गोवत्स द्वादशी 2019ः हर पाप से मुक्ति दिलाएगी इस व्रत की कथा

punjabkesari.in Friday, Oct 25, 2019 - 09:50 AM (IST)

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गोवत्स द्वादशी का व्रत कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है, जोकि आज पड़ रही है। ये व्रत औरतें अपने बच्चो के लिए या फिर पुत्र कामना के लिए रखती हैं। दीपावली के पूर्व आने वाली इस द्वादशी को गाय तथा बछड़ों की पूजा-सेवा की जाती है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार द्वादशी के दिन सुबह नित्य कर्म से निवृत्त होकर गाय तथा बछडे़ की पूजा करनी चाहिए। द्वादशी के व्रत में गाय के दूध से बने खाद्य पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है। चलिए आगे जानते हैं, इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में। 
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गोवत्स द्वादशी की व्रत कथा प्राचीन समय में भारत में सुवर्णपुर नामक एक नगर था। वहां देवदानी नाम का राजा राज्य करता था। उसके पास एक गाय और एक भैंस थी। उनकी दो रानियां थीं, एक का नाम सीता और दूसरी का नाम गीता था। सीता को भैंस से बड़ा ही लगाव था। वे उसे बहुत प्यार करती थी तो वहीं दूसरी रानी गीता गाय से सखी-सहेली के समान और बछड़े से पुत्र समान प्यार और व्यवहार करती थी। ये देखकर भैंस ने एक दिन रानी सीता से कहा कि गीता गाय और बछड़ा से बहुत प्यार करती है और मुझसे नफरत करती हैं। 
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तब सीता ने कहा कि अगर ऐसी बात है तो मैं सब ठीक कर दूंगी और सीता ने इसके लिए एक चालाकी की और गाय के बछड़े को काटकर गेहूं के ढेर में छिपा दिया और इस बात का पता किसी को नहीं लगा लेकिन एक दिन राजा भोजन करने बैठा तो मांस और खून की बारिश होने लगी और महल के चारों ओर सिर्फ खून और मांस ही दिखाई दे रहा था। जिससे सब हैरानी में पड़ गए तभी एक आकाशवाणी हुई। जिसके बाद राजा को सब कुछ समझ आ गया। उस आकाशवाणी में कहा गया कि अगर राजा भैंस को बाहर निकाल देगा और गाय और बछड़े की पूजा करना शुरू कर देगा तो सब ठीक हो जाएगा। तभी से गोवत्स द्वादशी मनाई जाने लगी। 


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