गोपाष्टमी 2019: जब गाय चराने के लिए कान्हा ने रची अद्भुत लीला
punjabkesari.in Sunday, Nov 03, 2019 - 01:15 PM (IST)

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गोपाष्टमी पर गौ माता की पूजा का विधान बताया गया है। इस साल ये पर्व कल यानि 04 नवंबर को मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में गाय को मां का दर्जा दिया गया है और इस बात की पुष्टि पुराणों में भी मिलती है। कृष्ण और बलराम को भी गाय की सेवा, रक्षा आदि का प्रशिक्षण दिया गया था। इस दिन गाय की सेवा की जाती है और जिन लोगों के घर पर गाय नहीं होती वे लोग गौशाला जाकर सेवा करते हैं। आज हम आपको इस खास पर्व पर इससे जुड़ी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।
पहली कथा
जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा। तब वे अपनी मैया यशोदा से जिद्द करने लगे कि वे अब बड़े हो गए हैं और बछड़े को चराने के बजाय वे गैया चराना चाहते हैं। उनके हठ के आगे मैया को हार माननी पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया। भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी, कि अब वे गैया ही चराेंगे। नन्द बाबा ने गैया चराने के लिए पंडित महाराज को मुहूर्त निकालने कह दिया। पंडित बाबू ने पूरा पंचाग देख लिया और बड़े अचरज में आकर कहा कि अभी इसी समय के आलावा कोई शेष मुहूर्त नही हैं अगले बरस तक, शायद भगवान की इच्छा के आगे कोई मुहूर्त क्या था।
वह दिन गोपाष्टमी का था, जब श्री कृष्ण ने गैया पालन शुरू किया। उस दिन माता ने अपने कान्हा को बहुत सुन्दर तैयार किया। मौर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाए और सुंदर सी पादुका पहनने दी लेकिन कान्हा ने वे पादुकायें नहीं पहनी। उन्होंने मैया से कहा अगर तुम इन सभी गैया को चरण पादुका पैरों में बांधोगी, तब ही मैं यह पहनूंगा। मैया ये देख भावुक हो जाती हैं और कृष्ण बिना पैरों में कुछ पहने अपनी गैया को चारण के लिए ले जाते।
इस प्रकार कार्तिक शुक्ल पक्ष के दिन से गोपाष्टमी मनाई जाती हैं। भगवान कृष्ण के जीवन में गौ का महत्व बहुत अधिक था। गौ सेवा के कारण ही इंद्र ने उनका नाम गोविंद रखा था।
दूसरी कथा
कहा जाता है कृष्ण जी ने अपनी सबसे छोटी ऊंगली से गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था, जिसके बाद से उस दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। ब्रज में इंद्र का प्रकोप इस तरह बरसा की लगातार बारिश होती रही, जिससे बचाने के लिए कृष्ण ने जी 7 दिन तक पर्वत को अपनी एक ऊंगली में उठाए रखा था। गोपाष्टमी के दिन ही भगवान इंद्र ने अपनी हार स्वीकार की थी, जिसके बाद श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा था।