरू हो रहे है आषाढ़ माह के गुप्त नवरात्रि, जानें कैसे करें कलश स्थापना
punjabkesari.in Monday, Jun 24, 2024 - 03:50 PM (IST)
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Gupt Navratri 2024: साल में कुल चार नवरात्रि आती हैं लेकिन इनमें से दो नवरात्रि सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं- एक चैत्र नवरात्रि और दूसरे शारदीय नवरात्रि। वहीं दो नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के नाम से भी जानी जाती हैं। गुप्त नवरात्रि माघ और आषाढ़ माह के दौरान आते हैं। गुप्त नवरात्रि के 9 दिन तंत्र साधना से महाविद्या को प्रसन्न किया जाता है। तो आइए जानते हैं, आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्रि कब से शुरू हो रही है।
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When will Gupt Navratri start कब से शुरू होगी गुप्त नवरात्रि
इस बार आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 6 जुलाई, शनिवार से होगी और इसका समापन 15 जुलाई, सोमवार को होगा। आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि इस बार 9 नहीं बल्कि 10 दिनों की होगी। माना जाता है कि ऐसा चतुर्थी तिथि की वृद्धि होने के कारण होता है।
Significance of Gupt Navratri गुप्त नवरात्रि महत्व
हिंदू धर्म में मां दुर्गा की पूजा के लिए नवरात्रि के पर्व को बहुत ही शुभ और खास माना जाता है। जैसे की एक साल में चार नवरात्रि आती हैं। नवरात्रि में दुर्गा मां के नौ रूपों की पूजा होती है। उसी तरह ही गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है। इस दौरान तांत्रिक, साधक और अघोरी तंत्र-मंत्र की सिद्धि पाने के लिए गुप्त साधना करते हैं। इस दौरान मां भगवती के साधक बहुत ही कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं।
How to do Kalash Sthapana कैसे करें कलश स्थापना
आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में सूर्योदय होने से पहले उठकर स्नान करें।
फिर शुभ मुहूर्त का ध्यान रखते हुए एक लाल चौंकी में मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित करें।
अब गंगाजल का छिड़काव करके उस जगह को पवित्र कर दें।
इसके बाद देवी की विधि-विधान से पूजा शुरू करने से पहले मिट्टी के पात्र में जौ के बीज बो दें।
फिर माता की पूजा के लिए कलश स्थापित करें।
अब अखंड ज्योति का दीया जलाकर देवी की पूजा करें।
अंत में दुर्गा सप्तशती का पाठ और उनके मंत्रों का पूरी श्रद्धा के साथ जाप करें ।
मां दुर्गा के मंत्र
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
नवार्ण मंत्र: ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ का जाप अधिक से अधिक अवश्य करें.
पिण्डज प्रवरा चण्डकोपास्त्रुता।
प्रसीदम तनुते महिं चंद्रघण्टातिरुता।।
पिंडज प्रवररुधा चन्दकपास्कर्युत । प्रसिदं तनुते महयम चंद्रघंतेति विश्रुत।