इन 7 गीता श्लोकों में छुपा है हर मुश्किल का समाधान, जानिए कैसे?
punjabkesari.in Monday, Dec 01, 2025 - 12:07 PM (IST)
Gita Jayanti 2025: हर वर्ष मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती मनाई जाती है। यह वह पावन दिन है जब भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था। गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला, सफलता प्राप्त करने के सूत्र और मानसिक शांति का मार्गदर्शक है। गीता जयंती के इस शुभ अवसर पर गीता के श्लोकों को पढ़ने और जीवन में उतारने से हर व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और तनावमुक्त जीवन जी सकता है। तो आइए जानते हैं कि गीता जयंती के दिन कौन से श्लोकों को पढ़ना चाहिए।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थ: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। तुम कर्मों के फल की इच्छा से प्रेरित मत हो और न ही कर्म न करने में तुम्हारी आसक्ति हो।
सफलता का राज: लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें और परिणाम की चिंता किए बिना पूरी ईमानदारी से अपना वर्तमान कर्म करते रहें। यही सच्चे योग की शुरुआत है।
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
अर्थ: मनुष्य को अपने मन की सहायता से अपना उद्धार करना चाहिए, स्वयं को नीचा नहीं दिखाना चाहिए। क्योंकि यह मन ही मनुष्य का सबसे अच्छा मित्र है और यही मन उसका सबसे बड़ा शत्रु भी है।
शांति का राज: यदि आप मन को नियंत्रित कर लेते हैं, तो वह आपका मित्र बनकर सफलता दिलाता है। अनियंत्रित मन ही सभी तनाव और अशांति का कारण है।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
अर्थ: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण (कार्य) करता है, सामान्य पुरुष भी वैसा ही करते हैं। वह जो प्रमाण स्थापित कर देता है, लोग उसी का अनुसरण करते हैं।
सफलता का राज: अपनी नैतिकता और कार्यशैली को इतना उच्च रखें कि आप दूसरों के लिए उदाहरण बन सकें। आपकी श्रेष्ठता ही आपकी सफलता का मार्ग है।

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥
अर्थ: क्योंकि जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है, और मृत्यु को प्राप्त होने वाले का जन्म निश्चित है। इसलिए जो अटल है (अर्थात परिवर्तन) उसके लिए शोक करना उचित नहीं है।
शांति का राज: जीवन में आने वाले बदलावों को स्वीकार करें। चाहे वह हानि हो या लाभ, पद हो या संबंध—सब कुछ अस्थायी है। इस सत्य को जानने से अनावश्यक दुःख समाप्त होता है।
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥
अर्थ: हे धनंजय (अर्जुन), तुम आसक्ति को त्यागकर, सिद्धि (सफलता) और असिद्धि (असफलता) में समान भाव रखकर योग में स्थित होकर कर्म करो। यह समत्वभाव ही योग कहलाता है।
सफलता का राज: परिणाम चाहे जो भी हो, अपने कर्मों को तटस्थ भाव से करना सीखें। यही तनावमुक्त रहते हुए सफलता पाने का तरीका है।
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति॥
अर्थ: इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला निःसंदेह और कुछ नहीं है। जो व्यक्ति योग (कर्मयोग) में सिद्ध हो चुका है, वह उस ज्ञान को समय आने पर स्वयं ही अपने भीतर प्राप्त कर लेता है।
शांति का राज: आत्म-ज्ञान और सच्चाई की समझ ही सभी प्रकार की अशुद्धियों, भयों और चिंताओं को दूर कर सकती है। ज्ञान ही सच्ची शांति का मार्ग है।
सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया॥
अर्थ: हे अर्जुन, शरीर रूपी यंत्र पर आरूढ़ हुए सभी प्राणियों को ईश्वर अपनी माया से (कर्मों के अनुसार) घुमाता हुआ सबके हृदय में निवास करता है।
शांति का राज: यह जानना कि ईश्वर (सकारात्मक शक्ति) हर जीव के हृदय में निवास करता है, व्यक्ति को प्रेम, करुणा और विनम्रता से भर देता है। यह भाव सभी द्वेष और अशांति को समाप्त करता है।

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