Gopashtami katha: श्रीकृष्ण और गोमाता की अद्भुत लीला से जुड़ा है गोपाष्टमी का इतिहास

punjabkesari.in Tuesday, Oct 28, 2025 - 02:00 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Gopashtami story 2025: हिंदू धर्म में गोपाष्टमी का दिन अत्यंत शुभ और पवित्र माना जाता है। यह पर्व कार्तिक शुक्ल अष्टमी को मनाया जाता है। इसे गौ-पूजन दिवस भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन गौमाता और बछड़ों की विशेष पूजा की जाती है। गोपाष्टमी का संबंध भगवान श्रीकृष्ण, गौमाता और गोवर्धन पर्वत से जुड़ा हुआ है। यह दिन केवल पूजा का नहीं, बल्कि सेवा, कृतज्ञता और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है।

Gopashtami
Mythological stories of Gopashtami गोपाष्टमी की पौराणिक कथा

Gopashtami
Gopashtami Katha श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की लीला
पुराणों के अनुसार, एक समय ब्रजभूमि में हर वर्ष इंद्र देव के सम्मान में बड़ा उत्सव मनाया जाता था। सभी ब्रजवासी इंद्र देव की पूजा करते थे ताकि वर्षा ठीक समय पर हो और उनकी फसलें फलें। लेकिन जब बालक श्रीकृष्ण ने यह देखा, तो उन्होंने अपने पिता नंद बाबा से कहा, “पिता जी! हम इंद्र की नहीं, गोवर्धन पर्वत की पूजा करें। यह पर्वत हमें घास, चारा, जल और शरण देता है। असली पालनहार तो यही हैं न कि इंद्र।”

नंद बाबा और ब्रजवासी श्रीकृष्ण की बात मान गए और गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इससे इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रजभूमि पर लगातार सात दिन तक वर्षा कर दी।

Gopashtami
श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया
जब वर्षा और तूफान बढ़ने लगे, तो भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली से गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों को उसके नीचे शरण दी। सात दिन तक उन्होंने पर्वत को उंगली पर धारण किया।

अंततः इंद्र देव ने अपनी भूल स्वीकार की और भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। वर्षा रुक गई और सूर्य का प्रकाश फैल गया।

Gopashtami
गोपाष्टमी का उद्गम
सात दिनों के बाद जब इंद्र देव शांत हुए, उसी दिन को गोपाष्टमी कहा गया। यह वह दिन था जब गौमाता और बछड़ों को पुनः गोवर्धन पूजा के बाद बाहर चराने के लिए ले जाया गया।

इस दिन श्रीकृष्ण ने पहली बार गौ-सेवा और गोचारण (गाय चराने का कार्य) प्रारंभ किया। इसलिए गोपाष्टमी को गोपाल बाल्यलीला दिवस भी कहा जाता है।

Gopashtami
Gopashtami Story श्रीकृष्ण का पहली बार गाय चरण के लिए जाना
जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा। तब वे अपनी मैया यशोदा से जिद्द करने लगे कि वे अब बड़े हो गए हैं और बछड़े को चराने के बजाय वे गैया चराना चाहते हैं। उनके हठ के आगे मैया को हार माननी पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया। भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी, कि अब वे गैया ही चराएंगे। नन्द बाबा ने गैया चराने के लिए पंडित महाराज को मुहूर्त निकालने कह दिया।

पंडित जी ने कहा, अभी इस समय के आलावा अगले बरस तक कोई शेष मुहूर्त नहीं है।

वह दिन गोपाष्टमी का था, जब श्री कृष्ण ने गैया चरण शुरू किया। उस दिन माता ने अपने कान्हा को बहुत सुन्दर तैयार किया। मौर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाए और सुंदर सी पादुका पहनने को दी लेकिन कान्हा ने वे पादुकायें नहीं पहनी। उन्होंने मैया से कहा अगर तुम इन सभी गैया को चरण पादुका पैरों में बांधोगी, तब ही मैं यह पहनूंगा। मैया ये देख भावुक हो जाती हैं और कृष्ण बिना पैरों में कुछ पहने अपनी गैया को चारण के लिए ले जाते हैं।

तभी से कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन से गोपाष्टमी मनाई जाती है। भगवान कृष्ण के जीवन में गौ का महत्व बहुत अधिक था। कहते हैं गौ सेवा के कारण ही इंद्र ने उनका नाम गोविंद रखा था।

Gopashtami


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Related News